कल एक पड़े लिखे और समझदार किस्म के व्यक्ति से बात करके बड़ा अजीब लगा.
28 वर्ष का वह व्यक्ति अपने को गे स्वीकार करने के बाद भी स्वयं को उस ओर ले जा
रहा है जहाँ सब कुछ अंधकारमय है. वह अगले ही वर्ष एक लड़की से शादी करने वाला है.
सबसे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि वह यह सब उससे अत्यधिक प्यार करने वाले एक
22 साल के लड़के के मिलने के बावजूद कर रहा है. वह लड़का उसको गले लगा कर रो भी चुका
है... अपनी शिक्षा के बाद भी वह ज़नाब अपने को सामाजिक नियमो से इतना अभिभूत मानते
है कि कभी एक लड़के के साथ जीवन बिता पाने के बारे में सपना भी नहीं देखते!
प्रश्न यह उठता है कि जब एक उच्च शिक्षा प्राप्त और आर्थिक रूप से
सक्षम व्यक्ति इस तरह समाज के बनाए अतार्किक नियमो में जकड़ा हुआ हो सकता है तो एक
कम शिक्षित एवम आर्थिक रूप से कम सक्षम 22 वर्ष के किसी गे से क्या उम्मीद की जा
सकती है?
पर अपना अनुभव बताऊ तो अक्सर मैंने उन्ही लोगो को साहस दिखाते देखा है
जिनकी सामाजिक एवम आर्थिक स्तिथि अधिक नाजुक होती है. इसमें शिक्षा ओर विद्या का
अंतर भी साफ़ हो जाता है... शिक्षा प्राप्त कर भी ये लोग सब प्रकार से परतंत्र ही
है... क्योकि विद्या के विषय में तो प्रसिद्ध ही है – सा विद्या या विमुच्यते!!
अर्थात विद्या वो है जो आपको मुक्त करे.
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