पहले भी कितनी बार इस बात को कह चुका हूँ कि हर रोज़ रात होने के साथ
मेरे जीवन का एक ऐसा दिन बर्बाद हो जाता है जिसे मैं वास्तविक रूप से जी सकता था.
चाहें वह किसी हिंदी फिल्म में दिखाया जाने वाला एक खुशहाल परिवार हो, या फिर अपने
किसी रिश्तेदार के मेरी ही उम्र के लड़के के घर बसने का समाचार हो, मन सब कुछ जानते
हुए भी पूँछ बैठता है कि मेरा ही क्या दोष था जो....!
आज से 8 – 10 साल बाद अगर इस देश की न्यायपालिका, सरकार और नागरिकों
को अपनी “भूल” का अहसास होता भी है तो क्या वे मेरे 18 - 30 वर्ष तक की आयु के ये
साल वापस दिला पायेंगे जिनको मैं ओर मेरे जैसे कितने और घुट घुट कर बिता रहे हैं?
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