Monday, 30 December 2013

Best Wishes For Year 2014








Year 2013 is over. While departing it presented havoc to the gay community in the form of Supreme Court’s judgment. Year 2014 shall be a year of fight in slow motion given the judiciary’s working style and importance given to the ‘gay issues’.

One more grudge, which this year has left behind, is the loneliness of many deserving friends and of many other deserving gays whom I do not know per se. It is easy to preach them that it shall pass away, but it is almost impossible to console them. Each day of loneliness is like torrential rain where you are standing in a meadow without any shed over your head. All I can say to these gays is – I too have gone through this phase of life where you feel totally hapless when you see a beautiful couple moving around holding hands. At such times, it really becomes hard to keep your tears within the confines of your eyes. They just roll down your cheeks.

And you begin to think – “Will I be like this for the rest of my life?” This brings a shiver down your spine. You have not planned for this perpetual loneliness nor you ever can! I believe this very fear is the most important thing. It becomes your motivation, your courage, your power. Even if you feel tired of searching anyone anymore, you just cannot stop because of this fear. It is like a tiger chasing you, no matter how much tired or breathless you are, you just cannot stop, despite of the many obstacles in your path.

In each of the cases, we must keep going. Seeking divine intervention is always an added advantage which is always open to each one of us. As Lord Himself said in Bhagwad-Gita – मामनुस्मर युध्य   (Remember me and do keep fighting). Make this a motto of your life starting now. Best wishes for all for New Year 2014.  


Sunday, 29 December 2013

Consider These:





Bad, Worse, Worst.


'Religious Leaders' Against Gays Or Against Religion?

Omkarananda Saraswati of Parmatma Matha
आज कुछ धार्मिक ‘गुरु’ Jamaat-e-Islami Hind के द्वारा आयोजित एक कन्वेंशन में भाग लेने जा रहे हैं. कन्वेंशन का उद्देश्य UPA सरकार द्वारा Supreme Court में Section 377 पर आए judgment के खिलाफ़ दी गई एक Review Petition (पुनर्विचार याचिका) की आलोचना करना और homosexuality के विरुद्ध आंदोलन करना है. इस कन्वेंशन में इस्लामिक और ईसाई धर्म-गुरुओं का भाग लेना तो समझ आता है (Why? Read my other articles) पर यह जानकर न केवल हैरानी हुई बल्कि शर्मिंदगी का भी अनुभव हुआ जब पता चला कि की प्रयाग पीठाधीश्वर ‘शंकराचार्य’ ओंकारानंद सरस्वती भी इस कन्वेंशन में भाग ले रहे है. हैरानी और शर्मिन्दगी का कारण था कि मैं समझ नहीं पा रहा था कि कैसे आदि जगद्गुरु शंकराचार्य जी की परंपरा में दीक्षित कोई व्यक्ति इस तरह के अनर्गल सम्मेलन में भाग ले सकता है. तभी विचार आया कि यह कौन सी पीठ है जिसे आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने स्थापित किया था. खोजने में ज्यादा देर नहीं लगी कि आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने प्रयाग में कोई पीठ स्थापित ही नहीं की थी. यह तो कोई ‘परमात्मा मठ प्रयाग पीठ’ का संभवतया स्वघोषित शंकराचार्य है जिसे आदि जगद्गुरु की शिक्षा आदि के विषय में न तो कुछ जानकारी है और न ही रूचि. (इस मठ की मुख्य रूचि इसकी website के पहले पेज से ही पता चल जाती है जिस पर  donation आदि के लिए इनके बैंक अकाउंट का पूरा अता-पता लिखा है). कोई भी व्यक्ति जो  थोड़ी बहुत भी आदि जगद्गुरु शंकराचार्य की शिक्षाओं से परिचित है और उनके द्वारा प्रतिपादित अद्वैत मत के बारे में जानता है, वह ऐसे लोगों का आदि जगद्गुरु शंकराचार्य और सनातन धर्म से कोई वास्ता मानने पर राजी नहीं होगा.
जो लोग आदि जगद्गुरु शंकराचार्य के विषय में नहीं जानते उनकी जानकारी के लिए बता दूँ कि आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने वेदांत के अद्वैत मत का प्रतिपादन किया था जिसके अनुसार यह सब (अर्थात संसार) ब्रह्म (अर्थात निराकार ईश्वर) के अलावा कुछ नहीं है. विविध नाम रूप वाला संसार हमारे भ्रम का परिणाम है. संसार (यानि द्वैत की) की सत्ता उसी प्रकार है जैसे रस्सी में सांप का भ्रम हो जाता है. (ब्रह्म से भिन्न दूसरा कुछ भी नहीं है, और अगर दूसरा कुछ दीख पड़ता है तो वह उसी प्रकार का भ्रम है जैसे रस्सी में सांप का भ्रम हो जात है.) जैसे स्वर्ण के बने विभिन्न आभूषण अलग अलग दीख पड़ते है पर बुद्धिमान पुरुष जानता है कि यह सब स्वर्ण ही है. आकर (यानि नाम रूप की भिन्नता) नाशवान है, अतःएव मिथ्या है और स्वर्ण तत्व (यानि ब्रह्म) शाश्वत है, अतःएव सत्य है.
आदि जगद्गुरु शंकराचार्य के उपरोक्त सिद्धांत को वास्तविक रूप से जानने वाला कौन सा व्यक्ति संसार में भेद देख सकता है. इस सिद्धांत को जानने वाला कौन सा व्यक्ति homosexuality को गलत और heterosexuality को सही बता सकता है? और क्या ऐसा कहने वाला उपनिषदों के उस सिद्धांत को भूल जाता है जहाँ कहा गया है कि परमात्मा को भूल संसार को देखने वाला व्यक्ति मृत्यु के द्वारा मृत्यु को प्राप्त होता रहता है?
इस विषय में शंकराचार्य के जीवन की एक कथा भी उल्लेखनीय है जहाँ वे स्नान करके लौटते समय एक चाण्डाल से बचकर निकल रहे थे. उनको ऐसा करते देख चाण्डाल ने व्यंग करते हुए कहा कि “मुझे तो लगता था कि तुम सब में केवल ब्रह्म को ही देखते हो, पर तुम तो किसी को चाण्डाल, किसी को ब्राह्मण, किसी को मनुष्य और किसी को पशु देखते हो!” इतना सुनना था कि शंकराचार्य ने वहीँ उस चाण्डाल को दंडवत प्रणाम किया और अपने ज्ञान-चक्षु खोलने के लिए धन्यवाद दिया.
क्या शंकराचार्य के तथाकतिथ अनुयायी और उनके नाम का अपने नाम के आगे प्रयोग करने वाले ‘महान पुरुष’ इतनी साधारण सी बात नहीं समझ सकते कि किसी को homosexual और किसी को heterosexual देखना भी उनकी द्वैत दृष्टि का परिणाम है? स्वयं द्वैत देखते हुए वे कैसे वैदिक संस्कृति की रक्षा कर सकते है? Charity begins at home! पहले अपने आप से संस्कृति की रक्षा करें. तब homosexuals को अपना निशाना बनाएं.

P.S.
क्या भारतीय संस्कृति की रक्षा करने वाले इन महापुरुष ‘शंकराचार्य’ ओंकारानंद सरस्वती को गो-मांस खाने वालों के साथ मंच साझा करते हुए जरा भी शर्म नहीं आएगी?           

Wednesday, 25 December 2013

Eager + Patient

There was a time when I used to be alone on Christmas.
Then... few friends who understand me came along.
And finally... Yesterday I spent the day with my Sweetheart .

Being "totally uncompromising" is a curse only for your own self.
Being eager to have him in your life is okay... But at the same time you need to be patient as well.


~ Prove That Gays Can Love Too.

Tuesday, 17 December 2013

New Thinking...? New Hope...?

It is interesting to see how Christian, Muslim and Hindu Organizations are all together when it comes to homosexuality and section 377. Protest by organizations claiming to represent Christians and Muslims can be understood as their respective religious texts prima facie contain anti gay verses. But my surprise does not get over  when I see the stand taken by pro-Hindutva organizations like RSS and BJP. It seems they are taking dictation from Christianity and Islam on homosexuality. A party otherwise having a ‘vibrant inner party democracy’ did not even consider it appropriate to know the views of its different leaders on homosexuality (and no leader is daring enough to air his voice or perhaps does not consider this issue worthy enough of showing decent with the party). The President of BJP just issues a diktat that homosexuality is unnatural and everyone accept it as a gospel  truth. Certainly everything is exposed now. And BJP should have learnt it by now that using diplomatic language does not work in today’s politics. Everyone (or at least 8-12% gay population of the country) is clear enough that BJP is the single largest hurdle in the way of legalizing homosexuality in this country. 

Sunday, 15 December 2013

Unity...? You Must Be Kidding...!!!

सुना है कि तथाकतिथ नई सोच वाले नेता ने आज "Run For Unity" नाम की दौड़ का आयोजन किया .... कितनी हास्यास्पद बात है ... गे लोगों को अपराधी बताकर समाज के हाशिये पर रखने वाले लोग Unity की बात करते है. कोई चुल्लू भर पानी देगा इनको....? ‪#‎Sec377‬

The Struggle Shall Continue...

लम्बे समय से लिए गए - किसी Gay Pride Parade में शामिल न होने के प्रण को तोड़कर आज शाम दिल्ली में जंतर मंतर पर आयोगित Global Day of Rage में कुछ समय के लिए सम्मिलित हुआ. काफ़ी मिला-जुला सा अनुभव रहा जिसे अस्वस्थ होने के कारण आज share नहीं कर पाऊंगा. कुछ तसवीरें अवश्य share कर रहा हूँ. आशा है आपमें से कुछ तो वहाँ जरूर उपस्तिथ रहे होंगे.









फिर से सिर उठाती सोच

Section 377 पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय (जिसका संविधान-संगत होना ​संदिग्ध है),  ने, उन अनेको तथाकतिथ धर्म के रक्षकों और 'बुद्धिजीवियों' को फिर से जुबान दे दी है जो अब तक इस विषय पर चुप थे. साथ ही साथ इस निर्णय ने उन कई लोगों के काले पक्ष को भी उजागर किया है जिनको मेरे जैसे अनेकों लोग 'आदर्श' माने बैठे थे. कष्ट तब होता है जब इन लोगों के तर्क इतने नीचे गिर जाते है कि सुनने वाले को पता ही नहीं चलता कि ये किसी पढ़े-लिखे सभ्य व्यक्ति के मुँह से आ रहे है कि एक निरे-अशिक्षित एवं अनभिज्ञ मानवता द्रोही के मस्तिष्क से!

आज मैं बाबा रामदेव सरीखों की बात नहीं कर रहा हूँ. वे तो अपनी cross-dressing के चलते 'कथनी और करनी' में भेद होने के कारण पहले ही काफी बदनाम हो चुके हैं. और वैसे भी जब वे मनुष्य के natural sexual behavior की बात करते है तो वैसा ही लगता है कि मानो जिस व्यक्ति ने कभी स्कूल का मुँह भी न देखा हो वह एक कॉलेज के प्रोफेसर को उसका विषय समझाए। वैसे अगर natural sexual behavior की बात करे भी तो - बाबा कौन सा सही काम कर रहें है. बाबा के कहे अनुसार चलें तो फिर यह सवाल भी उठता है कि अगर सभी लोग ब्र्ह्मचर्य का व्रत धारण कर लें तो सृष्टि आगे कैसे बढ़ेगी? [अगर हिन्दू धर्म के दृष्टिकोण से मैं तर्क करूँ तो यह तो सृष्टि की रचना करने वाले की चिंता का विषय है कि सृष्टि कैसे आगे बढ़े. सृष्टि के आदि में ब्रह्मा द्वारा उत्पन्न ब्रह्मा के मानस पुत्र सृष्टि के विस्तार में सहयोग करने के प्रति उदासीन थे. तो क्या वे भी इस तर्क के अनुसार दोषी सिद्ध होते हैं? कम से कम हिन्दू ग्रंथों का  अध्यन करने पर ऐसा लगता।] और फिर स्वामी दयानंद के मत में दीक्षित व्यक्ति कैसे सम्पूर्ण हिन्दू समाज का ठेकेदार बन सकता हैहो न हो बाबा इसको लेकर कुछ हद तक शर्मिंदा भी हैं या फिर अनुयायियों कि संख्या बढ़ाने का ऐसा लोभ सर पर सवार है कि जिस पंथ में बाबा स्वयं दीक्षित है उसके मूर्तिपूजा विरोधी सिद्धांतों का ज़िक्र तक नहीं करते। खैर… ! 

पर मैं तो राहुल ईश्वर सरीखे London School of Economics में पड़े लिखे लोगों की बात कर रहा हूँ जिनसे कुछ हद तक समझदारी की अपेक्षा की  जाती है. एक ओर LGBT community के लोगों को अपना भाई कहना और दूसरी ओर यह कहना कि उनके व्यवहार को science ने natural होने की मान्यता नहीं दी है! मेरे भाई आप अपने व्यवहार पर भी तो गौर करो. टीवी स्टूडिओं में बैठकर लाइव दुनिया भर को अपनी बात सुनाना क्या प्राकृतिक है? और क्या आप London पढ़ाई करने के लिए पैदल ही चल कर गए थे और तैर कर समुद्र पार किया था? और हाँ ज़रूर आप आज भी जंगलों से लाए कंद-मूल-फल पर ही जीवन निर्वाह कर रहे होंगे। "पर उपदेश कुशल बहुतेरे" … लगता है आप केवल गे लोगों से ही प्राकृतिक होने की अपेक्षा रखते है. और अगर आपका तर्क यह है कि कुछ तथाकतिथ अप्राकृतिक व्यवहार अमान्य है जबकि अन्य मान्य है.तो कृप्या हमें मान्य और अमान्य व्यवहारों में भेद करने का कोई सार्वभौमिक (Universal) सिद्धांत बताएं। एक बात और... अगर आप एक बात को तभी स्वीकार करोगे यदि विज्ञान उसे पूरी तरह परिभाषित कर सके और जान सकेतो फिर तो आप 'जीवन' (Life) तक को नहीं स्वीकार कर पाएंगे क्योंकि अभी तक जीवन की कोई सर्वमान्य परिभाषा विज्ञानं ने प्रस्तुत नहीं की है. कृपया अपने पूर्वाग्रहों को थोड़ा एक तरफ रखकर सोचने की कोशिश करो. जिस तरह आपको हर गे विरोधी का कट्टरतावादी कहा जाना अच्छा नहीं लगता उसी तरह मुझे भी हर गे समर्थक को 'Super-Liberal' कहा जाना अच्छा नहीं लगता। 

पहले जब कभी मैं देश की politics पर बात किया करता था तो मेरे विचारों को जानकर मेरे अधिकाँश मित्र मुझे Hindutva Centric Right Wing Mentality रखने वाला कहा करते थे. मुझे इस श्रेणी में रखे जाने का कोई अफसोस भी नहीं था क्योंकि मैं समझता था कि चुभती हुई सच्ची बात कहने वालों को आजकल इसी नाम से पुकारा जाता है. पर आज जब मैं इसी श्रेणी में रखे गए अन्य लोगो की मानसिकता देखता हूँ तो इस श्रेणी का कहे जाने पर शर्म अनुभव करता हूँ. एक London निवासिनी लेखिका महोदया जिनको मैं फेसबुक पर follow करता हूँ को गेस के विषय में  चर्चा एक ऐसे देश में नहीं सुहाती जंहाँ लोगों के घरों में शौचालयों तक का आभाव हो, जहाँ औरतों पर अत्याचार होते हो, जहाँ भुखमरी हो और  जहाँ दिन रात बलात्कार हो रहे हों. अपने दामादजी के जन्मदिन की सूचनाएँ तक फेसबुक के माध्यम प्रसारित करने वाली इन लेखिका जी के अनुसार मानो भारत में किसी को तब-तक ख़ुशी की चाह रखने का कोई अधिकार नहीं है जब तक उपरोक्त समस्याएँ समाप्त न हो जाएँ। अगर कोई इनके ध्यान में यह बात लाता भी है कि इन गम्भीर समस्याओं पर विचार करने का मतलब नहीं है कि अन्य समस्याओं पर विचार न किया जाए तो उस दुस्साहसी व्यक्ति के लिए इनका टका सा जवाब तैयार है- "मैंने यह पोस्ट कोई तर्क कुतर्क और सुतर्क का उत्तर देने के लिए नहीं किया है" साथ में एक मुफ्त सलाह भी - "जिन्हे समलैंगिकों का संसर्ग करना अच्छा लगता हो वे शौक से करें". भई वाह! दोगलेपन की भी हद है.

दोगलापन तो कई ईसाई संस्थाओं का भी सामने आया है (पहले से ज्यादा निखरकर). ये अपने करुणापूर्ण आचरण से बाध्य समलैंगिकों से नफरत तो नहीं कर सकते पर समलैंगिक आचरण को पाप अवश्य कहेंगे। यह तो वही बात हुई कि आप कि कोई आपसे आपके घर कि तो तारीफ़ करे पर घर में रहने वाले लोगों को गालियाँ दें. ठीक है भई.जो दुःसाहस करने से वर्त्तमान पोप फ्रांसिस पीछे हट जाते हों, ये लोग अवश्य करेंगे (ज्ञात रहे पोप फ्रांसिस ने कहा था कि अगर कोई गे ईश्वर को पाना चाहता है और प्रयत्न करता है तो उसे Judge करने वाला मैं कोण होता हूँ)। फिर मीडिया में आने का अवसर भी तो रोज़-रोज़ नहीं मिलता! इसी कारण लगे हाथ दुनिया को यह भी बताया जाए कि ईसाइयों में भी दलित होते है जिन पर किसी का कोई ध्यान नहीं जाता। जी हाँ.दुनियाँ भर की समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित करने का एकमात्र सुअवसर यही तो है. [मुझे तो डर है कि कल को कोई यह न कह दे कि जब तक संसार का निरस्त्रीकरण न हो जाए और विश्व-शांति स्थापित न हो जाए, किसी को गेस के हित में बोलने का कोई अधिकार ही नहीं है.]

पर सबसे अधिक कष्ट तो उस political party का रुख देखकर हुआ जिसका मैं खुला समर्थक रहा हूँ. BJP के प्रवक्ताओं को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में कुछ भी गलत नहीं लगा. ऐसा लगता है कि Section 377 के विषय में BJP सरकार का proposal देखकर ही मुँह खोलेगी। शर्मनाक.... !! अगर एक राष्ट्रीय पार्टी को मानव अधिकारों की बात समझानी पड़े और वह सरकार के proposal को देखकर अपना रुख स्पष्ट करे तो इससे बड़ी विचारधारा के दीवालियेपन की और क्या बात होगी। खैर.बाद में BJP इस बारे में जो भी रुख अपनाए पर पार्टी और उसके प्रधानमंत्री पद के दावेदार श्री मोदी की शरूआती चुप्पी बहुत कुछ कह गई है. साथ ही साथ मोदी से Twitter पर इस विषय में बोलने का आग्रह होते ही (कई गैर-राजनैतिक लोगों की ओर से) जिस तरह तब तक इस विषय पर सोए हुए खुंखार Right Wing लोगों को छोड़ दिया गया (जिन्होंने गे लोगों के लिए ही नहीं वरन उनके समर्थकों के लिए भी 'ना-मर्द', 'हिजड़े' और भी न जाने किन-किन शब्दों का अपमानजनक प्रयोग किया) वह भी काफी कुछ कह गया. हालाँकि एक साधारण से व्यक्तिजिसकी राजनीति में मात्र रूचि ही है और जो किसी प्रकार से किसी political पार्टी या media से दूर-दूर तक नहीं जुड़ा है,  की कोई हैसियत तो नहीं है, पर वह इतना जरूर कहेगा कि मोदी जी आपने अपने कई निष्काम समर्थक कम कर लिए हैं. आपकी कुछ न कहने की मजबूरी को मैं समझ सकता था पर.सिर्फ और सिर्फ आपके पक्ष में पोस्ट करने वाली social media की जिन 'बड़ी हस्तियोंपर आपने समर्थ होते हुए भी नकेल कसना उचित नहीं समझा उससे निश्चय ही मेरे जैसे आपके अनेकों गैर-राजनैतिक समर्थकों की आँखें खुली हैं. (कल रात ही BJP अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने BJP का रुख स्पष्ट करते हुए साफ़ कर दिया है कि BJP को सुप्रीम court के निर्णय पर कोई आपत्ति नहीं है और पार्टी समलैगिकता का विरोध करती है. इसे सुनकर निश्चय ही मेरे जैसे अनेकों गे भावी आम चुनावों में BJP को समर्थन देने पर पुनर्विचार करेंगें. पर पार्टी का दीवालियापन स्पष्ट है. निश्चय ही अपनी लड़ाई हमें स्वयं ही लड़नी पड़ेगी.)

इस देश का जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मैं उन सभी समस्याओं (जिन्हे न केवल आप वरन मैं भी महत्वपूर्ण और गम्भीर मानता हूँ) पर बात भी करना चाहता हूँ और उन्हें सुलझाने में अपना छोटा ही सही पर मन से योगदान भी देना चाहता हूँ, पर क्या मेरी समस्या पर बात करने के लिए आपको भी समय मिलेगा? आपमें से कुछ ने तो संसद द्वारा अलग-अलग कानूनों को पारित करवाने का पूरा क्रम भी बता दिया है (पहले लोकपाल, फिर महिला आरक्षण आदि)उसमे मैं अपनी समस्या को सबसे नीचे पाता हूँ. ऐसा नहीं कि मैं अपनी समस्या को इस सूची में ऊपर लाना चाहता हूँ पर कैसे समझाऊं कि मैं भी (और मेरे जैसे कई और) सीमित आयु लेकर पैदा हुआ हूँ. और मेरे भी आप सब की तरह ही कुछ सपने हैं और इन सपनों को मैं भी अपने जीवन में पूरा होते हुए देखना चाहता हूँ. मैं आप सब को यह सिद्ध करके दिखाना चाहता हूँ कि एक गे व्यक्ति अपने जीवन साथी के साथ रहते हुए उतना ही जिम्मेदार हो सकता है जितना कि आप अपने परिवारों के साथ रहते हुए होते है. पर आप मुझे अपराधी घोषित करके मेरे से (और मेरे जैसे कईयों से) ऐसा कर पाने का मौका छीन रहे है. कम से कम मुझे अपने साथी के साथ एक घर बनाकर सम्मानपूर्वक जीने का मौका तो दें.ऐसा होने के उपरान्त  एक दिन मेरे आमंत्रण पर मेरे घर यदि आप कभी चाय पीने आते हैं तो निश्चय ही आपकी राय मेरे (और मेरे जैसे अनेकों) गे लोगों के बारे में बदल जायेगी।