Friday, 20 September 2013

रोहतक काण्ड

एक परिवार समाज के द्वारा फैलाए गए उन्माद में कितना अँधा और क्रूर हो सकता है इसका उदाहरण रोहतक में घटी घटना से मिलता है. दो प्यार करने वालों को तड़पा तड़पा के मारना वह भी उनमे से एक के परिवार के सदस्यों द्वारा! ऊपर से बिना किसी धार्मिक वैधता के फैलाई गई कुरीतियों को धार्मिक और सामाजिक वैधता देने का दुस्साहस!

रोहतक में घटी घटना से मेरे जैसे एक गे का रोम रोम सिहर उठता है जब वह यह देखता है कि लोग जब एक स्त्री-पुरुष के मध्य के प्रेम के विषय में इतने असहिष्णु हो सकते है तो वे स्त्री-स्त्री अथवा पुरुष-पुरुष के मध्य के प्रेम को कितनी घृणा से देखते होंगे!

ईश्वर न करे कि दो प्यार करने वाले ऐसे तालिबानी किस्म के लोगों के यहाँ जन्में! मन बार बार न चाहते हुए भी ऐसे समाज में जन्मे गे लोगों के लिए पीड़ा का अनुभव करता है जो जीवन भर एक तालिबानी सोच के चलते अपनी भावनाओं को मारते रहे है या मारते रहेंगें.

पर क्या उन दो प्यार करने वालों का बलिदान व्यर्थ गया? क्या प्यार करने के लिए विभीत्स मौत तक का खतरा उठाने वाले वे दो प्रेमी गे लोगों को थोड़ा भी साहस दे पाने में विफल रहे? यही वे बाते है जिन पर अब विचार किया जाना चाहिए.        

Monday, 16 September 2013

शर्मनाक

जब 18-19 वर्ष की आयु में किसी का प्यार पाने की कोई विशेष इच्छा नहीं थी (शायद नासमझी के कारण), तब भी इतनी तो समझ थी कि गलती से भी मेरे कारण अकारण किसी का मन न दुखे.

पर हैरानी तब होती है जब देखता हूँ कि स्वयं को “Mature” कहने वाले 25-26 वर्ष तक के लोग किसी को प्यार का झूठा अहसास देकर, उसको अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए उपयोग करने से बिल्कुल नहीं झिझकते. (एक दिन गे संबंधो की निरर्थकता बताकर पीछा छुडाने का उपाय उन्होंने पहले ही सोच लिया होता है!)


शर्मनाक! 



Friday, 6 September 2013

The Impossible


एक टीचर ने हम सब स्टूडेंट्स को प्रोत्साहित करने के लिए एक बार एक घटना सुनाई थी. घटना कुछ इस प्रकार थी कि कुछ वैज्ञानिकों के एक प्रयोग करने की सोची. उन्होंने कुछ सौ-पचास मक्खियों को एक ऐसे डिब्बे में बंद कर दिया जिसके मुंह पर एक शीशे का ढक्कन लगा हुआ था. मक्खियाँ अपने यहाँ वहां उड़ने की स्वाभाविक प्रवृति के कारण डिब्बे के मुंह पर लगे शीशे के ढक्कन को न देख कर उससे टकराने लगीं. वे डिब्बे के मुंह को खुला पाकर उसके पार निकल जाना चाहतीं थीं. कुछ एक घंटे बेकार कोशिश करने के बाद मक्खियों ने ऊपर उड़कर कांच के ढक्कन से टकराना बंद कर दिया. उन्हें यह विश्वास हो गया था कि ऊपर उड़कर डिब्बे से निकलने का कोई रास्ता नहीं है. पर आश्चर्य की बात तो तब हुई जब वैज्ञानिकों ने डिब्बे के मुंह से ढक्कन हटा दिया और तब भी एक भी मक्खी डिब्बे से बाहर नहीं निकली.

हमारे सर हमें यह बताना चाह रहे थे कि अगर कुछ एक असफल कोशिशों के बाद किसी काम को असंभव मानकर बैठ जाओगे तो उन मक्खियों की तरह ही उड़ने के लिए स्वतंत्र होने पर भी डिब्बे में कैद रह जाओगे.


कितनी सच बात है! कितने ही ऐसे गे लोग है जो एक जीवनसाथी पाने को या जीवनसाथी पाकर एक परिवार बसाने को या फिर अपने परिवार को अपनी सच्चाई के लिए मनाने को असंभव ही मानकर चलते है. और तो क्या कहें- कितने तो भारतीय समाज में एक गे व्यक्ति के जी पाने को ही असंभव मान लेते है. और इस “असंभव असंभव” चिल्लाते रहने का प्रभाव यह होता है कि वे उन मक्खियों की तरह ही समाज की बनाई उन ‘प्रथाओं या रुडियों’ के एक ऐसे डिब्बे में फंस कर रह जाते है जिससे सतत प्रयासों से निकला जा सकता है. पर प्रश्न यह है कि इतना परिश्रम कौन करे?

Why???

I am Gay… and why do I have to tell people all the time:
that sex is not everything for me.
that I too care for my parents.
that I too love a person more than anything else.
that I too believe in the concept of a family.
that I too feel promiscuous relations are not good.
that I too want ‘marriage’ and not ‘living-in’.
that I too believe in God.
Why?

Thursday, 5 September 2013

Counter Question

कुछ Gays भोलेपन से पूंछते हैं कि क्या एक Gay Family में पले बड़े बच्चे के ऊपर किसी प्रकार का गलत असर हो सकता है? ऐसे भोले भले लोगों से में यह पूंछना चाहता हूँ कि आप Gay हैं और एक 'Straight Family' में पाले बड़े हैं, क्या आप पर किसी तरह का गलत असर हुआ? या आप Gay होने के बजाये Straight हो गए?

After All, Gays Too Are Human Beings!


Wednesday, 4 September 2013

Mr. Gay World - Indian Contestant

हाल ही में बेल्जियम में हुई 'मिस्टर गे' प्रतियोगिता में भारत की ओर से हिस्सा लिया नोलन लुइस ने. वो इस प्रतियोगिता के आख़िरी 10 प्रतियोगियों में पहुंचने वाले पहले भारतीय हैं.

Tuesday, 3 September 2013

The 'Un-Wise' Decision

Has distance ever caused true love to diminish? Has any amount of difficulty ever stopped true lovers from loving each other… no matter how much ‘un-wise’ it is??

गलत रास्ता

अगर आप गलत रास्ते पर लालचवश एवं मार्गदर्शन के आभाव में चल दिए हों तो यह आपकी गलती नहीं है. पर यह बात पता लगने पर कि आप गलत रास्ते पर जा रहे हैं, यदि आप सही रास्ते पर आने का कोई प्रयत्न नहीं करतें, तो निश्चय ही गलती आपकी है.

अधिकाँश गे लोगों को भी यह अहसास है कि परिस्तिथिवश एवं सही उदाहरणों के आभाव में वे सेक्स को ही ध्येय बनाकर दिन-रात इस भूख को मिटाने के लिए किसी न किसी को खोजते रहने के 'गलत' रास्ते पर चल पड़े है. अधिकाँश को यह भी अहसास है कि सही रास्ता एक जीवनसाथी खोजकर एक परिवार बनाने का है, तो भी इस सही रास्ते के थोड़ा (या शायद काफी) कठिन होने के कारण वे इस पर चलना नहीं चाहते। ऐसे सही-गलत का अहसास रखने वाले गे यदि सही  मार्ग पर आने का प्रयत्न नहीं करते है तो निश्चय ही वे गलती कर रहे है. वे बेशक दूसरों को अपने ऐसा करने का लाख औचित्य समझाएँ, पर उनका मन स्वयं जानता है कि वे गलत है.