अगर ‘स्त्री पुरुष का ही संग
होना’ किसी प्रकार का नियम है तो स्वामी रामतीर्थ की यह उक्ति उल्लेखनीय है:
“केवल प्रेम को ही नियम भंग
करने का अधिकार है.”
मुझे विश्वास है कि यदि
प्रेम का इस तरह का वर्णन करने वाले महापुरुष आज होते तो उन्हें दो पुरुषो अथवा दो
स्त्रियों के बीच के संबंधो पर टिपण्णी करने जैसा कुछ विशेष नहीं लगता. आज भी अनेको
संत एवं महापुरुष है जो इसे विशेष टिपण्णी के योग्य नहीं मानते (क्योंकि ईश्वरीय धर्म
की दृष्टि से आसक्ति चाहें स्त्री में हो या पुरुष में – आसक्ति – आसक्ति ही है).
और मैं ‘बाबा रामदेव’ सरीखे लोगों की बात नहीं कर रहा हूँ.
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