Wednesday, 26 February 2014
Saturday, 22 February 2014
Saturday, 15 February 2014
पड़ी लिखी युवा पीड़ी क्या यही है? (Gay Perspective)
इस बारे में ऐसे लोग क्या कहेंगे? |
कल ऑफिस के
बाद मेट्रो से घर लौटते हुए कुछ ऐसा सुनने को मिला जिसके कारण तथाकतिथ ‘Young Generation’
की एक कड़वी सच्चाई सामने आई. खचाखच भरी मेट्रो में कुछ 20-22 साल के लड़कों का एक
ग्रुप भी सफ़र कर रहा था, जिनमे से दो लड़के आपस में बात कर रहे थे. एक लड़के की आवाज़
सामान्य से कुछ अधिक पतली थी. मेरे बराबर में एक अन्य लड़का, जिसकी उम्र करीब 25
साल रही होगी, भी खड़ा था जो देखने में थोड़ा serious लग रहा था पर बीच बीच में कुछ
गुनगुना भी रहा था. (मेरा ध्यान इन दोनों ही लोगों पर नहीं था क्योंकि मेरे मन में
कुछ और ही विचार चल रहे थे... लेकिन अचानक कुछ शब्द सुनने के बाद मेरा ध्यान इस ओर
गया.)
दो लड़के जो मेरे
से कुछ दूर खड़े थे कुछ बात कर रहे थे. उनमे से जिसकी आवाज़ थोड़ी पतली थी ने दूसरे
से कुछ कहा जिसका मैंने केवल अंतिम अंश ही सुना “यार मैं कह रहा था ....”
तुरंत ही
मेरे दाई ओर खड़े उस serious दिखने वाले लड़के ने फुसफुसाया - “अबे बेटा, तू कह नहीं
रहा था, तू कह रही थी!” (उन लड़को ने उसकी इस फुसफुसाहट को नहीं सुना था, अतः वे
अपनी बाते करते रहे.)
ज़ाहिर था कि
उस पड़े लिखे और otherwise सभ्य दिखने वाले लड़के ने क्यों कहा था और इस बात से उसकी
मानसिकता भी स्पष्ट रूप से समझी जा सकती थी. अगर किसी पड़े लिखे युवा व्यक्ति की
सोच किसी पतली आवाज़ वाले व्यक्ति के प्रति ऐसा रूप ले सकती है तो ऐसे ‘पड़े लिखे
युवा व्यक्ति’ से गे लोगो के बारे में कैसी सोच की अपेक्षा की जा सकती है? आज की
generation अमीर-गरीब, गोरे-काले, जाति-पाति आदि के भेद तो भूल चुकी है पर इन
भेदों की जगह कुछ अन्य भेदों ने ले ली है... आज कोई ‘ज्यादा मर्द’ है तो कोई ‘कम
मर्द’ और खैर इन लोगो की दृष्टि में गे लोग तो संभवतया ‘नामर्द’ ही होंगे!
कहना तो
बहुत कुछ चाहता था पर आजकल चल रहे समयाभाव के कारण अधिक कह नहीं पाऊंगा. शेष आप
लोग समझदार हैं ही.
Wednesday, 12 February 2014
Sunday, 9 February 2014
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