Sunday, 28 April 2013

सोच के साथ सफ़र

(एक)

संभव आज न चाहते हुए भी ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था। पिछले कुछ दिनों से उसका मन किसी भी काम में नहीं लग रहा था। पूरा दिन वह सक्षम से कुछ दिन पहले हुई लड़ाई के बारे में सोचता रहता था। सक्षम से उसके रिश्ते की शुरुआत 2 साल पहले तब हुई थी जब वे दोनों इंटरनेट चैटिंग के जरिये एक दूसरे के संपर्क में आये थे। पूरे दो-ढाई महीने की चैटिंग के बाद उन्होंने पहली बार Connaught Place में मिलने का program बनाया था। यही वह पहला मौका था जब दोनो ने एक दूसरे को देखा था।  पहली ही मीटिंग में सक्षम संभव के मन भा गया था। सक्षम उस समय 22 साल का था, रंग साफ़, साड़े-पांच फुट की लम्बाई, सलीके से कटे कुछ लम्बे बाल, चहरे के शालीनता से भरे भाव.... उसे आज भी अच्छी तरह याद है कि पहली बार मिलने पर भी उनकी वही बातें हुईं थीं जो पहली बार चैटिंग करने पर हुईं थीं। सक्षम ने बिना emotional हुए यह साफ़ कर दिया था कि वह सिर्फ और सिर्फ एक relationship की ख़ोज में था और relationship से उसका मतलब जीवन भर चलने वाले relation से था जिसमे दोनों के जीवन में एक दूसरे के सिवा और कोई न हो।
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 "तुम पहली मीटिंग में ही कोई Final Decision मत लेना, क्योंकि मैं इस बारे में कुछ भी decide करने में काफी टाइम लेता हूँ, मेरे लिए यह Once In A Lifetime जैसा
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 decision है जिसे मैं बिना सोचे समझे नहीं ले सकता।"
 सक्षम के ये शब्द उसे आज भी ज्यों के त्यों याद थे। पर सच बात तो यह थी कि सक्षम को भी संभव पहली बार देखने पर ही पसंद आ गया था। 26 साल के संभव को देखकर जो उससे 2-3 इंच लम्बा और मजबूत शरीर का था, सक्षम का दिल जोर से धड़क र
हा था। यह जानकार कि संभव एक पड़े लिखे शरीफ परिवार से है और अभी एक Company के  Finance Department में trainee की तरह काम सीख रहा है, उसका मन कह रहा था कि काश यही वह व्यक्ति निकले जिसे वह इतने लम्बे समय से खोज रहा था।

खैर इस बात को लगभग 2 साल बीत चुके थे।
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पहली मीटिंग के बाद कई और मीटिंग हुईं जिसमे दोनों ने एक दूसरे को जितना हो सके जानने की कोशिश की थी।
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कई बार ​सक्षम ने संभव का मन टटोलने कि भरसक कोशिश की थी। वह नहीं चाहता था कि भावनाओं के आवेग में आकर संभव उससे हाँ कह दे और बाद में सच्चाई का सामना होने पर पीछे हट जाये। वह 
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चाहता था कि संभव उससे हाँ तभी बोले जब न केवल वह उससे वास्तव में प्यार करने लगा हो बल्कि उसे इस बात का भी पूरा भरोसा हो कि भविष्य में साथ साथ रहने के लिए वह अपने परिवार की नाराज़गी भी झेल सकेगा। 

​पर संभव तो 2-3 बार सक्षम से मिलने पर ही उसे वाकई चाहने लगा था। उसे भविष्य के बारे में सोचना निरर्थक लगता था। "तुमको विश्वास क्यों नहीं होता है कि मैं तुमको बहुत चाहता हूँ, और future में चाहें जो भी हो, तुमको ही चाहता रहूँगा... तुमको पता नहीं है कि आजतक मैंने इतना प्यार किसी से नहीं किया जितना कि तुमसे करता हूँ। तुम तो मेरी जान बन चुके हो।" ऐसी बातें सुनकर सक्षम भी कमज़ोर पड़ जाया करता था। और संभव के द्वारा उसे अपनी बांहों में भरकर सीने से लगाने पर तो वह भी भविष्य की चिंता छोड़कर बस उसी पल में जीना चाहता था।

(दो)  
संभव का ऑफिस गुडगाँव में था, रोज़ रोज़ पटेल नगर से bike पर ऑफिस जाना एक कठिन काम था, इसीलिए वह मेट्रो से ही ऑफिस जाया करता था। महीने के दो शनिवार ही ऑफिस में छुट्टी हुआ करती थी, इस शनिवार ऑफिस खुला था। थोड़ी देर खड़े रहने के बाद संभव को बैठने के लिए जगह मिल गई जो उसने तुरंत ही लपक ली। थोड़ी देर मोबाइल पर गाने सुनने के बाद उसने हैडफ़ोन उतार कर बैग में रख दिया और फिर न चाहते हुए भी कुछ सोचने लगा।

एक साल ही तो हुआ था जब उसने सक्षम को यह खबर सुनाई थी कि दो इंटरव्यूज देने और उसके मैनेजर के favorable appraisal के बाद आख़िरकार उसे इस मल्टीनेशनल कंपनी में trainee से प्रोमोट करके बतौर स्टाफ रख लिया गया है। उस दिन सक्षम तो जैसे साँतवे आसमान पर था। अगले ही दिन दोनों मूवी देखने भी गए थे और सक्षम ने अपनी तरफ से पार्टी भी दी थी जिसके लिए चाहकर भी संभव मना नहीं कर पाया था। संभव को पता था कि सक्षम के परिवार की आर्थिक स्तिथि कोई बहुत अच्छी नहीं थी इसलिए वह उसे मिलने पर किसी तरह का फिजूल खर्च नहीं करने देता था। वैसे भी सक्षम अभी इंजीनियरिंग की पढाई ही तो कर रहा था, ऊपर से उसके डैडी का बिज़नस भी बहुत अच्छा नहीं चल रहा था। 

"तुमको यह घड़ी लाने की क्या ज़रुरत थी? क्या तुम्हारा आना ही काफ़ी नहीं था?" सक्षम को अपने पिछले जन्मदिन पर गिफ्ट में लाई घड़ी देखकर संभव उसपर काफ़ी बरसा था। उसे पता ही नहीं था कि वह कौन सी घड़ी थी जब से वह सक्षम पर अपना हक़ मानने लगा था और उससे कुछ भी कहते हुए संकोच नहीं करता था। असल में तो दोनों ही औपचारिकता की सीमाओं को कब का लाँघ चुके थे। 

मेट्रो ट्रेन में अब भीड़ काफ़ी कम हो गई थी। पर अभी भी गंतव्य स्टेशन आने में कुछ देरी थी। संभव तो जैसे अपने सोच के समुद्र में असहाय सा बहा जा रहा था। वह सोचता ही जा रहा था- "आखिर क्यों सक्षम मेरी मजबूरियाँ नहीं समझ रहा है? सब कुछ ठीक ठाक ही तो चलेगा ... जैसे कि अब तक चलता आया है। सक्षम भी जानता है कि मैं उसे कितना प्यार करता हूँ। सक्षम ने तो मिलने के 3 महीने बाद तक मुझसे प्यार का इजहार नहीं किया था। यह मैं ही था जिसने एक दिन सीधा उसका हाथ पकड़कर आई लव यू कह दिया था वरना तो जाने कब तक एक दूसरे को और अधिक समझने का नाटक चलता!" 

सही भी तो था... सक्षम था भी तो शर्मीला। पर शायद शर्मीलेपन से ज्यादा भविष्य में उठाए जाने वाले कदमो के बारे में संभव की आना-कानी उसे ऐसा करने से रोक रही थी। संभव ने उसे अभी तक भविष्य में उसके परिवार की तरफ से होने वाले विरोध का प्रतिरोध जी-जान से करने के बारे में आश्वस्त नहीं किया था। हर बार उसका बात को बदल जाना सक्षम को एक चोट सी पहुंचा जाता था। बस एक बात वह पूरे विश्वास के साथ जानता था कि संभव वाकई उससे प्यार करता था। दिन में उसके इतना व्यस्त रहने के बाद भी 3-4 फ़ोन कॉल तो पक्के ही थे। यह जाने बिना कि सक्षम ने नाश्ते से लेकर डिनर में क्या खाया है मानो संभव का खाना ही नहीं पचता था। घर में हुई किसी घटना से जिस दिन सक्षम का मन उदास होता था तो वह उसके बिना बताये भी बात को तुरंत ही ताड़ जाता था और उसे बिना हँसाए मानता ही नहीं था। सक्षम को इस बात का गर्व था कि गे संबंधों के बारे में लोग जिस तरह की राय रखते हैं और जैसा आमतौर पर देखने में आता है, उन दोनों का संबंध उससे बहुत अलग था। 

और आखिर उसने भगवान् से माँगा ही क्या था? यही न कि उसे एक ऐसा लाइफ पार्टनर मिले जो उससे बहुत ज्यादा प्यार करे... जिससे वह अपनी सारी बातें शेयर कर सके... साथ ही जो गेस के बारे में लोगो की आम राय के विपरीत हो। उसने एक सच्चे लाइफ पार्टनर की ख़ोज में कितने ही लोगो को देखा था... friendship की आड़ में अपनी sex की भूख शांत करने वाले गे लोगो से वह भली भांति परिचित था। दुर्भाग्य से कितने ही ऐसे गेस से उसने बातें की थी जो यह मानते ही नहीं थे कि गे लोग भी ठीक स्ट्रैट लोगो की तरह प्यार कर सकते है और एक जीवनपर्यन्त चलने वाले संबंध को बना सकते है। वह बार बार ईश्वर को धन्यवाद देता था कि आखिर उसे अपने सपनो का साथी तब मिल ही गया जब वह निराश होकर इस बारे में सब कुछ छोड़कर बैठने ही वाला था। कितने ही ऐसे लड़कों के संबंध बनाने के प्रस्ताव उसने ठुकराए थे जो कहते थे कि वे शादी के बाद भी सब कुछ पहले जैसा ही चला सकते है। सक्षम की नज़रों में यह सब न केवल अनैतिक था बल्कि उसकी ज़िद यह भी थी कि वह इतना गया-गुज़रा नहीं है कि उसे किसी के जीवन में मात्र एक विकल्प बनाना पड़े! 

संभव का गंतव्य स्टेशन आ गया था। वह अनमने ढंग से ट्रेन से उतरकर थोड़ी दूर पैदल चलने के पश्चात ऑफिस जा पहुंचा जहाँ दिन भर की व्यस्तता उसका इंतज़ार कर रही थी।

(तीन)
इधर सक्षम की हालत भी कोई बेहतर नहीं थी। एक के बाद एक उसे कई झटके जो लगे थे। "आज बुआ जी का फ़ोन आया था। मम्मी से उनकी बात हुई थी। मेरे लिए एक लड़की के रिश्ते के बारे में बताने के लिए फ़ोन किया था। मम्मी-पापा ने भी लड़की को देखने के लिए तुरंत हामी भर दी।" संभव की कही ये बातें उसके दिमाग में अब तक गूँज रहीं थीं। इससे भी ज्यादा परेशान करने वाला संभव का बर्ताव था। अचानक जैसे वह बदल ही गया था। इन्ही बातों के बारे में पूंछने पर जहाँ पहले वह कहा करता था कि जब समय आएगा तब साथ साथ देख लेंगें, वहीँ आज जैसे उसने इस बारे में कुछ न करने की मानो ठान ही ली थी। 


​सक्षम को खुद भी इन सब बातों का आभास हो ही गया था। आखिर 28 साल का एक well settled लड़का कब तक रिश्तेदारों की नज़रों से बचता ! पर सक्षम यह भी जानता था कि कहीं न कहीं गलती उसकी भी रही थी। आखिर कैसे उसने संभव के द्वारा future के बारे में कुछ भी साफ़ साफ़ न बताए जाने पर भी उस पर भरोसा कर लिया? संभव ने यह तो कभी नहीं कहा था कि इस संबंध को बनाए रखने के लिए वह अपने परिवार वालों से भी लड़ने के लिए तैयार है! न ही उसने कभी इस बात का स्पष्ट आश्वासन सक्षम को दिया था कि चाहें जो भी हो, वह कभी किसी लड़की से शादी करने के लिए किसी भी सूरत में तैयार नहीं होगा। 
 पर सक्षम तो मानों संभव से प्यार करके जानते-बूझते ​अपने सिद्धांतों से समझौता कर ही चुका था। 


​पर इसमें सक्षम की भी क्या गलती थी। आखिर प्यार में व्यक्ति सिद्धांतों के बारे में कब सोच पाता है। ​
वह सोचता 
था कि संभव उससे इतना प्यार करता है कि हो न हो ​समय आने पर वह ​अपने परिवार वालों को इस रिश्ते के बारे में बताने का साहस कर ही लेगा। और फिर इस बारे में संभव की स्तिथि उससे तो ​कहीं बेहतर थी। उसकी अपेक्षा संभव एक अधिक आधुनिक विचारों वाले परिवार से जो था। एक बड़ा भाई होने के कारण उसपर अपने माँ-बाप के एक बहू पाने के सपने साकार करने का उतना दायित्व नहीं था जितना कि सक्षम का अपने माता-पिता का अकेला बेटा होने के कारण था। ​इतना होने पर भी जब वह एक लड़के के साथ अपना जीवन बिताने के निर्णय पर कायम था तो संभव ऐसा क्यों नहीं कर सकता था? और फिर उसने संभव पर उसके परिवार को सच्चाई अभी की अभी बताने के लिए तो कभी दवाब नहीं डाला।


​असल में सक्षम यही सब बातें कहने के लिए तभी से बेताब था जब से संभव ने उसे बूआजी के फ़ोन वाली बात बताई थी। इसके कुछ दिन बाद जब संभव के घर से सभी लोग कहीं बाहर गए हुए थे तो उसने सक्षम को घर पर ही बुला लिया था। अपने कमरे में लेजा कर सबसे पहले उसने सक्षम को बांहों में भरकर देर तक चूमा था और फिर कहा था- "Sweetheart, please तुम रोया मत करो, मुझे बहुत ख़राब लगता है।" 

"अगर मेरा रोना तुमको इतना ही ख़राब लगता है तो आखिर क्यों नहीं अपने मम्मी-पापा को बोल देते कि मैं किसी लड़की से शादी नहीं कर सकता?" सक्षम ने तपाक से उत्तर दिया था।   ​

"जान, तुम समझने की कोशिश करो न, हमारी family और बातों में चाहें कितनी ही modern क्यों न हो, पर शादी-वादी के मामलों में एकदम conservative हैं। अगर मैं उनको अपने रिश्ते के बारे में बताऊंगा तो पक्का वे लोग मुझसे हर तरह से रिश्ता तोड़ लेंगे। मैं भी नहीं चाहता कि  मेरी वजह से मेरे परिवार की reputation ख़राब हो। अलग-अलग रिश्तेदार, जीजाजी, चाचाजी, बूआजी सब क्या कहेंगे? अभी हमारी society इतनी advanced नहीं हुई है कि इस तरह की बातों को समझे।" संभव ने पूरी तरह से अपनी असमर्थता जता दी।

​"तो फिर तुमने इन सब बातों के बारे में यह रिश्ता शुरू करते वक्त क्यों नहीं सोचा? क्यों तुमने मुझसे साफ़ साफ़ नहीं कहा कि एक न एक दिन तुम्हे एक लड़की शादी करनी ही होगी?" इस बार सक्षम के स्वरों में शिकायत के भाव थे।  

"हाँ मेरी इतनी गलती तो है कि उस समय मैं इन सब बातों के बारे में नहीं सोच पाया.... और जब maturity के साथ सोचना शुरू किया तब तक I had already begun to love you! और अभी भी करता हूँ, और आगे भी करता रहूँगा। मैं यह शादी केवल और केवल society और family के लिए कर रहा हूँ! शादी के बाद भी मेरी life में तुम्हारी importance सबसे ज्यादा रहेगी। तुम समझने की कोशिश तो करो यार!" संभव ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा।  

"इसका मतलब तुम society और family को खुश रखने के लिए एक निर्दोष लड़की का इस्तेमाल करोगे? शर्म नहीं आएगी तुमको? आज से 25-30 साल बाद जब तुम्हारे बच्चे बड़े हो जायेंगे तब तुम उनका सामना कैसे करोगे? या फिर मरते दम तक इस राज़ जो अपने सीने में ही छुपाये रहोगे?.... मैं जानते-बूझते इस गलत काम में तुम्हारा साथ नहीं दे सकता। मुझे पता है कि future में मुझे कोई तुम जैसा मिले यह मुश्किल है ... और मिला भी तो पता नहीं उससे मैं इतना ही प्यार कर भी पाऊंगा कि नहीं ... ! मैं पूरा जीवन अकेले बिताने के लिए तैयार हूँ, पर किसी को धोखा देते हुए अपनी पूरी life नहीं बिता सकता।" सक्षम ने रोते रोते भी यह बात इतने कड़े तरीके से कही थी कि संभव चुप हो गया। 

सक्षम से पूरे 4 साल बड़ा होने पर भी संभव की सोच में उतनी गंभीरता नहीं थी। नहीं तो वह खुद भी ऐसा इंसान नहीं था कि किसी को धोखा देने के बारे में सोचे। पर वर्तमान परिस्तिथियों को देखकर उसे और कुछ सूझ भी तो नहीं रहा था। पापा के कड़े व्यवहार से वह अच्छी तरह वाकिफ़ था ... वैसे भी अगर वह साहस करके उन्हें इस बारे में बताने की सोचे भी तो किन शब्दों में उनसे यह बात कहे! फिर मम्मी का क्या ... कितने समय से वह उन्हें अपनी छोटी बहू के लिए Jewellery बनवाते देखता आया था ... अक्सर उसकी मम्मी पड़ोस वाली आंटी से कहा करतीं थी कि बड़े बेटे के दूर होने के कारण वे बड़ी बहू और उसके बच्चो के साथ अधिक समय नहीं बिता पातीं पर संभव और उसकी बहू को वे अपने ही पास रखेंगी। आखिर कैसे उनका यह विश्वास वह एक झटके में तोड़ दे? 

(चार)
उस दिन सक्षम बिना और कुछ बोले ही चला आया था। पर संभव के दिमाग में तो उसकी कही बातें ही गूँज रही थी। जिस इंसान के दिन की हर एक बात जाने बिना उसे चैन नहीं पड़ता था उसे वह हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कैसे कह सकता था? पर दूसरी ओर घर परिवार! 


"अगर सक्षम शादी के बाद भी सब कुछ ऐसा ही बनाये रखने पर राज़ी हो जाता तो कितना अच्छा था। पर दोषी तो मैं ही हूँ। अच्छा तो अब यही है कि जितनी जल्दी हो सके सक्षम की life से दूर चला जाऊं। अब तो मेरे लिए एक ही रास्ता बचा है कि life जिस ओर ले जा रही है, उसी ओर चलता जाऊं। सक्षम की life में भी कोई न कोई आ ही जाएगा। और मुझे भी अपने घर परिवार की आदत हो ही जायेगी। मुझे पता है कि अपनी wife को मैं physically और emotionally खुश रख सकूँगा। रही बात एक दूसरे पुरुष का साथ पाने की लालसा, वह भी शादी के 2-3 साल बाद ख़त्म हो जाएगी। उसके बाद तो सब अपनी रोज़मर्रा की life में ही busy हो जाया करते हैं।" कल रात यह सब सोचते हुए संयम ने सक्षम की जिन्दगी से जाने का मन लगभग बना ही लिया था। उसका यह विश्वास था कि शादी के बाद सक्षम के बिना वह अपनी पत्नी के साथ एक सामान्य couple की तरह रह पायेगा। उसे जिन्दगी में सक्षम की कमी कुछ दिनों के लिए तो खलेगी पर जिस तरह शादी के बाद ऑफिस और घर परिवार में उसके सभी मित्र व्यस्त हो गए हैं, वह भी हो जायेगा और फिर एक लड़के के प्रति उसका आकर्षण कोई अधिक मायने नहीं रखेगा। सक्षम जैसे लड़के को भी कोई अच्छा साथी मिल ही जाएगा जो उसे वह सब दे सके जो वह नहीं दे पाया। बस अब यह बात सक्षम को बताना बाकी थी जिसके लिए वह साहस नहीं कर पा रहा था। पर काफी हद तक सक्षम को संभव के निर्णय का आभास हो ही गया था क्योंकि उसके अनुसार अगर संभव को अपना निर्णय बदलना होता तो वह उस दिन सक्षम को रोते रोते अपने घर से नहीं जाने देता। पर सक्षम को नहीं पता था कि उस दिन रोया तो संभव भी बहुत था। और उस दिन ही क्यों ... उस दिन के बाद हर रात ऑफिस से आकर थोड़ा बहुत खाना खाने का दिखावा करके बिना किसी से बोले वह अपने कमरे में जाकर मन ही मन रोया ही तो करता था। 

शाम को ऑफिस से निकलते समय एक ओर संभव इस बात से खुश था कि कम से कम ऑफिस की व्यस्तता के कारण वह दिन भर अपने दिमाग को उन सब बातों से मुक्त रख सका जो उसको रास्ते और घर में सतातीं थी वही दूसरी ओर वह सक्षम को अपना निर्णय आज रात फोन पर बताने से डर भी रहा था। उसे सामने बुलाकर यह सब बताने का साहस तो वह कर ही नहीं सकता था।  इसीलिए यही एकमात्र चारा था।


शाम को अधिकांश offices की एक ही साथ छुट्टी होने के कारण मेट्रो में काफ़ी भीड़ हो जाया करती थी, इस समय seat मिलने के बारे में सोचना भी मूर्खता होती थी। इसी से संभव मेट्रो में घुसते ही एक कोने में जाकर खड़ा हो गया। एक के बाद एक कई स्टेशन आते गए और भीड़ बड़ती ही गई। संभव की घबराहट समय बीतने के साथ और अधिक बढती जा रही थी। "घर पहुँचने पर तो फ़ोन पर बात नहीं हो पायेगी, मेट्रो से उतरकर रस्ते में ही फ़ोन कर लूँगा, घर से पहले जो पार्क पड़ता है वही ठीक जगह रहेगी बात करने के लिए।" संभव अपने निर्णय को अमल में लाने का पक्का मन बना चूका था। वैसे भी इस सब को लम्बा खींच कर खुदको और सक्षम को दुःख पहुंचाते रहने से क्या लाभ? 
   
संभव यही सब सोचता जा रहा था कि अचानक एक अनजाने स्पर्श के अहसास ने उसका ध्यान बँटाया। ट्रेन अब तक खचाखच भर चुकी थी इसी कारण वह इस बात का अंदाजा नहीं लगा पाया कि यह कौन था। इतनी भीड़ में ऐसा होना कोई अस्वाभविक चीज़ नहीं थी अतः उसने इस बारे में ज्यादा सोचा भी नहीं। पर अभी कुछ ही देर हुई थी कि वही स्पर्श दोबारा हुआ, इस बार यह पहले से अधिक स्पष्ट और दीर्घकालीन था। अब बात संभव को समझ में आते देर नहीं लगी। जो दो सज्जन उसके आगे पींठ करके खड़े थे यह उन्ही में से एक के हाथ का सुविचारित स्पर्श था। 35-38 वर्ष का वह व्यक्ति अच्छे कपड़े पहने था और हाथ में एक ब्रीफ़केस लिए था जिससे लगता था कि वह भी ऑफिस से लौट रहा था। एक गे होने के कारण संभव इस बात से भी इन्कार नहीं कर सकता था कि उससे 6-8 वर्ष अधिक आयु का वह व्यक्ति देखने में काफ़ी अच्छा भी था। पर अपनी सुशीलता के कारण इन सब बातों को नज़रंदाज़ करते हुए संभव थोड़ा पीछे हट गया। इतने दिनों से संभव मेट्रो से यात्रा कर रहा था पर ऐसा पहले तो कभी उसके साथ नहीं हुआ था। अभी उसको पीछे हटे 2 मिनट भी नहीं हुए थे कि वह आदमी भी भीड़ से लगे धक्के के साथ पीछे हो गया और फिर वही हरकत शुरू कर दी। उसकी यह हरकत एक ओर संभव को गुस्सा दिला रही थी, वही दूसरी ओर उसके मन में इसका फायदा उठाने की हलचल भी पैदा कर रही थी। एक पल के लिए मानो संभव सब कुछ भूल गया और उस व्यक्ति का सहयोग करने के लिए थोड़ा आगे हो गया। वह व्यक्ति भी संभव की तरफ से इशारा पाकर मनो और अधिक उत्साहित हो गया। पर दूसरे ही पल संभव को अहसास हुआ कि वह जो भी कर रहा था वह न केवल अनुचित था बल्कि किसी के साथ धोखा भी था। "पर किस के साथ धोखा?" संभव ने ख़ुद से प्रश्न किया। उत्तर में केवल सक्षम का ही चेहरा उसकी आँखों के सामने आया, और साथ ही आ गए आंसू! "मैं यह सब कैसे कर सकता हूँ ... ठीक है मैं सक्षम से नाता तोड़ने जा रहा हूँ ... पर उसे प्यार तो हमेशा करता रहूँगा। कैसे गिर सकता हूँ मैं इतना?" और इसके साथ ही संभव ने अपने हाथ से उस व्यक्ति का हाथ पकड़कर झिड़क दिया। संभव के द्वारा इतना किया जाना उस व्यक्ति को डराने के लिए पर्याप्त था अतः वह थोड़ा हट के खड़ा हो गया। इस सब से थोड़ी राहत मिलने के बाद संभव किन्ही दूसरी ही सोच में गुम हो गया। अब उसको कोई दूसरी ही चिंता सता रही थी। "देखने में तो यह आदमी पड़ा-लिखा और शादीशुदा लगता है, सब कुछ सामान्य रहा होगा तो शादी हुए भी पांच-सात साल हो गए होंगे ... फिर भी ऐसी हरकत? क्या शादी के इनते वर्ष बाद भी ऐसी इच्छाएं बनी रह सकती हैं? वह भी इस कदर कि अपनी इज्ज़त की परवाह किये बिना यह व्यक्ति मेरे साथ यह सब कर रहा था? अगर में चिल्ला पड़ता तो क्या हाल होता इसका? ... भगवान् न करे कि अगर ये इच्छाएं इतनी प्रबल है तो पता नहीं मैं ....?" संभव सकपका गया। संभव को पता था कि जिन इच्छाओं के बारे में सोचकर वह डर रहा था वे केवल शारीरिक आकर्षण तक सीमित नहीं थीं, इन इच्छाओं में तो एक इंसान से अपने जीवन को जोड़कर देखने और उसी के इर्द-गिर्द जीने की इच्छाएं भी शामिल थीं। 

संभव यह सोच ही रहा था कि अगले स्टेशन पर ट्रेन रुकी और वह व्यक्ति ट्रेन से उतरने के लिए दरवाजे की तरफ बड़ा। संभव भी बिना कुछ अधिक सोचे समझे मंत्रमुग्ध की भांति उसके पीछे चल पड़ा। इस स्टेशन पर अधिक लोग नहीं उतरे थे। वह व्यक्ति भी यह भांप चुका था कि जिस लड़के से थोड़ी देर पहले वह वासना की गुहार लगा रहा था वही लड़का उसके पीछे पीछे उसी की गति से बड़ रहा है। "Excuse me ... " संभव ने थोडा दूर जाकर आस पास लोगों को न देखकर आवाज लगाई। वह व्यक्ति भी आवाज़ सुनकर उसी तरह ठठक गया, जिस तरह संभव आवाज़ लगाकर ठठक गया था। "क्या हम कुछ बात कर सकते हैं?" मानो शब्द बिना संभव की आज्ञा के ही उसके मुंह से बाहर निकल रहे थे। "हाँ क्यों नहीं?" कुछ डर और कुटिल मुस्कान लिए हुए उस व्यक्ति ने मुड़कर उत्तर दिया।

(पाँच)

"Hi... I am Sambhav." संभव ने कहा।

"Hi... I am Ajay. Say...." उस व्यक्ति ने औपचरिकता से कहा। 

"क्या आप गुडगाँव में ही काम करते हैं ... ? Actually, what's the use of asking all this... Let me come straight to the point." यह सब कहते हुए संभव को भी अजीब लग रहा था।

वह व्यक्ति अभी ठीक से यह भांप नहीं पा रहा था कि संभव की मंशा क्या है, अतः चुप ही रहा।

"देखिये आप जो मेट्रो में कर रहे थे ... क्यों कर रहे थे ? I mean considering your age you seem to be a married man. I don't want to create any trouble, so please don't hesitate." संभव ने हिचकते हुए कहा और उस व्यक्ति के भाव पड़ने की कोशिश की।

"I am so sorry if you didn't like it." अजय नाम के उस व्यक्ति ने पानी-पानी होते हुए कहा। यह सुनकर उसे अहसास होने लगा था कि संभव ने उसे अकेले में शर्मिंदा करने के लिए रोका है और यह एक तरह का अहसान ही था ... इसीलिए उसने वहाँ खड़े रहकर बात पूरी करने की सोची।

"आप मेरी बात नहीं समझे। देखिये यह सब मैं आपको शर्मिंदा करने के लिए नहीं पूँछ रहा हूँ। आप गलत कर रहे थे यह आप भी जानते है और मैं भी। मैं यह बात केवल इसलिए पूँछ रहा हूँ क्योंकि मैं भी एक गे हूँ पर शादी करने जा रहा हूँ।" संभव को भी नहीं पता था कि यह कहकर उसने कोई गलती तो नहीं की।

"ओह, मैं समझ सकता हूँ।" अजय की आवाज़ में अब थोडा सुकून था। "देखो यार, जिस देश में हम रहते हैं वहाँ एक न एक दिन शादी तो करनी ही पड़ती है। जब तुमने मेरे से उम्र में छोटे होने के बाद हिम्मत करके यह बात कही है तो ... मैं भी बताता हूँ।" अजय को अब  समझ आ रहा था कि संभव एक सुशील किस्म का लड़का है जो गे होने के बावजूद समाज और परिवार के द्वारा खड़ी की गई मान्यताओं से बंधा अनुभव कर रहा है। "देखो हमारा देश में एक लड़के के दूसरे लड़के के प्रति आकर्षण को ठीक नज़र से नहीं देखा जाता ...."
​अजय ने वाक्य पूरा भी नहीं किया था कि संभव बोल पड़ा।

"देखिये यह सब मुझे अच्छी तरह से पता है। मैं तो बस यह जानना चाहता हूँ कि जब आपका interest, men में था तो आपने शादी क्या सोच समझकर की ... और अब शादीशुदा होने के बाद ही यह सब क्यों?" संभव एक ओर अजय से कुछ जानना चाह रहा था वहीँ दूसरी ओर उसको समझा भी रहा था।

"देखो यार उस time और इस time में काफी फर्क है। मेरी शादी हुए 12 साल हो गए है। जब मेरी शादी हुई थी तब gay relationships के बारे में किसी को पता तक नहीं हुआ करता था। अरे मैंने तो यह word भी college के third year में सुना था। हाँ पर शुरू से लड़के मुझे अच्छे जरूर लगते थे। शादी करते समय कुछ सोचा ही नहीं।" अजय अब खुलकर बोल रहा था। "देखो अगर शादी के बाद भी तो वो feelings रहती ही है। जब मैं अपनी बीवी और बच्चों ​का पूरा ख्याल रख रहा हूँ उनको किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं होने देता, तो थोड़ा बहुत अपने enjoyment के लिए भी तो ...."

संभव तो जैसे ये सब बातें सुनकर जड़वत होता जा रहा था। एक ओर उसे घृणा हो रही थी कि कैसे एक आदमी बीवी बच्चे होते हुए यह सब कर सकता है वही दूसरी ओर यह जानकर कि शादी के 12 वर्ष बाद भी इस व्यक्ति की भवनाये एक लड़के का साथ sex पाने के लिए नहीं मरी है, उसके पैरों के नीचे से जमीन खिसकी जा रही थी। उसने इस व्यक्ति के साथ कोई argument करना उचित नहीं समझा। 

"मैं मानता हूँ कि यह थोडा बहुत गलत तो है, पर बुराई क्या है इसमें अगर ऐसा करते हुए मैं अपने परिवार को खुश रख सकता हूँ।" अजय ने अपनी बात ख़त्म की।

अब संभव को और कुछ जानने की इच्छा शेष नहीं रही थी। अतः "ठीक ही कहते है आप। मैं भी इस बारे में सोचूंगा। Thanks." कहकर वह पीछे से आती मेट्रो में जाने के लिए मुड़ा। अजय बात को थोड़ा और लम्बा ले जाना चाहता था ... पर संभव कोई मौका दिए बिना अगली ट्रेन में सवार हो गया।
 
अब तो जैसे उसका रोना रुक ही नहीं रहा था, बस किसी तरह वह आँसू छुपाए हुए था। इस बातचीत ने मानो उसकी आँखे खोल दीं थीं। जब एक व्यक्ति शादी के बारह साल बाद भी लड़कों के प्रति अपने शारीरिक आकर्षण को ख़त्म नहीं कर सका तो संभव सक्षम जैसे लड़के के लिए अपने प्यार को कैसे ख़त्म कर पाता! निश्चय ही उसके लिए प्यार की भावना 'मात्र sex' की इच्छा से कहीं अधिक प्रबल थी। "कहीं यह व्यक्ति मेरा ही future तो नहीं था ... जिसको शायद ईश्वर ने ही मुझे सावधान करने के लिए भेज था? क्या होगा अगर मुझे भी अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए इतना गिरना पड़ा? नहीं ... मैं शादी करने के बाद किसी अनजान इंसान से केवल sex करने के लिए तो ...." संभव के लिए सक्षम कोई भी साधारण एवं महत्वहीन व्यक्ति नहीं रह गया था। उसके शादी के बाद भी सक्षम के साथ relationship बनाये रखने के पीछे उसका सक्षम के प्रति सच्चा प्यार ही एक मात्र कारण था और इस प्यार का स्थान किसी और भावना को दे देना संभव लिए असंभव था। कुछ ही मिनटों में उसकी सोच जैसे अत्यधिक सरलता से लिए गए उसके पहले निर्णय के आसमान से गिर कर सच्चाई के धरातल पर आ गई थी। अब उसे अहसास हो रहा था कि उसके पहले निर्णय से सक्षम के सहमत न होने का क्या कारण था। उसकी पहले के अपरिपक्व सोच को मानो समझदारी और सच्चाई की खाद मिल चुकी थी। परिवार को आज प्रसन्न करके अपने और किसी लड़की के भविष्य को वह बिगड़ने के निर्णय को वह बदल चुका था। अब वह बिना देरी करे सक्षम से मिलकर उसे कसकर गले लगा लेना चाहता था। और ऐसा करते हुए जी भर के रो भी लेना चाहता था। और उसे बताना चाहता था कि संभव भी अब अपने प्यार के लिए किसी का भी सामना करने के लिए सक्षम हो चुका है।  ​

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Saturday, 20 April 2013

कुछ तो लोग कहेंगे... A Request To Change Perspective.

भारत देश में और कुछ फ्री मिले न मिले, बिन मांगी सलाह हमेशा फ्री मिल ही जाती है। लोगो को वैसे भी हर किसी विषय पर अपने पांडित्य प्रदर्शन का कभी न समाप्त होने वाला शौक जो है। बच्चे को किस स्कूल में दाखिला दिलाया जाये या फिर कौन सा टीवी सेट या मोबाइल फ़ोन ख़रीदा जाये,,, हर समय बिन मांगी सलाह। और अगर आप गे हैं तो साथ में लोगो की घृणा रुपी 'बंपर ऑफर'!

जितने मुंह उतनी ही बातें! कोई उस 22-23 साल के उस गे लड़के से परेशान है जो परिवार के दबाब में आकर एक गरीब परिवार की लड़की से शादी कर लेता है पर पति सुख से वंचित उस लड़की के अपने ही बुआ के लड़के के साथ संबंधो से परेशान होकर आत्महत्या कर लेता है। (परेशान सज्जन के अनुसार लड़का तो गेंहूँ था, बना ही पिसने के लिए था,,, पर घुन तो उसके माँ बाप और पत्नी हैं जो बेचारे अकारण ही पिस गए।)

एक अन्य सज्जन भी हैं, जिनके अनुसार दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला बड़ा दुविधा में डालने वाला रहा है। इस फैसले के कारण सभी 'सेंसिटिव' और 'प्रोग्रेसिव' लोग गेस अथवा समलैंगिकों की श्रेणी में आ गए है। स्वयं 'इनसेंसिटिव' या 'रेग्रेसिवे' कहलाये जाने से भयभीत ये सज्जन खुद को भी गे घोषित करने का मूर्खतापूर्ण एवं अप्रभावी 'व्यंग' करते है। इस फैसले के बाद, इनके अनुसार, सभी गेस और होमोसेक्सुअलस के लिए 'ऐश' करने के रास्ते साफ़ हो गए हैं। पश्चिमी देशों से इन्हें इस विषय में 'प्रतिस्पर्धा' बिल्कुल भी नहीं सुहाती हैं।

कोई इसे बीमारी कहता है, कोई इसे नैतिक पतन और कुछ अविचारशील लोग इस विषय में केवल हँसकर ही अपने आपको धन्य मानते है। आपको विश्वास हो न हो पर हमारे देश भारत में भी ऐसे कई लोग है जो मृत्युदण्ड को ही समलैंगिकता का एकमात्र 'उपाय' समझते है। ऐसे भी कई 'महापुरुष' इस पुन्य धरा पर अवतरित हुए हैं जो मानवीय दृष्टिकोण से मृत्युदण्ड के बजाय गे लोगो के लिए प्रथक समाज और शहर बसाये जाने की बात भी करते हैं जहाँ सभी गेस को अनिवार्य रूप से जाना होगा, जिससे की बाकी समाज को इस विकृति से बचाया जा सके।

सामाजिक और नैतिक पतन, अप्राकृतिक व्यवहार, भोगवाद को प्रोत्साहन, पारिवारिक मूल्यों का ह्रास, संसार में मानवजाति के अस्तित्व को खतरा और भी न जाने क्या क्या! असल में भारतीय लोगो की गे अथवा होमोसेक्सुअलस के विषय में जो पूर्व-धारणायें बनी हुईं हैं उनके पीछे एक भी तर्क-संगत कारण नहीं हैं। हाँ, ये सारी धारणाएँ देसी नहीं हैं, बल्कि अधिकांश विदेशी परिपेक्ष्यों से आयातित हैं। पर यह भी सत्य हैं कि इनमे कुछ देसी 'जुगाड़' भी जुड़ गए हैं।


पुरुषत्व की कमी और स्त्री गुणों की प्रधानता का आरोप लगाकर गे लोगों की खिल्ली उड़ना तो तब भी अच्छा हैं पर उनके बारे में इस तरह बात करना कि मानो वे पशुधन हो या फिर कोई निर्जीव वस्तु हो, जिनमे किसी प्रकार की संवेदनाएँ ही नहीं हैं, कैसे सहा जा सकता हैं? गे लोगो पर केवल और केवल 'ऐश' करने का आरोप लगाने वालों की असल जिन्दगी में कितने गे लोगों से पहचान होती हैं? कितने 5 स्टार होटेल्स में जाकर उन्होंने गेस को मस्ती करते हुए पकड़ा हैं। पकड़ा भी है या नहीं? और यदि पकड़ा हैं तो क्या वहाँ एक भी स्ट्रैट व्यक्ति उनकी ही तरह मस्ती नहीं कर रहा था?

जिस देश में एक भी मूवी बिना 'लव स्टोरी' के न बनती हो, वहाँ अगर लोगो को यह बात याद दिलानी पड़े और समझानी पड़े कि गे लोग भी इंसान है और स्ट्रैटस की तरह वे भी प्यार के इच्छुक हैं उनके लिए भी प्यार का वही मतलब है, वे भी एक छोटा सा परिवार चाहते हैं, वे भी दूसरों से यह अपेक्षा रखते हैं कि लोग उनकी निजी जिन्दगी में हस्तक्षेप नहीं करेगें, तो इससे अधिक दुर्भाग्य की बात और क्या हो सकती है? प्यार करना और प्यार पाने की इच्छा केवल स्ट्रैट लोगो को ही होती हो ऐसा जरूरी तो नहीं। या फिर अंततोगत्वा गे लोगो को भी यही कहना होगा "मैं करूँ तो साला केरेक्टर ढीला है?"

सभी स्ट्रैट लोग जो गे अथवा समलैंगिको के विषय में घिनोनी राय रखते है कृपया एक बार फिर शुरू से सोचें। पर अबकी बार किसी गे की किसी बॉलीवुड मूवी में दिखाई लम्पट छवि को ध्यान में रखते हुए न सोचे, न ही गे परेड में एक दूसरे को खुले आम चूमते चेहरे ध्यान में लायें। इस बार किसी 25-26 वर्ष के एक डॉक्टर, इंजिनियर, लॉयर या किसी मल्टीनेशनल कम्पनी में काम करने वाले एक शिक्षित लड़के के बारे में सोचिये। ऐसा लड़का जिसकी परिवार के सभी सदस्य और रिश्तेदार तारीफ करते नहीं थकते। जो अपनी सभी जिम्मेदारियों जो आज तक ठीक तरह से निभाता आया है। जिसको एक आदर्श भाई, बेटा या मित्र माना जाता है तथा एक आदर्श पति बनने के सभी गुण विद्यमान होने के कारण जिसके लिए रिश्तेदार शादी के रिश्तो की लाइन लगाकर रखते हों। पर जो अपनी ईश्वर के प्रति आस्था और किसी को भी धोखा न देने के संस्कारों में पक्के विश्वास के कारण हर रिश्ते को मना कर देता है क्योंकि वह जानता है कि चाहते हुए भी वह अपनी भावी पत्नी को वह सुख और प्यार नहीं दे पाएगा जिसकी किसी भी पत्नी को अपेक्षा होती है। जो हमेशा से यह जानता है कि वह अपने जैसे एक लड़के के साथ ठीक उसी प्रकार की ख़ुशी और संतुष्टि पा सकता है जैसी कि उसके हमउम्र मित्र एक लड़की के साथ अनुभव करते है परन्तु तब भी सिर्फ अपने माँ बाप को दुःख न पहुँचाने और समाज में उनकी प्रतिष्ठा (?) बनाये रखने के निमित्त वह अपनी सभी निर्दोष भावनाओं को मारता चला आया है। आप ऐसे किसी गे के विषय में सोचिये। और साथ में यह भी सोचिये कि थोड़े बहुत फेर बदल के साथ ऐसा एक व्यक्ति आप के परिवार में, पड़ोस में, रिश्तेदारों में, ऑफिस में या फिर मित्र-मण्डल में भी तो हो सकता है। और भगवान न करे कहीं वह आपका बेटा, भाई, भतीजा, परम मित्र या फिर ऐसा ऑफिस कौलिग़ जिससे आपकी खूब पटती हो, निकला तो आप क्या करेंगे? क्या तब भी आप हँसेंगे? या उसकी खिल्लियाँ उड़ायेंगे? कहीं आप उसके लिए भी तो मृत्युदण्ड का प्रावधान करवाने के विषय में तो नहीं सोचेंगे? क्या अचानक वह आपके मस्तिष्क में बनाये गए उच्च श्रेणी के लोगो के पद से गिरकर एक निर्ल्लज और ऐश पंसंद व्यक्ति तो नहीं बन जायेगा! 


अक्सर जब भी लोग किसी गे के विषय में अपने मस्तिष्क में एक छवि बनाते हैं तो वह वास्तविक जीवन के किसी उदाहरण के आभाव में फिल्मों और मीडिया के माध्यम से आने वाली सूचना पर आधारित होती है। ऐसी स्तिथि में 'गे' किसी परग्रही खलनायक का रूप ले लेता है जिसके लिए परिवार, प्यार, दोस्ती, धार्मिकता, संस्कार आदि अस्तित्व में होते ही नहीं हैं। एक बार गे व्यक्ति को अपने से भिन्न मान लेने पर हमे उसमे अधिक- और अधिक अवगुण देखने में कोई तकलीफ नहीं होती। तब न केवल हम उसके अन्य लोगो जैसे अवगुणों को और बड़ा चड़ा कर दिखाते है बल्कि उसमे नये नये अवगुणों का अविष्कार कर के देखने लगते है। अंत में एक ऐसी छवि का निर्माण होता है जो अगर गे न भी होती तो भी घृणास्पद ही होती।

कितना सही कहा है Christian Nestell Bovee ने - "We fear things in proportion to our ignorance of them." अर्थात - "हम किसी चीज़ से उसके प्रति अपने अज्ञान के अनुपात के डरते हैं।" ठीक यही कारण है कि गे लोगो के प्रति घृणा, डर और अविश्वास का वातावरण बनाने वाले अधिकांश लोग किसी भी गे के संपर्क में आये ही नहीं होते।

एक बार गे लोगो को भी अपने ही जैसा इंसान मान लिया जाए तो आधी समस्या तो वहीँ समाप्त हो जाती है। क्योंकि तब लोग उनकी इच्छाओं या भावनाओं तथा अपनी इच्छाओं और भावनाओं में चौंकाने वाली समानताएं देखने लगते हैं। उन्हें पता चलने लगता है कि न केवल वे भी प्यार और परिवार पाने के इच्छुक होते हैं बल्कि उन्होंने भी बड़े दूरगामी सपने संजोये होते हैं। और उन सपनों के टूटने का उनको भी वैसा ही दर्द होता हैं जैसा कि स्ट्रैट लोगो को होता है। तब यह बात समझने में अधिक परिश्रम नहीं होता कि कैसे एक लड़का दूसरे लड़के से या एक लड़की दूसरी लड़की से बिछड़ने के ख्याल से कैसे सिहर उठ सकते हैं!

निश्चय ही, अपनी ख़ुशी और गे लोगो की ख़ुशी तथा अपने दुःख और गे लोगो के दुःख में समानता का एक बार अहसास हो जाने पर कोई भी संतुलित एवं सभ्य मस्तिष्क का इंसान न तो किसी गे व्यक्ति से घृणा कर सकता है और न ही उन्हें निर्ल्लज और ऐश पसंद कह कर उनकी खिल्ली उड़ा सकता है, समाज से उन्हें बहिष्कृत करने या उनके लिए मृत्युदण्ड के प्रावधान करने जैसी बातें सोचना तो बहुत दूर की बात है। और फिर क्या कोई भी धार्मिक प्रवृति का इंसान या सहृद व्यक्ति कभी किसी को आत्महत्या करते देखना चाहेगा या फिर जीवन भर उसकी ख़ुशी के मार्ग का पत्थर बना रहना चाहेगा? इन दया-धर्म से अभिभूत बातों को छोड़ भी दे तो भी एक गे व्यक्ति की जबर्दस्ती शादी एक निर्दोष लड़की से करवाकर किसी को क्या लाभ? और अगर दो लड़के (या दो लडकियाँ) एक दूसरे के साथ ख़ुशी ख़ुशी जीवन बिताना चाहें तो इससे किसी को क्या हानि?

अंत में कहूँ तो-- एक संतुष्ट गे दंपत्ति जो समाज के लिए विविध प्रकार से उपयोगी सिद्ध हो सकतें है या फिर असंतुष्ट और समाज के प्रति आक्रोश से भरे दो गे -- के बीच में चुनाव आपके हाथ में है।

Wednesday, 17 April 2013

जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन, नई रीत चलाकर तुम ये रीत अमर कर दो



कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है
ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है
वो ना आये तो सताती है एक ख़लिश दिल को
वो जो आये तो ख़लिश और जवाँ होती है
रूह को शाद करे दिल को पुर-नूर करे
हर नज़ारे में ये तनवीर कहाँ होती है
ज़ब्त-ए-सैलाब-ए-मुहब्बत को कहाँ तक रोके
दिल में जो बात हो आखों से बयाँ होती है
ज़िन्दगी एक सुलगती सी चिता है “साहिर”
शोला बनती है ना ये बुझ के धुआँ होती है

Can’t explain to people, why I love you…!!!

Sunday, 14 April 2013

USELESS OPTIONS IN INDIA


France Did It...

French Parliament voted to approve a bill allowing Same Sex Marriages and Adoption Rights to Gay Couples on 12.04.2013.

Justice Minister Christiane Taubira, a supporter of the bill, said legalizing gay marriage and enshrining adoption rights “is an act of freedom, it is an act of equality, and it is an act of brotherhood”
Notable thing is - France did it despite of the protest by thousands of people in Paris earlier this year in January. 
I am pleased that justice has prevailed.

When in India, are we going to even think about it??? (Gays included.)

Friday, 12 April 2013

Finding Love!!




I know everyone wants to believe that someone loves you. But biggest fools are those who rely solely on words. 

Don’t blame all gays for your own foolishness whereby you rely on an unreliable person. Be wise and patient while choosing a person and relying on him. 

Don’t beat a drum when you get the right one!! 

~Prove That Gays Can Love Too. 

Thursday, 11 April 2013

Illusion Of Betterment

Yes, there are many countries in the world where condition of gays is even worse than in India. Yes, I acknowledge that the Delhi High Court’s judgment has been a mile stone in the history of ‘gay rights moment’ in India. But do we have to be content with the argument that the condition of gays in India is far better than their Pakistani or Iranian counterparts? How long will we keep celebrating the celebrated judgment of Honorable Delhi High Court doing away with the unconstitutional interpretation of section 377? I agree that social changes cannot be brought overnight. I know we will have to take the gay rights issues in a systematic manner. But a conspicuous silence of majority of gays for their more basic rights is just too much for me to ignore anymore. The honorable High Court could only give a judgment on a question which was posed before it, so will do the Supreme Court of India. But in the process Government and Gay-bashers have played a trick on gays and we, pleasurably, have fallen into the same. The High Court’s judgment only made available the constitutional right which was being suppressed since the day of inception of our constitution. Instead of apologizing for this decades long suppression of gays and their rights, Government and people begin to misrepresent it as a huge concession or favor made for gays which should keep them satisfied at least for next few decades. They expect us not to demand our more basic right namely – ‘Being treated at par with straights in every walk of life’ and what I see and am sorry for,  is – we are fully complying with their expectation. We are so overwhelmed over this so called relief of ‘having sex with a person of same sex and not being prosecuted for the same’ that we have altogether forgotten our ultimate aim of social and legal equality. Contributing to this malice is the coward gay population which is very much okay and content with the freedom to have sex with another person of same sex. It just doesn’t matter to them whether gays are granted the right to marry and adopt children as a couple in next one year or in the next century because they are simply not for showing some courage and marry a person of same sex.
In such a scenario where gay right activists exist only for namesake, where a large population of gays is uninterested in having right of equality in every aspect of life and few enthusiastic gays are a little confused, my only hope is from the new generation of gays who are 18-24 years old. They are more demanding than most of other gays older to them. And I feel that being more demanding is one such quality which we all must have. Living in status-quo is always comfortable but life itself doesn’t like status-quos.
  

Monday, 8 April 2013

Disturbing Things


Few unexpected things are disturbing me these days.




Few months back, I went to market to buy a pair of shoe. In the shop a man was selecting shoes for his baby. And I was depressed for the rest of the day.











Few days back, I went to a park for a walk. A young lady there was making her little daughter familiar with the plants and the birds. I was almost into tears.





Being a 30 years old man, my heart longs for a child. A child, whom I can call my own. I almost forget that it is natural for a gay to cry for most basic features of life and not get it.


(Sorry, If I made my readers sad. But couldn’t help it.)

Dividing Gays

1) अगर गे लोग खुद ही गे लोगों से बिना किसी जायज़ कारण के घृणा करेंगे, तो कोई स्ट्रैट लोगो से यह आशा कैसे रख सकता है कि वे गेस को समाज में एक उचित स्थान प्रदान करेगें?


2) सिर्फ सेक्स का भूखा होना, धोखेबाज होना, अपनी बात से मुकर जाने वाला होना, प्यार और संबंधों में विश्वास का न होना, एक व्यक्ति विशेष के अवगुण हो सकते हैं उन्हें सभी गेस की पहचान मत बनाइये।


3) समाज में ऊँच-नीच और तरह तरह से भेदभाव का परिणाम हम सब वर्तमान में देख रहे है, गेस के साथ होने वाला समाज का अन्यायपूर्ण व्यव्हार भी एक तरह का भेदभाव ही है जिसमे गेस को निम्न-कोटि का मनुष्य माना जाता है। अब कृपया कर गेस में भी किसी को ऊँचा और नीचा मत बनाइये।


4) जिन्हें आप 'Girlish-Gays' कहते हैं, वे शायद आप से ज्यादा साहसी हैं, तभी तो सब तरह का अपमान सहते हुए भी दुनिया का सामना अपनी सच्चाई के साथ करते है। फिर कहूँगा कि उछ्रंखल होना, बेशर्म होना, एक व्यक्ति का अवगुण हो सकता है उसे पूरे वर्ग की पहचान मत बनाइये।


5) आप चाहें या न चाहें, दुनिया की नज़र में हर वह पुरुष जो किसी दूसरे पुरुष को पसंद करता है, एक गे ही है। जहाँ तक दुनिया की नज़रों में गे लोगो की बनी गलत छवि का प्रश्न है, तो वह गे लोगो के पुरुषत्व भरे व्यव्हार से ठीक नहीं की जा सकती। वह तो यही सिद्ध करके ठीक की जा सकती है कि गे लोग भी प्यार कर सकते है।

Thursday, 4 April 2013

The So Called Men!


Today, unfortunately I got to see a strange post on Facebook. This post proclaimed that those men who ‘just like’ other  men  and ‘behave like men’ are not gays. Gays are some people who behave like girls, dress up like girls and walk like girls.

I didn’t have to go very deep to understand/know  the immature and prejudiced  mind of the writer of the post. The post is itself an oxymoron. I ask, who will decide the behavior typical of a man? If one goes by the general perception then it is usually assumed that the behavior of a man – is  to like girls! Therefore even if the writer of the post proclaim to be a typical man, others are not bound to agree with him. Others have certain derogatory nouns and adjectives to define such ‘men’ which you all must be aware of. Being called “Gay” is the most respectful salutation which one can expect from those men who don’t have sexual interests in other men.

But one certainly has to go deeper to know the reason why some gays don’t prefer to be called gays. I feel there is no single reason for this. First among many may be the fear of hatred towards gays being unleashed on such people. Irony is – a man is supposed to face difficult situations bravely but these so called men are so timid that they would rather change their identities. If this be so, aren’t   those  so called girly gays, more manly who face the world with a courage?

Another reason may be just hypocrisy to facilitate in keeping your options open.  Due to their inherently coward nature, these people become a skilled opportunist. They would keep having other men, but when it comes to marriage, they would take an about turn and say, “Yaar, ye India hai. Humare yahan ye sab achha nahi mana jata.” etc. etc… I ask to such people – Why this sudden appearance of sainthood? Were they not aware of our social circumstances before indulging in all this? But what can you expect from an opportunist? They certainly would have no answer to this.

One can count few other reasons like this but the fact remains that so called girlish gays are more manly for the simple reason that they have the courage to face the world with their true identity. The so called men are more afraid of society and parents. Many so called girlish gays even have to courage to contemplate and face an eventuality where they will be alone for rest of their life for the want of a life partner who accepts them as such. They think, they act, they face. Therefore I don’t want to believe even for a second that they are any lesser being than others. Of course being a human, they too have certain deficiencies with which they are conducting themselves but that doesn’t mean someone gets the right to demean them. 

Wednesday, 3 April 2013

एक कठिन कार्य

अधिकांश युवा मित्र जो विचारशील होने के साथ-साथ खुले दिमाग के भी हैं, अपने हृदय पर हाथ रखकर खुद से पूँछे कि जब उन्हें एक लड़की अच्छी लगने लगती है तो मन के क्या भाव होते हैं? क्या तब आप मन से यह नहीं चाह रहे होते कि आपका और उसका साथ हमेशा-हमेशा के लिए हो जाये? आप उसका पूरा ख्याल रखें और वह भी आपकी हर छोटी बड़ी बात को समझे? दुनिया के सामने आप उसे गर्व से अपनी कह सकें और वह भी आपका हाथ पकड़ने में सुरक्षित महसूस करती हो? आप दोनों इशारों में ही एक दुसरे को अपने मन की बात समझा जायें? और सोचिये कि- क्या जब आप दोनों एक दूसरे से प्यार भी करने लगते हो तो क्या आप मिलकर एक प्यारा सा परिवार बसाने का सपना नहीं देखते? आपमें से जो एक अनुकूल साथी पाकर इस अवस्था तक पहुँच गए हैं, ने तो शायद अपने बच्चो के नाम भी निश्चित कर लिए होंगें! सच है ना?


मैं एक गे हूँ और मुझे एक लड़की को देखकर कभी भी ऐसा नहीं लगा। तो भी मैं आपकी इन भावनाओं को जानता भी हूँ और समझ भी सकता हूँ। तब आप ऐसा मेरे जैसे लोगो की समरूप भावनाओं के विषय में क्यों नहीं कर सकते? क्या यह इतना कठिन कार्य है?

सेक्स की भूख से आगे

काश कि बात केवल सेक्स तक ही सीमित होती तो अधिकांश गे लोग अपनी इच्छाओं को मारकर अपने परिवार के लोगो की ख़ुशी के लिए एक स्ट्रैट आदमी बन जाते। और इसमें कोई बुराई भी नहीं होती। पर बात तो 'केवल सेक्स की भूख' से कहीं अधिक आगे की है। बात किसी का प्यार पाने, किसी को प्यार करने, एक परिवार के सपने संजोने और इन सपनो को अपना जी-जान लगाकर साकार करने की हो तो इतनी आसानी से उसे ताक़ पर नहीं रखा जा सकता। जिस संसार के अधिकांश लोग जीवन भर अपनी इन्द्रियों को अपने वश में रखने के लिए संघर्ष करते रहने के बावजूद असफल रहते हो, वहां अगर गेस को मन की उन भावनाओं, जिनका सम्बन्ध प्रेम से है, पर लगाम लगाने के लिए विवश किया जाये तो इससे अधिक मूर्खता और दोगलेपन की बात और क्या होगी? 

If it were just limited to the desire to have sex, most of the gays would have killed their desires long back for the sack of happiness of their families. They would have turned into a straight guy and there wouldn't be anything wrong in it. But it is far away from 'hunger for sex'. It is about the desire of loving someone, being loved by someone, dreaming for a family and doing everything to materialize that dream and for sure such desires cannot be ignored. In a world where most of the people who struggle to control their senses, remain unsuccessful, if gays are asked to control those desires which pertain to 'love' then it can only be called foolishness and double speak.

Tuesday, 2 April 2013

Families For Straights Only!

कितनी गन्दी mentality है यह कि एक 'नये-नये' जवान हुए एक लड़के के परिवार वाले और मित्र उसकी लड़कियों में बढती हुई रूचि पर गर्व का सा अनुभव करते है, वहीँ दूसरी ओर एक दूसरे लड़के के परिवार वाले उसके लडको के प्रति रुझान पर उसकी बेज्जति करने में कोई कसर नहीं रख छोड़ते (खास तौर से पिता!) क्या families केवल straight बच्चों के लिए ही होतीं हैं? यह सब जानकर कौन सा gay बच्चा अपनी सच्चाई अपने परिवार को बताना चाहेगा?

Monday, 1 April 2013

एक हास्यास्पद बात


यह बात तो सब गेस को पता ही है (चाहें वे इसे सबके सामने स्वीकारें या नहीं) कि वे एक जीवन साथी चाहते है। पर अधिकांश इसके लिए प्रयत्न नहीं करते यह भी आप सब को पता होगा। पर कुछ गेस ऐसे भी हैं जो एक संबंध बना तो लेते है पर उसका क्या अंजाम होगा इस बारे में नहीं सोचते या कहा जाये कि सोचना ही नहीं चाहते। 

ऐसा कौन सा गे व्यक्ति है हमारे देश में जिसके लिए अपने परिवार को अपनी सच्चाई बताना और इसके लिए उन्हें मनाना आसान हो? तब अगर कोई सच्चाई के साथ शुरू किये गए संबंध को निभाना चाहता है तो क्या उसे नहीं पता कि इसके लिए उसे एक दिन अपने माता पिता को नाखुश करना ही होगा? क्या यह संबंध केवल सुविधाजनक परिस्तिथियों के लिए ही बनाया गया था?

क्षमा कीजिये, पर अधिकांश गे लोग इन सब बातों के बारे में सोचे बिना ही एक संबंध बनाते हैं और फिर इस बात की शिकायत करते है कि - गे संबंध बनते ही टूटने के लिए हैं। हास्यास्पद!