अधिकांश Curative Petitions के अंजाम के इतिहास को देखते हुए आशा तो नहीं
है... फिर भी मन आशा करना चाहता है. आशा तो 2013 के दिसम्बर में भी काफी थी पर हुआ क्या? “नगण्य” संख्या में होने के कारण
gays के मूलभूत अधिकारों की अनदेखी की गई यह कहकर कि अगर सरकार चाहे तो कानून में
संशोधन कर सकती हैं.
अब दो वर्ष पश्चात् 2 फ़रवरी को पुनः विचार
होगा...! ये सब उसी देश में हो रहा है जहाँ एक आतंकी को फांसी से बचाने के हेतू
आधी रात में भी न्यायालय खुलवा दिए जाते है के कहीं किसी के साथ भूले से भी अन्याय
न हो जाए. पर Gays! अरे भाई उनका क्या है... पिछले 2 वर्षों में एक भी Gay नहीं
मरा. 2 वर्ष का समय होता ही क्या हैं.... 2 वर्ष बाद ही सही न्याय दे तो रहे है...
क्या कोई नुकसान हो गया क्या???
मन में अनेक संदेह होने के बाद भी... और आगे
भी होने वाले अनेक संघर्षों का होना तय होते हुए भी... न्याय होगा... ऐसी आशा करता
है मन... #Sec377
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