Monday, 6 April 2015

दोस्ती या दोस्ताना?

पता नहीं कितने लोगों को मेरी तरह लगता है पर मैं जब भी 1964 में बनी फिल्म दोस्ती देखता हूँ, तो मुझे यह दोस्ती कम और “दोस्ताना” ज्यादा लगती है. पूरी फिल्म में दो दोस्तों के बीच का प्यार बिल्कुल भी ढका-छुपा के नहीं दिखाया गया. चाहें वह अगल-बगल में दोनों का सोना हो... या फिर एक का अपनी पढाई के लिए अलग होने पर दूसरे का उदास हो जाना. अगर और अधिक गौर से देखा जाए... तो फिल्म के गाने भी दोनों के बीच के प्यार की ओर इशारा करते नज़र आतें है... जैसे कि “मेरा तो जो भी क़दम है वो तेरी राह में हैं” (कृपया पूरा गाना सुने... मेरे तो पसंदीदा गानों में से एक है!) इसी गाने के बोल “जुदा तो होते है वो, खोट जिनकी चाह में हैं” मेरे मन को बहुत भाते है. इसी तरह एक अन्य गाने के बोल गे लोगों को कमतर समझने वाले लोगों को नसीहत देते जान पड़ते है – “एक इंसान हूँ मैं... तुम्हारी तरह”. इसी गाने में संसार की विविधता को बताते हुए कहा गया है – “इस अनोखे जगत की मैं तकदीर हूँ”.  (साथ ही इस गाने में गेस और बाकी लोगों में मनुष्य होने के कारण समानता दर्शाने वाले अन्य कई बोल है... इसे भी पूरा सुने)



अगर ऐसी ही फिल्म आज बनती तो लोगों की प्रतिक्रिया क्या होती? मेरे मत में तो एक ऐसी ही फिल्म आज बननी ही चाहिए. चाहें दोस्ती फिल्म के बनाने वालों की मंशा ऐसी न रही हो... पर मुझ जैसे एक गे को तो यह फिल्म इसी भाव से देखना पसंद है. निर्माता, निर्देशक और गीतकार का हार्दिक धन्यवाद. 



No comments:

Post a Comment