अधिकांश Curative Petitions के अंजाम के इतिहास को देखते हुए आशा तो नहीं
है... फिर भी मन आशा करना चाहता है. आशा तो 2013 के दिसम्बर में भी काफी थी पर हुआ क्या? “नगण्य” संख्या में होने के कारण
gays के मूलभूत अधिकारों की अनदेखी की गई यह कहकर कि अगर सरकार चाहे तो कानून में
संशोधन कर सकती हैं.

मन में अनेक संदेह होने के बाद भी... और आगे
भी होने वाले अनेक संघर्षों का होना तय होते हुए भी... न्याय होगा... ऐसी आशा करता
है मन... #Sec377