Saturday, 2 November 2013

दीपावली पर दुस्साहसिक शुभेच्छा (Foolhardy Wishes On Deepawali)

दीपावली पर खरीददारी किस को अच्छी नहीं लगती... यूँ तो त्यौहार की अधिकाँश खरीददारी परिवार के बाकी लोग कर चुके थे, पर कुछ एक सामान लेने के लिए कल शाम मुझे घर से कुछ दूर स्तिथ एक Departmental Store जाना पड़ा. Shopping के दौरान पैसे खर्च करके मिलने वाली कुछ देर की ‘मानसिक राहत’ पाने के लिए मैं भी व्यग्र था. पर जब वहाँ पहुंचा तो हालत बिल्कुल अलग थे. जिस भी तरफ देखता था, एक प्रकार की अशांति और चिंता मन पर हावी होती जा रही थी. अशांति और चिंता का कारण स्पष्ट था. अधिकाँश लोग जो Shopping करने आए थे अपने बच्चों के साथ थे. हर तरफ बच्चे खिलखिला रहे थे या अपने मम्मी और पापा को परेशान कर रहे थे. कितने ही लोग अपने बच्चों को सामान ढ़ोने में उपयोंग होने वाली ट्रालियों में Shopping Complex की सैर करवा रहे थे. यही सब देखकर मेरा मन अशांत हो रहा था. निकट भविष्य में ऐसा कर पाने की असम्भावना / असमर्थता का तो मुझे पता ही था पर असली चिंता यह हो रही थी कि क्या इस जीवन में कभी ऐसा पल, ऐसा सुख मैं खुद अनुभव कर पाऊंगा भी या नहीं. कानूनी और व्यवहारिक अडचनों से भली भाँती परिचित होने के उपरान्त भी मेरा मन ऐसी इच्छा करने का ‘दुस्साहस’ कर रहा था. आखिर एक साधारण व्यक्ति के मन से ‘संत’ होने की आपेक्षा करना तो व्यर्थ ही है इसी कारण से जीवन में एक जीवन-साथी होने की इच्छा पूरी (लगभग पूरी) होने के बाद भी यह ‘नई’ इच्छा जब तब सिर उठती ही रहती है. खैर... अपनी ‘दुस्साहसिक’ इच्छाओं को बताने के चक्कर में आप सभी को दीप-पर्व की अग्रिम शुभकामनाये तो देना भूल ही गया. आप सभी के लिए यह दीपमाला पर्व शुभ हो और ईश्वर आप सभी की ढकी छुपी और दबाई गई उन सभी कामनाओं को पूरा करें जो समाज के अधिकाँश लोगों को सहज ही प्राप्त हैं.   

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