आश्चर्य एवं दुख से भर जाता हूँ जब ऐसे दो गे लड़कों को 'संबंध' में होने का नाटक सा करते देखता हूँ जो विवाहित भी हैं! पर अधिकांश वह 'संबंध' शैय्या पर ही दृष्टिगोचर होता है। और हो भी तो हो कहाँ? शेष सब अवसरों पर अपनी-अपनी पत्नियों व बच्चों से अवकाश ही कहाँ मिल पाता है? तब भी!!
हृदय के किसी गर्त में इस प्यास को शांत करने के निमित्त प्रबल भाव तो है परंतु साहस नही है! इसी से निर्जन वन में ओसबिंदु चाट कर किसी तरह इस प्यास को भुझने की व्यर्थ चेष्टा चलती रहती है, पर खुले पनघट पर जाकर कूप से भरपेट पानी पीने का साहस नही हो पाता!!
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