Wednesday, 27 February 2013
Monday, 25 February 2013
भारतीय संस्कृति विरोधी और अप्राकृतिक गेस
आज हिंदी में लिखा एक गे विरोधी लेख पड़ा जिसमे लेखक ने मूर्खता की सारी सीमाएँ लांघ रक्खी थीं। लेख में बताने जैसा तो कुछ भी नहीं था बस कुछ स्व-घोषित बुद्धिजीवियों एवं समाज के कुछ उच्च पदों पर आसीन लोगो की न मांगी गई एवं सच्चाई से कोसों दूर की राय ही थी। पर इस लेख की एक विशेष बात यह थी कि यह समाज की गेस के विषय में बनी हुई धारणा और इस धारणा के पीछे के 'देखते ही निरस्त करने लायक' कारणों का अच्छा प्रतिनिधित्व करता था। इसी कारण इसमें कुछ विशेष न होते हुए भी इसे पड़ कर कुछ लिखने का मन हुआ।
सच ही तो है कि दो व्यक्तियों के बीच प्यार को न मानने और उसे समाज के लिए हानिकारक बताने के पीछे जो भी कारण क्यो न हो, वे मुर्खतापूर्ण ही लगेगें। अधिकांश व्यक्ति जो गे संबंधो का जी जान से विरोध करते है और उसे समाज के लिए हानिकारक मानते है असल में गे संबंधो के विषय में कुछ भी जानकारी नहीं रखते क्योंकि उनका 'homo-phobia' उन्हें गेस से सदा दूर रहने के लिए कहता रहता है। अँधेरे में कुछ न भी हो तो भी डर तो लगता ही है, यही अज्ञान का प्राकृतिक गुण है। इसी कारण ऐसे लोग जो स्व-विवक से सदा से वंचित होते है, अपने मन में गे लोगों को लेकर तरह तरह के डर पाल लेते है। पर असल में इनके पास गेस का विरोध करने लायक कुछ भी कारण नहीं होता (कारण का जायज या नाजायज होना तो दूर की बात है). गे विरोधी लोगो की जो दूसरी श्रेणी है वह अल्पज्ञानियों की है। ये अल्पज्ञानी दावा तो यह करते है कि ये भारतीय-संस्कृति और प्रकृति के नियम के बारे में बहुत अधिक जानकारी रखते है पर सच तो यह है कि इनमे से बहुतों का न तो संस्कृति से किसी प्रकार का लेना देना होता है और न ही इन्हें प्रकृति के नियमो का कुछ भान होता है। यही लोग वास्तव में गेस के सबसे बड़े शत्रु होते है क्योंकि अज्ञान से अधिक खतरनाक अधूरा ज्ञान और उसका दंभ होता है। ऐसे स्व-नियुक्त संस्कृति के ठेकेदार इस बात का दावा करते है कि समलैंगिकता पाश्चत्य सभ्यता की देन है और भारतीय संस्कृति के सर्वथा विरुद्ध है। कोई इन अल्प-ज्ञानियों से यह पूँछे कि आखिर भारतीय संस्कृति क्या इनके पुरखों की निजी जागीर है जिसका copyright इनको वसीयत में मिला है जिसके अनुसार भारतीय संस्कृति के विषय में ये जो भी कहेगे वह पत्थर की लकीर बन जायेगा? जहाँ तक मेरी समझ है, धर्म भारतीय संस्कृति का अविभाज्य अंग सदा से रहा है और किसी भी ऊल-जलूल तरह के 'फतवे' निकालने की प्रथा भी भारतीय संस्कृति में नहीं थी। जिस देश के सदग्रंथ शरीर के बजाये आत्मा पर बल देते आयें हो और साथ ही यह उद्घोषणा करते आये हो कि आत्मा का कोई लिंग नहीं होता है (नपुंसक लिंग भी नहीं), वहाँ अगर दो पुरूषों के सम्बन्ध पर बवाल मच जाये तो मैं तो इस बवाल को 'पाश्चत्य सभ्यता' की देन मानूँगा जहाँ के धर्म-प्रमुख ही धर्म की समलैगिकता विरोधी टीका करते आये हैं। भारतीय संस्कृति के ईश्वर को पाने के लिए एक विषम-लिंगी का साथ होना अनिवार्य शर्त नहीं है और न ही इसमें एक समलिंगी का साथ होना किसी विशेष प्रकार से बाधक है। जहाँ तक रोजमर्रा के जीवन से जुड़े और समाज से जुड़े आचरणों का प्रश्न है वहाँ भी दो पुरुष (अथवा दो स्त्रियों) के बीच का एक पवित्र प्रेम-सम्बन्ध कोई कठिनाई पैदा नहीं करता। भला अगर दो पुरुषों को साथ-साथ प्रेम-पूर्वक रहते देख कर किसी को कोई परेशानी होती है तो बेहतर है कि वह अपना इलाज करवाये। जीव-दया, परोपकार, सत्य, पवित्रता आदि गुण किसी विषम-लिंगी गृहस्थ के यहाँ ही आश्रय पायें ऐसा तो कोई नियम नहीं है। और अगर यही सब गुण किसी सम-लिंगी गृहस्थ (जी हाँ, दो पुरुष/दो स्त्रियाँ जिन्होंने परमात्मा को साक्षी मान कर जीवन भर हर स्तिथि में साथ रहने का प्रण ले लिया है, मेरे लिए गृहस्थ ही है) में पाए जाये तो क्या कारण है कि इस समलिंगी गृहस्थ को अन्य गृहस्थो से कम करके आँका जाये? क्या भारतीय संस्कृति का परमात्मा ऐसे गृहस्थों के द्वारा की गई पूजा-अर्चना स्वीकार नहीं करेगा? क्या वह इन गृहस्थों को किसी प्रकार का दंड देगा? भारतीय संस्कृति जहाँ मनुष्य-मात्र में ईश्वरीय गुणों के विकास से जुडी प्रक्रिया का समग्र रूप है वहाँ अगर कुछ मनुष्य ईश्वर के विपरीत जाकर गे स्त्री/पुरुषों का विरोध करें और वह भी 'भारतीय संस्कृति के नाम पर तो इससे अधिक दुर्भाग्य की बात और क्या हो सकती है?
रही बात प्रकृति के नियमों के विरुद्ध जाने की, सो पहले ऐसा कहने वाले ही बताये कि प्रकृति का नियम है क्या? प्राकृतिक चुनाव की प्रक्रिया जिससे आज का मनुष्य अस्तित्व में आया है उसी प्रक्रिया ने ही 'गे' और 'स्ट्रैट' बनाने वाले जीनो का संरक्षण हमारी कोशिकाओं के DNA में आज तक किया हुआ है। तब ये प्राकृतिक नियमो का शोर मचाने वाले क्यों हडकंप मचाये हुए है? क्यों नहीं ये प्रकृति के सहज चुनाव की प्रक्रिया को अबाध गति से नहीं चलने देते? गे लोगो का सरोगेट-कोख से बच्चे पाना तो अभी हाल ही की घटना है तब कैसे किसी को 'गे' बनाने वाले जींस अब तक जिन्दा है, क्यों ये जींस एक गे के साथ ही दम नहीं तोड़ देते? इसके अतिरिक्त प्रकृति के विरुद्ध तो मनुष्य आज हर काम कर रहा है, आखिर कितने प्रकृतिक नियमो की दुहाई देने वाले 'होमोफोबिक डार्विन' हैं जो अपने एयर-कंडिशन्ड घर और दफ्तरों का मोह को छोड़ कर खुले आकाश के नीचे जीवन बिताना शुरू करेगे? इसलिए प्रकृति के नियमो की दुहाई न ही दी जाये तो अच्छा है अन्यथा गेस के द्वारा भी बहुत कुछ कहा जा सकता है जिसका प्रतुतर ये लोग नहीं दे पाएंगे।
एक कडवी सच्चाई यह है कि हम जिस समाज के उन्नत होने का दंभ भरते है वह अपने कई सदस्यों को इतनी सी सभ्यता नहीं सिख पाया है है कि वे दूसरे मनुष्यों की अनुभूतियों को बिना उनकी परिस्तिथियों से गुजरे अनुभव कर सकें। प्रश्न यह है कि हम कब तक इतने निम्न स्तर पर पड़े रहेंगे कि एक अपने जैसे किसी व्यक्ति की प्यार-परिवार पाने की भूख के प्रति अनजान बने रहेंगे? कब तक हम अपने घमंड और पूर्वग्रहों से ग्रस्त होकर अन्य मनुष्यों की मूलभूत अवश्यकताओ की अनदेखी करेंगे? दूसरों को पीड़ा में देखकर उनसे सहानुभूति व्यक्त करने का जो गुण मनुष्य को मनुष्य बनाता है किन्ही अज्ञात कारणों से वह प्रतिदिन ह्रासमान है। यही कारण ही तो है जिसकी वजह से एक समय पशु-पक्षियों के प्रति भी दया का अनोखा भाव रखने वाला और उनका दर्द समझने वाला मनुष्य आज इतना असंवेदनशील हो गया है कि वह अपने साथी मनुष्यों के स्वयं के जैसे भावों को सिर्फ यह बहाना बनाकर समझने से इन्कार कर देता है कि वे भाव सिर्फ पुरुष और स्त्री के मध्य ही हो सकते हैं! क्या कारण है कि मनुष्य अपने अज्ञानतापूर्ण स्वार्थ में इतना अँधा हो गया है कि वह प्यार जैसी विस्तृत और परम स्वतंत्र चीज़ को स्वयं के कपोल कल्पित नियमो में बंधा देखना चाहता है?
किसी को 'अल्पमति', 'अज्ञानी' और 'दम्भी' जैसे शब्दों से पुकारना मुझे प्रिय नहीं है, पर मनुष्य होने के कारण कुछ दोषों पर मेरा भी सहज अधिकार है, इसी कारण से गेस के प्रति की गई अनाप-शनाप बातें मुझे विचलित कर देतीं हैं। गेस को पाश्चात्य सभ्यता से प्रेरित बताने वालों को मैं यह बताना चाहूँगा कि मैं कैसे कैसे गे लोगो के संपर्क में आया हूँ। एक गे वह व्यक्ति भी था जो अपनी रूचि के बारे में सब कुछ जानने और उसे गलत न मानने पर भी - "माँ को किसी भी प्रकार की तकलीफ नहीं पहुँचनी चाहिए" - ऐसा कहकर एक लड़की से शादी कर लेता है और साथ ही साथ उसके प्रति सदा वफ़ादार रहने का प्राण भी करता है। एक गे वह भी है जो ईश्वर और उसके प्रेम पर अगाध आस्था होने के कारण किसी ऐसे स्ट्रैट की भी बुराई नहीं सुनना चाहता है जो गेस को गन्दी गन्दी गलियाँ देते है। एक गे वह भी है जो एक स्ट्रैट व्यक्ति के प्रेम में पड़कर और उसे कभी भी न पा सकने का पक्का अनुमान होने के बाद भी उसी के लिए जीना चाहता है। एक गे वह भी है जिसे शास्त्रों और दर्शन का 90% स्ट्रैट लोगो से अच्छा ज्ञान है। कितने ही गे वे हैं जो वकील, डॉक्टर, इंजिनियर, टाउन प्लानर, सिविल-सर्वेंट, मेनेजर और अन्य अच्छे प्रोफेशनस से सम्बंधित हैं। ये वही सब लोग है जिनका किसी न किसी कारण से आप सभी आदर करते पाए जाते है। तो क्या आप इनका आदर तभी तक करेंगे जब तक ये एक झूठा चेहरा लगाये आपके आस-पास रहे? अचानक इनके रुझान का पता चलते ही ये लोग आपके लिए 'घिनोने' कैसे हो जाते है? अगर आप ईश्वर को मानने वाले व्यक्ति है तो जरा सोचिये कि गेस से घ्रणा करके और उनके लिए परिस्तिथियों को प्रतिकूल बना कर आप किसी प्रकार का पाप तो नहीं कर रहे?
Sunday, 24 February 2013
गे समाज
पुरानी हिंदी फिल्मो में अक्सर एक बढ़िया उदाहरण देखने को मिलता था। कोई ग्रामीण व्यक्ति परिस्तिथि-वश एक बड़े शहर या विदेश पहुँच जाता है और वहाँ उसे सब कुछ अजनबी सा मिलता है। किसी भी प्रकार वह किसी अपने जैसे व्यक्ति को खोजता है जिससे वह अपने मन की बात कह सके। पहला मौका मिलते ही वह अपने गाँव भाग जाना चाहता है। कोई भी व्यक्ति जो कुछ लम्बे समय तक किसी अनजान और मित्र-विहीन शहर में रहा हो ऐसे दृश्यों से अपने आप को जोड़ सकता है। आज की फिल्मो में जहाँ मूल अभिनेता और अभिनेत्री अक्सर विदेशो में ही पले बड़े होते है इस तरह के उदाहरण खोजना एक दुस्साहसिक काम से कम नहीं है। कभी कभी मैं स्वयं की स्तिथि भी कुछ ऐसी ही अनुभव करता हूँ। Facebook के द्वारा मुझे लगातार तीसरी बार Block करने के बावजूद मेरे अन्दर कुछ है जो मुझे पुनः Facebook join करने के लिए उकसा रहा है। Facebook के द्वारा मुझे block किये जाने की जो वजह मुझे समझ आती है वह संभवतया मेरे द्वारा अनजान लोगो की Friends' Requests को स्वीकार किया जाना हो सकता है (क्योकि मेरे सबसे पहले Profile में मेरे Friends 5000 के ऊपर पहुँच गए थे और उसके बाद बने profiles में मैं काफी सोच समझ कर कुछ चुनिन्दा लोगो को ही Request भेज रहा था, इस कारण मेरे द्वारा अंधाधुंध Friends Requests भेजा जाना मुझे block करने का कारण नहीं हो सकता।) खैर वजह चाहे जो भी रही हो 1 महीने से कुछ अधिक प्रतीक्षा करने के बाद मुझे दोबारा Facebook join करने का मन हो रहा है। ऐसा नहीं कि यह Facebook Addiction का परिणाम है क्योंकि अधिकांश गेस की तरह मेरा भी एक परिवार, मित्रो और दुनिया के लिए एक 'Real' account है जिससे मैं अक्सर ही Facebook का प्रयोग करता हूँ। तब क्या है जो मुझे बाकी गेस की तरह एक 'Fake' account बनाने को बाध्य कर रहा है? असल में एक गे व्यक्ति भी इस स्ट्रैट संसार में अपने को अकेला पता है। यहाँ कोई नहीं है जिससे वह अपने मन की बात कह सके, उल्टा उसे इस बात का भय सताता रहता है कि कहीं किसी ने उसकी सच्चाई जान ली तो रही-सही सुविधा भी हाथ से चली जाएगी। जी हाँ, 'सुविधा'. सदां अपने अन्दर की सच्चाई को मार कर मिलने वाले 'सम्मान', 'परिवार' और 'एक झूठे चेहरे' की सुविधा। चूँकि अपने अन्दर की मूल भावनाओं को अपने अन्दर ही दबा कर रखना किसी बीज को खुले आकाश के नीचे मिटटी में दबा कर रखने जैसा ही है इसलिए किसी भी छोटी-मोटी घटना की बदली से बरसा सुख-दुःख रूपी पानी कभी भी दबी हुई भावनाओं के बीजों को अंकुरित कर सकता है। यही कारण है कि एक गे व्यक्ति भरसक कोशिश करने के बाद भी अपने आप को अपने जैसे किसी व्यक्ति के पास जाने से नहीं रोक पाता (यहाँ मैं यह स्पष्ट कर देना चाहूँगा कि पास जाने से मेरा आशय एक गे का किसी दूसरे गे के पास केवल sex के लिए जाने से नहीं है, यह ठीक उसी प्रकार का संपर्क भी हो सकता है जैसा कि दो स्ट्रैट दोस्तों में होता है जब वे अक्सर शाम होने पर मिलते है और दिन भर की बातें करते है। ) सौभाग्य से कहिये या दुर्भाग्य से, Facebook ऐसे गे व्यक्तियों को अपने जैसे अनेको लोगो के संपर्क में आने का एक अच्छा जरिया बन गया है जहाँ वे अपनी Privacy को बनाये रखते हुए भी अपने जैसे दूसरे लोगों से अपने मन की बात कह सुन सकते है। जहाँ तक मेरे Facebook पर दुबारा account बनाने का प्रश्न है उसकी एक बड़ी वजह वे चुनिन्दा लोग है जो लगभग एक अच्छे दोस्त बन ही चुके हैं। दूसरी बड़ी वजह गेस के बीच अलग अलग मुद्दों से जुडी बात उठाने का मेरा 'व्यसन' भी है। पिछले 2-3 वर्षों में जितना मैं Facebook के इस 'गे-समाज' को समझ पाया हूँ, मुझे लगता है कि आम धारणा के विपरीत यहाँ ऐसे अनेकों लोग है जो sex के बजाए एक ऐसे सम्बन्ध की तलाश में है जो जीवनपर्यंत चले। ये बात दूसरी है कि बहुमत उन्ही लोगो का है जो निजी कायरतावश एक पुरुष के साथ पवित्र सम्बन्ध बनाने के बारे में सोचते तक नहीं है और अपनी दोहरी मानसिकता जो सिर्फ निजी सुख पर आधारित है, के प्रभाव में आकर sex के लिए लालायित होकर अशलीलता का शोर मचाये रखते है। बहुत ही कम ऐसे लोग है जो अपने द्वारा किये जा रहे 'विपरीत-आचरण' पर शर्मिंदा है और "मैं न कर सका पर तुम जो कर रहे हो वह सराहनीय है" का भाव रखते है। चूँकि Sex के भूखे और शर्मनाक आचरण करने वाले बहुत शोरगुल करते है और दूसरी ओर एक सच्चा सम्बन्ध चाहने वाले सही होते हुए भी शर्मिंदा और चुप रहते है, इस भ्रान्ति को और बल मिल जाता है कि गेस में कोई भी सच्चा प्यार और जीवनपर्यंत का सम्बन्ध चाहने वाला नहीं है। दुःख की बात यह है कि ऐसा वे लोग भी सोचना शुरू कर देते है जो स्वयं एक सच्चे सम्बन्ध की तलाश में होते है और सबसे अधिक पीड़ा मुझे इसी बात से होती है। जो थोड़े बहुत गे लोग Relationships में आस्था रखते है और उसे पाने के लिए प्रयत्न भी करना चाहते है, भ्रांतियों के कारण थक कर बैठ जाते है। यही सब वे बाते है जो किसी के द्वारा प्रकाश में लायी जानी चाहियें, पर गेस से किसी को भी किसी भी प्रकार की सहानुभूति न होने के कारण ऐसा करने वाला कोई नहीं मिलता। कितने ही ऐसे गेस मेरी posts पड़कर मुझसे अपने मन की भावनाएँ, डर, और इच्छाएँ बताया करते थे, मैं भी अपने विवेकानुसार उनका हौसला बड़ाने वाली बाते उनसे कहता था और जब मेरा मन किसी बात से दुखी होता था या जब मैं हिम्मत हारने लगता था तो कोई और गे-मित्र मुझे ढाढस बंधा देता था। इस प्रकार फेसबुक के इस गे समाज के कुछ लोगों ने हमारे असल जिन्दगी के स्ट्रैट समाज की अंतर्निहित कमियों को पूरा करने में भरपूर योगदान दिया हुआ था। Account के block होने से अपने गे व्यक्तित्व की सामाजिक भूख शांत न हो पाना ही शायद मुझे Facebook पर लौटने के लिए सबसे अधिक विवश कर रहा है। पर Facebook के नियम कायदों की न तो मुझे पूरी समझ है और न ही ये नियम क़ायदे शाश्वत है अतः यह दर तो बना ही रहेगा कि कहीं मुझे दोबरा block न कर दिया जाये। अस्तु जो भी हो देखा जायेगा।
Tuesday, 12 February 2013
आंखे फाड़-फाड़ कर क्यों देखते है?
Monday, 11 February 2013
Wednesday, 6 February 2013
2 खबरें और भाव-प्रवाह (2)
...... Cont From '2 खबरें और भाव-प्रवाह (1)'
मेरा ऐसा कहना नहीं है कि इन बातों पर चर्चा नहीं होनी चाहिए। पर एक मनुष्य की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन किसी दूसरे मनुष्य के एक 'जीवित प्राणी' की भांति जीने के अधिकार पर प्रतिबन्ध से अधिक गंभीर नहीं हो सकता। अपना साथी चुनने का एक ऐसा अधिकार जो पशुओं को भी उपलब्ध है हज़ारों मनुष्यों से छीना जा रहा है और सरकार से लेकर न्यायालय अपनी स्वयं की बनाई हुई रफ़्तार से चल रहे है! क्या कारण है कि सरकार को एक ऐसा निर्णय लेने में वर्षों का समय और न्यायालय की फटकार आपेक्षित है जिसको एक 17-18 वर्ष के एक संतुलित मस्तिष्क के व्यक्ति की स्वाभाविक समझ से कुछ मिनटों में लिया जा सकता है।
14 फरवरी का दिन नजदीक आ रहा है और दिल्ली एवं मुंबई जैसे शहरों के युवाओं को इस बात की चिंता सता रही है कि अगर इस दिन उनसे उनके साथी का हाथ पकड़कर किसी Shopping Mall या किसी 'Connaught Place' में घूमने का अधिकार छीना गया तो मानो Inca सभ्यता के द्वारा की गई प्रलय की भविष्यवाणी सच हो जाएगी। ऐसी Straight मित्रो से मेरा केवल इतना ही आग्रह है कि इस अवसर पर कुछ क्षणों के लिए अपने उन छुपे हुए Gay मित्रो के बारे में भी सोच लीजियेगा जिन्हें इस अधिकार से हमेशा से वंचित रखा गया है। आप तो किसी और दिन भी (जो किसी छोटे मोटे संगठन को मीडिया में आने के लिए पर्याप्त अवसर नहीं देता है) अपनी 'Date' के साथ स्वतंत्रता से इस तरह घूम-फिर सकते है, पर आपके वे बेचारे Gay मित्र जो आपकी उपेक्षा और समाज के विरोध के कारण अपनी इच्छाओं का गला ना चाहते हुए स्वयं ही घोंट देते है, शायद ही जीवन में एक दिन के लिए भी अपनी वे ख्वाहिशे पूरी कर पाते हो! जो कहने को तो इंसान है पर उन्हें वे मूलभूत सुख भी उपलब्ध नहीं है जो एक पशु को भी सहज प्राप्त है। क्या ऐसे लोगो के विषय में आप लोगों को नहीं सोचना चाहिए! पर खैर, आप तो Gays पर Joke सुनना और मूलधारा की हिन्दी फिल्मों में Gays पर बनाये गए भद्दे मज़ाकों पर हँसना ही जानते हैं।
मेरा यह सब कहना हो सकता है कि मेरे शिकायती स्वाभाव का परिचायक हो, पर आप ही बतायें संसार के उन देशो में, जिनकी श्रेणी मे 'हमारा' देश भी शामिल होने के सपने देखता है, यह सब हो रहा हो तो मैं शिकायत क्यों न करूँ? मेरे पास ना तो कमल हसन या अन्य लोगो जितने साधन हैं कि मैं किसी दूसरे देश में बसने की बात सोचू और ना ही ऐसा है कि मुझे मेरे देश से अधिक लगाव नहीं है या मेरे अन्दर अपने देश पर मेरे अधिकार की भावना नहीं है, जिस कारण से मैं अपना अधिकार अपने देश से ना माँगू ! मुझे तो इसी देश में रहना है और वो भी मेरे मूलभूत अधिकारों के साथ। ऐसे में मैं किस से लडू और किस से शिकायत न करूँ।
~Prove That Gays Can Love Too.
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