Sunday, 4 December 2016

The Strange Custom of Love!

लिपटा है मेरे दिल से किसी राज़ की सूरत ,
वो शख्स के जिस को मेरा होना भी नहीं है ,
यह इश्क़-ओ-मोहब्बत की रिवायत भी अजब है ,
पाना भी नहीं है , उसे खोना भी नहीं है !!

दुनिया

ऐसे भी मोहब्बत की सजा देती है दुनिया ,
मर जाएँ तो जीने की दुआ देती है दुनिया ,
हम कौन से शहंशाह थे जो इलज़ाम न सहते ,
पत्थर को भगवान बना देती है दुनिया ,
मरने के लिए मजबूर तो करती है ये लेकिन ,
जीने के तरीके भी ये सिखा देती है दुनिया 
 

काश...!!

काश आ जाए मुझे जान से गुज़रते देखे ,
उसकी ख्वाहिश थी कभी मुझको बिखरते देखे ,
वो सलीके से हुआ मुझ से गुरेज़ाँ वरना ,
लोग तो साफ़ मोहब्बत से मुकरते देखे ,
तुम ने देखा है निकलता हुआ सूरज लोगो ,
तुमने कुछ ख्वाब सुहाने नहीं मरते देखे ,
वक़्त होता है हर इक ज़ख़्म का मरहम शायद ,
फिर भी कुछ ज़ख़्म थे ऐसे जो न भरते देखे

When I Look At You

देखकर तुमको सोचता हूँ मैं,
क्या किसी ने तुम्हे छुआ होगा

Together

Together I want to visit each mountain and each  beach  in the world.

Missing All Those  Innocent Kisses!

Missing All Those  Innocent Kisses!

Thursday, 17 November 2016

Propaganda machinery

Propaganda machinery is at work at more than 100% capacity!
Day after day, seeing  some media channels interviewing disgruntled people in the queues to withdraw cash is itself sickening…  but it becomes unbearable when 80% of time interviewed people are non but Muslims (and we know India Muslims are no fan of PM Modi). More surprising is the fact that people from this apparently educationally backward community don’t go to some local  bank branch but directly to RBI, furthermore shocking is the fact that many of Muslims standing in queue outstand RBI Delhi are from adjoining state UP (One such interviewee even hailed Azam Khan and Mulayum Singh on a news channel  this morning).
Even in metros two apparently educated guys loudly cursing Government for demonetization said “Allah Hafiz…” while departing.
On Barakhamba Road, if you see people standing in queues outside all the banks, you might begin to think that India has already become Muslim majority country.
A banker friend from Bangalore said, situation there has become normal. Yet no news channel would show you that.
As I said propaganda machinery is working day and night at more than 100% capacity!

Monday, 14 November 2016

इल्म न था

तुझसे मैं जिस्म चुराता था
मगर इल्म न था...
मेरे साये से लिपट जाएंगे
बाज़ू तेरे...
<3 <3 <3 <3 <3 <3 <3

Tuesday, 11 October 2016

आपबीती

उस रात को मम्मी ने सिर पर हाथ फिराया और एक सफ़ेद बाल देखकर कहा, “बेटा अब तो कर ले शादी... और कब करेगा? अकेले बुढ़ापा काटना कठिन है.”

मैं कहना चाहता था कि यह सब मैं अच्छी तरह जानता हूँ... पर क्या करूँ? फिर सोचा, बेटे की ज़िद से ज्यादा दुःख उसकी बेबसी से होगा मम्मी को. इसलिए चुपचाप अपने bed पर जाकर रो लिया.


~ Prove That Gays Can Love Too.

आपबीती

उस रात को मम्मी ने सिर पर हाथ फिराया और एक सफ़ेद बाल देखकर कहा, “बेटा अब तो कर ले शादी... और कब करेगा? अकेले बुढ़ापा काटना कठिन है.”

मैं कहना चाहता था कि यह सब मैं अच्छी तरह जानता हूँ... पर क्या करूँ? फिर सोचा, बेटे की ज़िद से ज्यादा दुःख उसकी बेबसी से होगा मम्मी को. इसलिए चुपचाप अपने bed पर जाकर रो लिया.

~ Prove That Gays Can Love Too.

Friday, 13 May 2016

Crossing A Highway

तेजी से जाती कारों से भरे Highway के किनारे खड़े उसे रास्ता पार करने के मौके का इंतज़ार करते करते काफी देर हो चुकी थी. दो लोगों को साथ साथ उसने रास्ता पार करते दूर से देखा था. वह भी किसी और रास्ता पार करने वाले व्यक्ति की प्रतीक्षा कर रहा था जिसके साथ वह भी उस पागलपन से भरे highway को पार कर सके. (बाकी दिन जो व्यक्ति साथ होता था, आज वह नहीं था.) पर अब काफी देर हो चुकी थी... इसीलिए उसने साहस किया और डरते डरते तेजी से आती गाड़ियों को हाथ दिखाते हुए, रास्ता पर कर ही लिया.

दूसरी पार पहुंचकर एक क्षण को उसके मन में आत्मविश्वास जागा कि अब वह अकेले भी वह रास्ता पार कर सकता है, फिर दो कदम ही चला था कि फूट-फूट कर रो दिया. रोने का कारण? यह बात सच थी कि अब वह अकेले भी उस highway को पार कर सकता था, पर अकेले highway को पार करते हुई उसकी मनोदशा उस समय की मनो दशा से कहीं अलग थी जब वह किसी के साथ उस चौड़ी सड़क को पार किया करता था.


मनोदशा का यह अंतर ठीक उस अंतर जैसा ही था जो जीवन को अकेले और किसी के साथ काटने के बीच होता है. निसंदेह आप जीवन अकेले काट सकते हैं और इससे कुछ हद तक आपमें आत्मविश्वास भी आ जाता है... पर जब आप देखते हैं कि इस आत्मविश्वास के साथ जीवन कट तो जाता है पर उसमे जीवन को किसी के साथ व्यतीत करने जैसा सुख नहीं रहता तो आपको वह आत्मविश्वास एक ऐसी सजावट जैसा लगने लगता है जिसे देख कुछ लोग आपकी प्रशंसा तो करते है पर उस सजावट को पहनने से होने वाला कष्ट उस प्रशंसा से हुए सुख को निरस्त कर देता है. 

Thursday, 14 April 2016

The Bubble I Live In



From the pen of a reader who is also an old friend and who went through something which every gay goes through... but only a few notice the implications...

I suddenly was confronted by the vulnerability associated with being Gay. I knew about them, but were something 

which were not part of my life. I suddenly realized the difference between knowing about the problems which a Gay might face in his life and facing the problems in real. After all, I had the best family a gay man/woman can aspire for, nice supportive friends, good career... my closeted married gay friends would be envious of my life, till one day. 

A kiss emogi, broke the hell in my beloved's life. I used to speak to him frequently, or exchanged messages on whatsapp. The emogi was nothing new... it had been the smallest of the gestures to say I cared, and that I was around, or that I was thinking of him. The "ji" in return of my simple text "hey" conveyed sooo much. And as a reward I would send him some emogi or just say "kuch nahi bas aise hi". Such an exchange would give us a piece of each other, in our daily hustle and bustle of work. 

Till a few days back, it was soo emotionally rewarding exchange, but a day came when a Straight colleague had looked at the kiss emogi on my beloved's phone. The scene in our lives changed. Although I was not directly facing the stares, the weird looks of colleagues.... but I could certainly feel the urge to bring him out of that situation, before it turns into a hardship. I felt soo vulnerable at the hands of straight society. I sensed the silence and screams emanating from him. All of a sudden the wonderland I used to live in, had vanished; the bubble had been burst.The emotionally rewarding exchange was silence now.

Saturday, 9 April 2016

Punishment for Love


"O Justice! Please wait for some time, we are trying to find what is wrong with our 'crime'. Isn't being imprisoned in love a sufficient punishment? Then why are you people searching for any other punishment for this crime?"

Sunday, 3 April 2016

भूख

मुझे तो आज तक ये बात समझ नहीं आई कि “भोजन” पाने के लिए प्रयत्न बंद कर देने से कैसे भूख शांत हो जाती है...!!

माना कि यहाँ (गे लोगों के संसार में जो Facebook या अन्य जगहों पर दीख पड़ता है) काफी धोखे हैं, अधिकाँश को “संबंध” क्या होता है, इस बात की समझ नहीं है, जिनको समझ है उनके पास दिखने के लिए साहस नहीं आदि आदि... पर यह सब होते हुए भी आपके अंतःकरण में एक संबंध में होने की अथवा प्यार पाने की भूख तो वैसी की वैसी बनी रहती है न...? तब तंग आकर इसके लिए प्रयत्न बंद कर देने से क्या वह भूख शांत हो जायेगी...?

Wednesday, 23 March 2016

होलिका दहन - Significance

“कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति”

श्री भगवान गीता में कहते हैं कि हे अर्जुन ये बात निश्चित जान ले कि मेरे भक्त का नाश नहीं होता.

होलिका दहन का उत्सव भी यही दर्शाता है कि सभी भूतों में एक श्री हरि को ही देखने वाले भक्त प्रह्लाद का उनके अहंकारी और अत्यंत शक्तिशाली पिता बाल भी बांका नहीं कर पाए.

सभी को होलिका दहन की हार्दिक शुभकामनाएं.

Wednesday, 9 March 2016

पर फिर भी...

कल एक साधारण से दिल्ली के लड़के से बात हुई जो अपनी एक छोटी सी दुकान चलता है. बोलने में उसे हकलाने की समस्या थी पर जो विचार उसने हकलाते हुए हिंदी में मेरे सामने रखे वैसे विचार शायद फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वालों के ‘बड़े दिमागों’ में आते तक नहीं होंगे. 

उसने बताया कि वह एक गे है और कभी किसी लड़की से शादी नहीं करेगा क्यूंकि वह अपना जीवन संवारने के लिए किसी निर्दोष इंसान की बलि नहीं दे सकता. जीवन साथी मिले तो इससे बड़ी बात क्या होगी पर न भी मिले तो भी वह अपने इस निर्णय पर अटल है.

डॉक्टरों, वकीलों, इन्जीनीरों और बाकी सब प्रोफेशनल लोगों से कम पड़ा लिखा वह इंसान खड़ा खड़ा नंगा कर गया.

कौन नहीं चाहता कि उसका भविष्य अनिश्चितताओं से परे हो, कौन नहीं चाहता कि उसे व्यर्थ में लोगों के चुभते हुए प्रश्नों से न उलझना पड़े, कौन नहीं चाहता कि बिना प्रयास के उसको भी एक परिवार का सुख मिले? पर अक्सर देखा गया है कि जिन लोगों को वे सभी साधन उपलब्ध है जिनसे वे भविष्य की अनिश्चितताओं और लोगों के चुभते प्रश्नों से लड़ सकते है, थोड़ी भी असुविधा नहीं उठाना चाहते. या शायद उनको अपनी झूठी प्रतिष्ठा इतनी प्यारी होती है कि उसे बचाने के लिए वे किसी इंसान की बलि लेना भी अपराध नहीं समझते.

मै जानता हूँ कि इस सब को पड़कर किसी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला, जिसको जो करना है वह वही करेगा.. पर फिर भी...

Friday, 26 February 2016

The Great Encouragement

It is always a pleasant surprise when an old gay friend calls you after months and discloses though he wasn’t in touch with you actively but was following whatever posts you were writing on the blog and Facebook. 

And what more? The reason he never commented on anything because he found everything so perfect that nothing was needed to be added to it.

Great encouragement in such a hard time!! Thank you.

The "About Me"

A page follower on Facebook read my 'about me' and requested to share the same on page. Therefore sharing it simultaneously on blog as well.

Sunday, 21 February 2016

तिरोभाव

एक बार जानवरों में नैतिकता जानने के लिए कुछ शोधकर्ताओं ने एक प्रयोग किया. दो-दो करके कुछ बंदरों को अलग अलग पिंजरों में रखा गया और उन्हें बारी बारी से कुछ साधारण काम करने के लिए दिए गए. हर काम के पूरा होने पर पुरस्कार स्वरुप दोनों बंदरों को खाने के लिए कुछ दिया जाता. पर एक बंदर को हर बार ककड़ी (एक साधारण चीज़) दी जाती जबकि दूसरे को हर बार अंगूर (बंदरों और इंसानों के लिए एक स्वादिष्ट चीज़) दी जाती. दोनों बन्दर यह भली भांति देख सकते थे कि दूसरे बन्दर को क्या दिया जा रहा है. 3-4 बार ठीक वही काम करने के लिए ककड़ी की जगह अंगूर पाने वाले बंदर ने अगली बार अंगूर लेने से मना कर दिया (जबकि वह अभी भी भूखा था और अंगूरों की सीमान्त उपयोगिता भी अभी काफी थी). वजह साफ़ थी... बंदर सामाजिक प्राणी होने की वजह से अपने साथी के साथ हो रहे अन्याय को अधिक देर तक नहीं सह सका. नैतिकता और न्याय की भावनाओं का बीज कुछ जानवरों में भी रहता है.

पर आज के परिदृश्य में मनुष्यों को देखकर मन में संशय होता है कि क्या मनुष्यों के मन से इन भावनाओ का तिरोभाव हो गया है!


(नोट – इस post का सीधा संबंध JNU के राष्ट्र के प्रति अकृतग्य देशद्रोहियों और आरक्षण की मांग करने वाले सभी समुदायों से है.)

Wednesday, 17 February 2016

"स्थिरमति"

श्री भगवान ने गीता में अपने प्रिय जनों के जो लक्षण बताए हैं उनमे से एक है – स्थिरमति ( the one who is “Fixed in Determination”) पल-पल में संकल्प बदलने वाले लोगों का तो इहलोक में भी कोई भरोसा नहीं करता...!!

कितने ही लोगों से बात करने पर पता चलता है कि यह ज्ञात होने के बावजूद कि वे gay हैं, वे यह निश्चित नहीं कर पाते कि उन्हें एक लड़के के साथ जीवन बिताना चाहिए या एक लड़की के साथ. बात तब और भी गंभीर हो जाती है जब ऐसे लोग एक “relationship” की तलाश करने लग जाते है. खुदा-न-खास्ता अगर कोई अच्छा व्यक्ति इन्हें मिल भी जाता है तो उस बेचारे की नैया अधर में ही फंस कर रह जाती है... पता नहीं कब इनकी बुद्धि का ऊंट दूसरी करवट बैठ जाए???

अतः किसी के भी साथ एक संबंध बनाने की बात का विचार करते हुए बाकी बातों के साथ-साथ यह भी विचार करना आवश्क है कि सामने वाला मनुष्य “स्थिरमति” है कि नहीं.

Sunday, 31 January 2016

Hoping To Get Justice

अधिकांश Curative Petitions के अंजाम के इतिहास को देखते हुए आशा तो नहीं है... फिर भी मन आशा करना चाहता है. आशा तो 2013 के दिसम्बर में भी काफी थी पर हुआ क्या? “नगण्य” संख्या में होने के कारण gays के मूलभूत अधिकारों की अनदेखी की गई यह कहकर कि अगर सरकार चाहे तो कानून में संशोधन कर सकती हैं.


अब दो वर्ष पश्चात् 2 फ़रवरी को पुनः विचार होगा...! ये सब उसी देश में हो रहा है जहाँ एक आतंकी को फांसी से बचाने के हेतू आधी रात में भी न्यायालय खुलवा दिए जाते है के कहीं किसी के साथ भूले से भी अन्याय न हो जाए. पर Gays! अरे भाई उनका क्या है... पिछले 2 वर्षों में एक भी Gay नहीं मरा. 2 वर्ष का समय होता ही क्या हैं.... 2 वर्ष बाद ही सही न्याय दे तो रहे है... क्या कोई नुकसान हो गया क्या???


मन में अनेक संदेह होने के बाद भी... और आगे भी होने वाले अनेक संघर्षों का होना तय होते हुए भी... न्याय होगा... ऐसी आशा करता है मन...  #Sec377