Monday, 21 October 2013

‘पागलों’ और गेस पर हंसी

आज शाम को ऑफिस से घर लौटते हुए मेट्रो में दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई देखने को मिली. कुछ लोग खचाखच भरी ट्रेन में 35-40 वर्ष के एक व्यक्ति का मज़ाक बनाते मिले. मज़ाक बनाने की वजह उस व्यक्ति का ‘पागल’ होना था. देखने में ठीक-ठाक लगने वाला वह व्यक्ति जो संभवतया मेरी ही तरह ऑफिस से घर लौट रहा था शायद किसी प्रकार के मानसिक रोग से ग्रस्त था और इसी कारण आस-पास खड़े एक दो लोगों से अनावश्यक प्रश्न कर रहा था. उसके इतने से ‘असामान्य’ व्यवहार के कारण (जिसे पूरी तरह से नज़रंदाज़ किया जा सकता था) एक वृद्ध यात्री ने तुरंत पास खड़े दो 23-24 साल के लड़को को संबोधित करते हुए अपने ज्ञान का प्रदर्शन किया. “पागल है यह! रोज़ देखता हूँ इसको... अमुक मेट्रो स्टेशन तक जाएगा.” इतना सुनने की देर थी कि उन दो लड़कों ने उसका तरह तरह से मज़ाक बनाना प्रारंभ कर दिया. एक ने तो स्पष्ट कह ही दिया... “यह भी अच्छा है सफ़र का सफ़र करो और entertainment का entertainment भी.” उसका मज़ाक बनाने के लिए की गई कुछ लोगों की बेकार की बातों पर कुछ एक अन्य लोगों की हंसी मानो कोशिश करने पर भी नहीं रुक रही थी. लोगों का यह व्यहवार देख कर मैं पूरी तरह से दंग था. (पुरानी हिंदी फिल्मों में जब ऐसे दृश्य दिखाए जाते थे तो मैं यही सोचा करता था कि भला इतने बुरे लोग भी कहीं होते हैं.!) साथ ही साथ मेरा विचार अनायास गे लोगों के साथ किये जाने वाले लोगों के व्यवहार की और चला गया. और मैं सोचने लगा :
  • -    जब लोग खुद अपने अनुसार स्वयं को बदल पाने में असमर्थ एक ‘पागल’ का मज़ाक बनाने में कोई कसर नहीं रख छोड़ते तो उनके अनुसार ‘स्वेच्छा’ से गे बने लोगों का मज़ाक बनाया जाना कौन सी बड़ी बात है!
  • -    शायद एक ‘पागल’ का बेकार बैठा रहना लोगों को स्वीकार्य व तर्कसंगत लगता है, पर जब वह अपने परिवार के लिए अपनी उपयोगिता सिद्ध करने के लिए कुछ करता है तो यही लोग उसके जीवन को और कठिन बनाने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं. इसी प्रकार एक गे का किसी लड़की से शादी करके अन्य पुरुषों के साथ विवाहेतर संबंध बनाने में अधिकाँश लोग कोई बड़ा अपराध या समस्या नहीं देखतें है, पर जब वही गे बिना एक मासूम लड़की को धोखा दिया सत्यपरायण होकर एक अन्य पुरुष को अपना जीवन साथी चुनना चाहता है तो समाज के ये ही लोग सबसे अधिक आहत अनुभव कर ‘धर्म’ ‘परंपरा’ व ‘मूल्यों’ की दुहाई देना प्रारंभ कर देते है.
  • -    इससे लोगों की वह मानसिकता भी प्रदर्शित होती है जहाँ वे सिर्फ अपना ही दर्द अनुभव कर सकते है (उन लोगों में से यदि किसी का कोई निकट सम्बन्धी इसी प्रकार मानसिक रोग से पीड़ित होता तो निश्चय ही वे उस व्यक्ति का मज़ाक नहीं उड़ाते! ठीक यही आशा मैं उन लोगों से भी करता हूँ जिनका बेटा, भाई अथवा कोई अन्य निकट संबंधी गे हो.)
  • -    मेरे जैसे लोगों का गलत को देखकर भी चुप रह जाना सबसे भयावह है.

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