किसी का बेटा अगर अत्यंत
ढीठ और निक्कमा हो तो उसके माता-पिता व अन्य परिवारजन उसको उसकी गलती का अहसास
दिलाने और काम करने को प्रेरित करने के लिए भली बुरी सुनाते ही रहते हैं. लेकिन ऐसा
व्यक्ति अगर रास्ते पर आना ही न चाहे तो कुछ समय बाद उसके परिवार के लोग चाहे
जितना और जो भी बोल ले... उस व्यक्ति के कानों पर जूं तक रेंगना बंद हो जाती है.
वह एक ऐसा चिकना घड़ा बन जाता है जिस पर परिवार और समाज के तानें और उपदेश दोनों ही
एक पल के लिए भी नहीं ठहरते और वह उन्हें
पूरी तरह नज़रंदाज़ करना सीख जाता है!
ठीक यही स्थिति इस देश के
जनसामान्य और सत्तासीन लोगों की होकर रह गई है. विश्व में चाहें जो होता रहे, देश
के कुछ निरीह नागरिक कितनी ही चीख़-पुकार करते रहे, इन लोगों असर होना ही बंद हो
गया है.
अब तो चाहें किसी गे से
शादी करने के कारण कितनी ही लड़कियां आत्महत्याएँ करती रहें, चाहें गे लोग घुट घुट
कर अपना पूरा जीवन बिता दें, या विश्व के किसी कोने में लोग बहुमत से गे संबंधों
को स्वीकार्य स्वीकार कर ले... इस देश के लोगों, न्यायपालिका और सरकार तीनो को ही
ज़रा भी फर्क पड़ना बंद हो चुका है. लाखों लोग पूरा जीवन (या फिर जीवन के वो
महत्वपूर्ण वर्ष) बिना उस सुख के बिता रहे हैं जो मानवमात्र के लिए ज़रूरी हैं, पर
कौन सुने? वो कहते है न “They
don’t give a damn!!”