Friday, 26 February 2016

The Great Encouragement

It is always a pleasant surprise when an old gay friend calls you after months and discloses though he wasn’t in touch with you actively but was following whatever posts you were writing on the blog and Facebook. 

And what more? The reason he never commented on anything because he found everything so perfect that nothing was needed to be added to it.

Great encouragement in such a hard time!! Thank you.

The "About Me"

A page follower on Facebook read my 'about me' and requested to share the same on page. Therefore sharing it simultaneously on blog as well.

Sunday, 21 February 2016

तिरोभाव

एक बार जानवरों में नैतिकता जानने के लिए कुछ शोधकर्ताओं ने एक प्रयोग किया. दो-दो करके कुछ बंदरों को अलग अलग पिंजरों में रखा गया और उन्हें बारी बारी से कुछ साधारण काम करने के लिए दिए गए. हर काम के पूरा होने पर पुरस्कार स्वरुप दोनों बंदरों को खाने के लिए कुछ दिया जाता. पर एक बंदर को हर बार ककड़ी (एक साधारण चीज़) दी जाती जबकि दूसरे को हर बार अंगूर (बंदरों और इंसानों के लिए एक स्वादिष्ट चीज़) दी जाती. दोनों बन्दर यह भली भांति देख सकते थे कि दूसरे बन्दर को क्या दिया जा रहा है. 3-4 बार ठीक वही काम करने के लिए ककड़ी की जगह अंगूर पाने वाले बंदर ने अगली बार अंगूर लेने से मना कर दिया (जबकि वह अभी भी भूखा था और अंगूरों की सीमान्त उपयोगिता भी अभी काफी थी). वजह साफ़ थी... बंदर सामाजिक प्राणी होने की वजह से अपने साथी के साथ हो रहे अन्याय को अधिक देर तक नहीं सह सका. नैतिकता और न्याय की भावनाओं का बीज कुछ जानवरों में भी रहता है.

पर आज के परिदृश्य में मनुष्यों को देखकर मन में संशय होता है कि क्या मनुष्यों के मन से इन भावनाओ का तिरोभाव हो गया है!


(नोट – इस post का सीधा संबंध JNU के राष्ट्र के प्रति अकृतग्य देशद्रोहियों और आरक्षण की मांग करने वाले सभी समुदायों से है.)

Wednesday, 17 February 2016

"स्थिरमति"

श्री भगवान ने गीता में अपने प्रिय जनों के जो लक्षण बताए हैं उनमे से एक है – स्थिरमति ( the one who is “Fixed in Determination”) पल-पल में संकल्प बदलने वाले लोगों का तो इहलोक में भी कोई भरोसा नहीं करता...!!

कितने ही लोगों से बात करने पर पता चलता है कि यह ज्ञात होने के बावजूद कि वे gay हैं, वे यह निश्चित नहीं कर पाते कि उन्हें एक लड़के के साथ जीवन बिताना चाहिए या एक लड़की के साथ. बात तब और भी गंभीर हो जाती है जब ऐसे लोग एक “relationship” की तलाश करने लग जाते है. खुदा-न-खास्ता अगर कोई अच्छा व्यक्ति इन्हें मिल भी जाता है तो उस बेचारे की नैया अधर में ही फंस कर रह जाती है... पता नहीं कब इनकी बुद्धि का ऊंट दूसरी करवट बैठ जाए???

अतः किसी के भी साथ एक संबंध बनाने की बात का विचार करते हुए बाकी बातों के साथ-साथ यह भी विचार करना आवश्क है कि सामने वाला मनुष्य “स्थिरमति” है कि नहीं.