सर्दियों के साथ कुछ यादें भी वापस आ गई...
Friday शाम को उससे मिलने के लिए जाना... हमेशा की तरह वो मुझे मेट्रो स्टेशन पर pick करने को खड़ा होता था. जल्दी अंधेरा हो जाने की वजह से शाम 7 बजे का टाइम भी रात जैसा लग रहा होता था. उसकी bike पर बैठ कर ठंडी हवा में ठिठुरते हुए market से कुछ सामान लेकर उसके लगभग एकांत में बने हुए room पर पहुँचते थे. जाते ही वो आदतन मुझे गले से लगाकर bed पर गिरा देता था... रास्ते भर मेरे हाथ उसकी jacket की pockets में होने के कारण उसके हाथों से थोड़े अधिक गर्म हुआ करते थे... जिन्हें मैं उसके एकदम ठंडे गालों पर रख दिया करता था. जब एक दूसरे से लिपटे हुए काफ़ी देर हो जाती थी तो मै dinner तैयार करने की कहकर जबरदस्ती उठ जाया करता था और उसको भी हाथ-मुहं धो कर कपड़े बदलने के लिए कहता था.
Dinner के लिए बहार से कुछ न लाने की वजह 10-15 दिनों में एक बार उसको अपने हाथों से बना कुछ special खिलाना होती थी. मै kitchen में पहुँच कर बाकी तैयारियों में लग जाता था और उसको कुछ आसान सी सब्जी काटने को दे दिया करता था. पर वो तो तुरंत बच्चों की तरह सब कुछ मुझपर छोड़ कर टीवी में ही घुस जाया करता था. ये देखकर मुझे अन्दर ही अन्दर हंसी आती थी तो भी मै ऊपर से गुस्सा दिखाकर उससे थोड़ा काम करवा ही लिया करता था. बीच बीच में उसका kitchen में आकर मुझे पीछे से पकड़कर लिपट जाना आज भी अनुभव कर सकता हूँ... खैर... मेरे द्वारा बनाया हुआ साधारण सा खाना भी जब वो पेट भरकर खाता था तो एक अजीब सा संतोष हुआ करता था.
उसके room में से अब घर की सी महक आ रही होती थी... अब घर बन चुके उस room की साफ़-सफाई का जिम्मा उसका हुआ करता था... सब काम खत्म करके दोनों एक blanket लिए बिस्तर पर बैठकर थोड़ा टीवी देखा करते थे... पूरे हफ्ते-दस दिन की बातें भी हुआ करती थी जो फ़ोन पर नहीं की होतीं थी... दिन भर office का काम करने के बाद घर का भी जो अतिरिक्त काम मुझे करना पड़ जाता था (जिसकी मुझे बिल्कुल आदत नहीं है) मुझे पूरी तरह से थका दिया करता था... वो भी दिन भर थकन से मेरे ऊपर अपना एक हाथ रखे रखे सो जाया करता था...!
पर इस बार की सर्दियाँ काफी अलग है...
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