तेजी से जाती कारों से भरे Highway के किनारे खड़े उसे रास्ता पार करने
के मौके का इंतज़ार करते करते काफी देर हो चुकी थी. दो लोगों को साथ साथ उसने
रास्ता पार करते दूर से देखा था. वह भी किसी और रास्ता पार करने वाले व्यक्ति की
प्रतीक्षा कर रहा था जिसके साथ वह भी उस पागलपन से भरे highway को पार कर सके. (बाकी
दिन जो व्यक्ति साथ होता था, आज वह नहीं था.) पर अब काफी देर हो चुकी थी... इसीलिए
उसने साहस किया और डरते डरते तेजी से आती गाड़ियों को हाथ दिखाते हुए, रास्ता पर कर
ही लिया.
दूसरी पार पहुंचकर एक क्षण को उसके मन में आत्मविश्वास जागा कि अब वह
अकेले भी वह रास्ता पार कर सकता है, फिर दो कदम ही चला था कि फूट-फूट कर रो दिया.
रोने का कारण? यह बात सच थी कि अब वह अकेले भी उस highway को पार कर सकता था, पर
अकेले highway को पार करते हुई उसकी मनोदशा उस समय की मनो दशा से कहीं अलग थी जब
वह किसी के साथ उस चौड़ी सड़क को पार किया करता था.
मनोदशा का यह अंतर ठीक उस अंतर जैसा ही था जो जीवन को अकेले और किसी के
साथ काटने के बीच होता है. निसंदेह आप जीवन अकेले काट सकते हैं और इससे कुछ हद तक
आपमें आत्मविश्वास भी आ जाता है... पर जब आप देखते हैं कि इस आत्मविश्वास के साथ
जीवन कट तो जाता है पर उसमे जीवन को किसी के साथ व्यतीत करने जैसा सुख नहीं रहता
तो आपको वह आत्मविश्वास एक ऐसी सजावट जैसा लगने लगता है जिसे देख कुछ लोग आपकी
प्रशंसा तो करते है पर उस सजावट को पहनने से होने वाला कष्ट उस प्रशंसा से हुए सुख
को निरस्त कर देता है.
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