पुरानी हिंदी फिल्मो में अक्सर एक बढ़िया उदाहरण देखने को मिलता था। कोई ग्रामीण व्यक्ति परिस्तिथि-वश एक बड़े शहर या विदेश पहुँच जाता है और वहाँ उसे सब कुछ अजनबी सा मिलता है। किसी भी प्रकार वह किसी अपने जैसे व्यक्ति को खोजता है जिससे वह अपने मन की बात कह सके। पहला मौका मिलते ही वह अपने गाँव भाग जाना चाहता है। कोई भी व्यक्ति जो कुछ लम्बे समय तक किसी अनजान और मित्र-विहीन शहर में रहा हो ऐसे दृश्यों से अपने आप को जोड़ सकता है। आज की फिल्मो में जहाँ मूल अभिनेता और अभिनेत्री अक्सर विदेशो में ही पले बड़े होते है इस तरह के उदाहरण खोजना एक दुस्साहसिक काम से कम नहीं है। कभी कभी मैं स्वयं की स्तिथि भी कुछ ऐसी ही अनुभव करता हूँ। Facebook के द्वारा मुझे लगातार तीसरी बार Block करने के बावजूद मेरे अन्दर कुछ है जो मुझे पुनः Facebook join करने के लिए उकसा रहा है। Facebook के द्वारा मुझे block किये जाने की जो वजह मुझे समझ आती है वह संभवतया मेरे द्वारा अनजान लोगो की Friends' Requests को स्वीकार किया जाना हो सकता है (क्योकि मेरे सबसे पहले Profile में मेरे Friends 5000 के ऊपर पहुँच गए थे और उसके बाद बने profiles में मैं काफी सोच समझ कर कुछ चुनिन्दा लोगो को ही Request भेज रहा था, इस कारण मेरे द्वारा अंधाधुंध Friends Requests भेजा जाना मुझे block करने का कारण नहीं हो सकता।) खैर वजह चाहे जो भी रही हो 1 महीने से कुछ अधिक प्रतीक्षा करने के बाद मुझे दोबारा Facebook join करने का मन हो रहा है। ऐसा नहीं कि यह Facebook Addiction का परिणाम है क्योंकि अधिकांश गेस की तरह मेरा भी एक परिवार, मित्रो और दुनिया के लिए एक 'Real' account है जिससे मैं अक्सर ही Facebook का प्रयोग करता हूँ। तब क्या है जो मुझे बाकी गेस की तरह एक 'Fake' account बनाने को बाध्य कर रहा है? असल में एक गे व्यक्ति भी इस स्ट्रैट संसार में अपने को अकेला पता है। यहाँ कोई नहीं है जिससे वह अपने मन की बात कह सके, उल्टा उसे इस बात का भय सताता रहता है कि कहीं किसी ने उसकी सच्चाई जान ली तो रही-सही सुविधा भी हाथ से चली जाएगी। जी हाँ, 'सुविधा'. सदां अपने अन्दर की सच्चाई को मार कर मिलने वाले 'सम्मान', 'परिवार' और 'एक झूठे चेहरे' की सुविधा। चूँकि अपने अन्दर की मूल भावनाओं को अपने अन्दर ही दबा कर रखना किसी बीज को खुले आकाश के नीचे मिटटी में दबा कर रखने जैसा ही है इसलिए किसी भी छोटी-मोटी घटना की बदली से बरसा सुख-दुःख रूपी पानी कभी भी दबी हुई भावनाओं के बीजों को अंकुरित कर सकता है। यही कारण है कि एक गे व्यक्ति भरसक कोशिश करने के बाद भी अपने आप को अपने जैसे किसी व्यक्ति के पास जाने से नहीं रोक पाता (यहाँ मैं यह स्पष्ट कर देना चाहूँगा कि पास जाने से मेरा आशय एक गे का किसी दूसरे गे के पास केवल sex के लिए जाने से नहीं है, यह ठीक उसी प्रकार का संपर्क भी हो सकता है जैसा कि दो स्ट्रैट दोस्तों में होता है जब वे अक्सर शाम होने पर मिलते है और दिन भर की बातें करते है। ) सौभाग्य से कहिये या दुर्भाग्य से, Facebook ऐसे गे व्यक्तियों को अपने जैसे अनेको लोगो के संपर्क में आने का एक अच्छा जरिया बन गया है जहाँ वे अपनी Privacy को बनाये रखते हुए भी अपने जैसे दूसरे लोगों से अपने मन की बात कह सुन सकते है। जहाँ तक मेरे Facebook पर दुबारा account बनाने का प्रश्न है उसकी एक बड़ी वजह वे चुनिन्दा लोग है जो लगभग एक अच्छे दोस्त बन ही चुके हैं। दूसरी बड़ी वजह गेस के बीच अलग अलग मुद्दों से जुडी बात उठाने का मेरा 'व्यसन' भी है। पिछले 2-3 वर्षों में जितना मैं Facebook के इस 'गे-समाज' को समझ पाया हूँ, मुझे लगता है कि आम धारणा के विपरीत यहाँ ऐसे अनेकों लोग है जो sex के बजाए एक ऐसे सम्बन्ध की तलाश में है जो जीवनपर्यंत चले। ये बात दूसरी है कि बहुमत उन्ही लोगो का है जो निजी कायरतावश एक पुरुष के साथ पवित्र सम्बन्ध बनाने के बारे में सोचते तक नहीं है और अपनी दोहरी मानसिकता जो सिर्फ निजी सुख पर आधारित है, के प्रभाव में आकर sex के लिए लालायित होकर अशलीलता का शोर मचाये रखते है। बहुत ही कम ऐसे लोग है जो अपने द्वारा किये जा रहे 'विपरीत-आचरण' पर शर्मिंदा है और "मैं न कर सका पर तुम जो कर रहे हो वह सराहनीय है" का भाव रखते है। चूँकि Sex के भूखे और शर्मनाक आचरण करने वाले बहुत शोरगुल करते है और दूसरी ओर एक सच्चा सम्बन्ध चाहने वाले सही होते हुए भी शर्मिंदा और चुप रहते है, इस भ्रान्ति को और बल मिल जाता है कि गेस में कोई भी सच्चा प्यार और जीवनपर्यंत का सम्बन्ध चाहने वाला नहीं है। दुःख की बात यह है कि ऐसा वे लोग भी सोचना शुरू कर देते है जो स्वयं एक सच्चे सम्बन्ध की तलाश में होते है और सबसे अधिक पीड़ा मुझे इसी बात से होती है। जो थोड़े बहुत गे लोग Relationships में आस्था रखते है और उसे पाने के लिए प्रयत्न भी करना चाहते है, भ्रांतियों के कारण थक कर बैठ जाते है। यही सब वे बाते है जो किसी के द्वारा प्रकाश में लायी जानी चाहियें, पर गेस से किसी को भी किसी भी प्रकार की सहानुभूति न होने के कारण ऐसा करने वाला कोई नहीं मिलता। कितने ही ऐसे गेस मेरी posts पड़कर मुझसे अपने मन की भावनाएँ, डर, और इच्छाएँ बताया करते थे, मैं भी अपने विवेकानुसार उनका हौसला बड़ाने वाली बाते उनसे कहता था और जब मेरा मन किसी बात से दुखी होता था या जब मैं हिम्मत हारने लगता था तो कोई और गे-मित्र मुझे ढाढस बंधा देता था। इस प्रकार फेसबुक के इस गे समाज के कुछ लोगों ने हमारे असल जिन्दगी के स्ट्रैट समाज की अंतर्निहित कमियों को पूरा करने में भरपूर योगदान दिया हुआ था। Account के block होने से अपने गे व्यक्तित्व की सामाजिक भूख शांत न हो पाना ही शायद मुझे Facebook पर लौटने के लिए सबसे अधिक विवश कर रहा है। पर Facebook के नियम कायदों की न तो मुझे पूरी समझ है और न ही ये नियम क़ायदे शाश्वत है अतः यह दर तो बना ही रहेगा कि कहीं मुझे दोबरा block न कर दिया जाये। अस्तु जो भी हो देखा जायेगा।
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