कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है वो ना आये तो सताती है एक ख़लिश दिल को वो जो आये तो ख़लिश और जवाँ होती है रूह को शाद करे दिल को पुर-नूर करे हर नज़ारे में ये तनवीर कहाँ होती है ज़ब्त-ए-सैलाब-ए-मुहब्बत को कहाँ तक रोके दिल में जो बात हो आखों से बयाँ होती है ज़िन्दगी एक सुलगती सी चिता है “साहिर” शोला बनती है ना ये बुझ के धुआँ होती है
Can’t explain to people, why I love you…!!! |
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