Wednesday, 6 February 2013

2 खबरें और भाव-प्रवाह (2)

...... Cont From  '2 खबरें और भाव-प्रवाह (1)'
मेरा ऐसा कहना नहीं है कि इन बातों पर चर्चा नहीं होनी चाहिए। पर एक मनुष्य की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन किसी दूसरे मनुष्य के एक 'जीवित प्राणी' की भांति जीने के अधिकार पर प्रतिबन्ध से अधिक गंभीर नहीं हो सकता। अपना साथी चुनने का एक ऐसा अधिकार जो पशुओं को भी उपलब्ध है हज़ारों मनुष्यों से छीना जा रहा है और सरकार से लेकर न्यायालय अपनी स्वयं की बनाई हुई रफ़्तार से चल रहे है! क्या कारण है कि सरकार को एक ऐसा निर्णय लेने में वर्षों का समय और न्यायालय की फटकार आपेक्षित है जिसको एक 17-18 वर्ष के एक संतुलित मस्तिष्क के व्यक्ति की स्वाभाविक समझ से कुछ मिनटों में लिया जा सकता है।

14 फरवरी का दिन नजदीक रहा है और दिल्ली एवं मुंबई जैसे शहरों के युवाओं को इस बात की चिंता सता रही है कि अगर इस दिन उनसे उनके साथी का हाथ पकड़कर किसी Shopping Mall या किसी 'Connaught Place' में घूमने का अधिकार छीना गया तो मानो Inca सभ्यता के द्वारा की गई प्रलय की भविष्यवाणी सच हो जाएगी। ऐसी Straight मित्रो से मेरा केवल इतना ही आग्रह है कि इस अवसर पर कुछ क्षणों के लिए अपने उन छुपे हुए Gay मित्रो के बारे में भी सोच लीजियेगा जिन्हें इस अधिकार से हमेशा से वंचित रखा गया है। आप तो किसी और दिन भी (जो किसी छोटे मोटे संगठन को मीडिया में आने के लिए पर्याप्त अवसर नहीं देता हैअपनी 'Date' के साथ स्वतंत्रता से इस तरह घूम-फिर सकते हैपर आपके वे बेचारे Gay मित्र जो आपकी उपेक्षा और समाज के विरोध के कारण अपनी इच्छाओं का गला ना चाहते हुए स्वयं ही घोंट देते है, शायद ही जीवन में  एक दिन के लिए भी अपनी वे ख्वाहिशे पूरी कर पाते होजो कहने को तो इंसान है पर उन्हें वे मूलभूत सुख भी उपलब्ध नहीं है जो एक पशु को भी सहज प्राप्त है। क्या ऐसे लोगो के विषय में आप लोगों को नहीं सोचना चाहिए! पर खैर, आप तो Gays पर Joke सुनना और मूलधारा की हिन्दी फिल्मों में Gays पर बनाये गए  भद्दे मज़ाकों पर हँसना ही जानते हैं।

मेरा यह सब कहना हो सकता है कि मेरे शिकायती स्वाभाव का परिचायक हो, पर आप ही बतायें संसार के उन देशो में, जिनकी श्रेणी मे 'हमारादेश भी शामिल होने के सपने देखता है, यह सब हो रहा हो तो मैं शिकायत क्यों करूँ? मेरे पास ना तो कमल हसन या अन्य लोगो जितने साधन हैं कि मैं किसी दूसरे देश में बसने की बात सोचू और ना ही ऐसा है कि मुझे मेरे देश से अधिक लगाव नहीं है या मेरे अन्दर अपने देश पर मेरे अधिकार की भावना नहीं हैजिस कारण से मैं अपना अधिकार अपने देश से ना माँगू ! मुझे तो इसी देश में रहना है और वो भी मेरे मूलभूत अधिकारों के साथ। ऐसे में मैं किस से लडू और किस से शिकायत करूँ।

~Prove That Gays Can Love Too.

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