Saturday, 20 April 2013

कुछ तो लोग कहेंगे... A Request To Change Perspective.

भारत देश में और कुछ फ्री मिले न मिले, बिन मांगी सलाह हमेशा फ्री मिल ही जाती है। लोगो को वैसे भी हर किसी विषय पर अपने पांडित्य प्रदर्शन का कभी न समाप्त होने वाला शौक जो है। बच्चे को किस स्कूल में दाखिला दिलाया जाये या फिर कौन सा टीवी सेट या मोबाइल फ़ोन ख़रीदा जाये,,, हर समय बिन मांगी सलाह। और अगर आप गे हैं तो साथ में लोगो की घृणा रुपी 'बंपर ऑफर'!

जितने मुंह उतनी ही बातें! कोई उस 22-23 साल के उस गे लड़के से परेशान है जो परिवार के दबाब में आकर एक गरीब परिवार की लड़की से शादी कर लेता है पर पति सुख से वंचित उस लड़की के अपने ही बुआ के लड़के के साथ संबंधो से परेशान होकर आत्महत्या कर लेता है। (परेशान सज्जन के अनुसार लड़का तो गेंहूँ था, बना ही पिसने के लिए था,,, पर घुन तो उसके माँ बाप और पत्नी हैं जो बेचारे अकारण ही पिस गए।)

एक अन्य सज्जन भी हैं, जिनके अनुसार दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला बड़ा दुविधा में डालने वाला रहा है। इस फैसले के कारण सभी 'सेंसिटिव' और 'प्रोग्रेसिव' लोग गेस अथवा समलैंगिकों की श्रेणी में आ गए है। स्वयं 'इनसेंसिटिव' या 'रेग्रेसिवे' कहलाये जाने से भयभीत ये सज्जन खुद को भी गे घोषित करने का मूर्खतापूर्ण एवं अप्रभावी 'व्यंग' करते है। इस फैसले के बाद, इनके अनुसार, सभी गेस और होमोसेक्सुअलस के लिए 'ऐश' करने के रास्ते साफ़ हो गए हैं। पश्चिमी देशों से इन्हें इस विषय में 'प्रतिस्पर्धा' बिल्कुल भी नहीं सुहाती हैं।

कोई इसे बीमारी कहता है, कोई इसे नैतिक पतन और कुछ अविचारशील लोग इस विषय में केवल हँसकर ही अपने आपको धन्य मानते है। आपको विश्वास हो न हो पर हमारे देश भारत में भी ऐसे कई लोग है जो मृत्युदण्ड को ही समलैंगिकता का एकमात्र 'उपाय' समझते है। ऐसे भी कई 'महापुरुष' इस पुन्य धरा पर अवतरित हुए हैं जो मानवीय दृष्टिकोण से मृत्युदण्ड के बजाय गे लोगो के लिए प्रथक समाज और शहर बसाये जाने की बात भी करते हैं जहाँ सभी गेस को अनिवार्य रूप से जाना होगा, जिससे की बाकी समाज को इस विकृति से बचाया जा सके।

सामाजिक और नैतिक पतन, अप्राकृतिक व्यवहार, भोगवाद को प्रोत्साहन, पारिवारिक मूल्यों का ह्रास, संसार में मानवजाति के अस्तित्व को खतरा और भी न जाने क्या क्या! असल में भारतीय लोगो की गे अथवा होमोसेक्सुअलस के विषय में जो पूर्व-धारणायें बनी हुईं हैं उनके पीछे एक भी तर्क-संगत कारण नहीं हैं। हाँ, ये सारी धारणाएँ देसी नहीं हैं, बल्कि अधिकांश विदेशी परिपेक्ष्यों से आयातित हैं। पर यह भी सत्य हैं कि इनमे कुछ देसी 'जुगाड़' भी जुड़ गए हैं।


पुरुषत्व की कमी और स्त्री गुणों की प्रधानता का आरोप लगाकर गे लोगों की खिल्ली उड़ना तो तब भी अच्छा हैं पर उनके बारे में इस तरह बात करना कि मानो वे पशुधन हो या फिर कोई निर्जीव वस्तु हो, जिनमे किसी प्रकार की संवेदनाएँ ही नहीं हैं, कैसे सहा जा सकता हैं? गे लोगो पर केवल और केवल 'ऐश' करने का आरोप लगाने वालों की असल जिन्दगी में कितने गे लोगों से पहचान होती हैं? कितने 5 स्टार होटेल्स में जाकर उन्होंने गेस को मस्ती करते हुए पकड़ा हैं। पकड़ा भी है या नहीं? और यदि पकड़ा हैं तो क्या वहाँ एक भी स्ट्रैट व्यक्ति उनकी ही तरह मस्ती नहीं कर रहा था?

जिस देश में एक भी मूवी बिना 'लव स्टोरी' के न बनती हो, वहाँ अगर लोगो को यह बात याद दिलानी पड़े और समझानी पड़े कि गे लोग भी इंसान है और स्ट्रैटस की तरह वे भी प्यार के इच्छुक हैं उनके लिए भी प्यार का वही मतलब है, वे भी एक छोटा सा परिवार चाहते हैं, वे भी दूसरों से यह अपेक्षा रखते हैं कि लोग उनकी निजी जिन्दगी में हस्तक्षेप नहीं करेगें, तो इससे अधिक दुर्भाग्य की बात और क्या हो सकती है? प्यार करना और प्यार पाने की इच्छा केवल स्ट्रैट लोगो को ही होती हो ऐसा जरूरी तो नहीं। या फिर अंततोगत्वा गे लोगो को भी यही कहना होगा "मैं करूँ तो साला केरेक्टर ढीला है?"

सभी स्ट्रैट लोग जो गे अथवा समलैंगिको के विषय में घिनोनी राय रखते है कृपया एक बार फिर शुरू से सोचें। पर अबकी बार किसी गे की किसी बॉलीवुड मूवी में दिखाई लम्पट छवि को ध्यान में रखते हुए न सोचे, न ही गे परेड में एक दूसरे को खुले आम चूमते चेहरे ध्यान में लायें। इस बार किसी 25-26 वर्ष के एक डॉक्टर, इंजिनियर, लॉयर या किसी मल्टीनेशनल कम्पनी में काम करने वाले एक शिक्षित लड़के के बारे में सोचिये। ऐसा लड़का जिसकी परिवार के सभी सदस्य और रिश्तेदार तारीफ करते नहीं थकते। जो अपनी सभी जिम्मेदारियों जो आज तक ठीक तरह से निभाता आया है। जिसको एक आदर्श भाई, बेटा या मित्र माना जाता है तथा एक आदर्श पति बनने के सभी गुण विद्यमान होने के कारण जिसके लिए रिश्तेदार शादी के रिश्तो की लाइन लगाकर रखते हों। पर जो अपनी ईश्वर के प्रति आस्था और किसी को भी धोखा न देने के संस्कारों में पक्के विश्वास के कारण हर रिश्ते को मना कर देता है क्योंकि वह जानता है कि चाहते हुए भी वह अपनी भावी पत्नी को वह सुख और प्यार नहीं दे पाएगा जिसकी किसी भी पत्नी को अपेक्षा होती है। जो हमेशा से यह जानता है कि वह अपने जैसे एक लड़के के साथ ठीक उसी प्रकार की ख़ुशी और संतुष्टि पा सकता है जैसी कि उसके हमउम्र मित्र एक लड़की के साथ अनुभव करते है परन्तु तब भी सिर्फ अपने माँ बाप को दुःख न पहुँचाने और समाज में उनकी प्रतिष्ठा (?) बनाये रखने के निमित्त वह अपनी सभी निर्दोष भावनाओं को मारता चला आया है। आप ऐसे किसी गे के विषय में सोचिये। और साथ में यह भी सोचिये कि थोड़े बहुत फेर बदल के साथ ऐसा एक व्यक्ति आप के परिवार में, पड़ोस में, रिश्तेदारों में, ऑफिस में या फिर मित्र-मण्डल में भी तो हो सकता है। और भगवान न करे कहीं वह आपका बेटा, भाई, भतीजा, परम मित्र या फिर ऐसा ऑफिस कौलिग़ जिससे आपकी खूब पटती हो, निकला तो आप क्या करेंगे? क्या तब भी आप हँसेंगे? या उसकी खिल्लियाँ उड़ायेंगे? कहीं आप उसके लिए भी तो मृत्युदण्ड का प्रावधान करवाने के विषय में तो नहीं सोचेंगे? क्या अचानक वह आपके मस्तिष्क में बनाये गए उच्च श्रेणी के लोगो के पद से गिरकर एक निर्ल्लज और ऐश पंसंद व्यक्ति तो नहीं बन जायेगा! 


अक्सर जब भी लोग किसी गे के विषय में अपने मस्तिष्क में एक छवि बनाते हैं तो वह वास्तविक जीवन के किसी उदाहरण के आभाव में फिल्मों और मीडिया के माध्यम से आने वाली सूचना पर आधारित होती है। ऐसी स्तिथि में 'गे' किसी परग्रही खलनायक का रूप ले लेता है जिसके लिए परिवार, प्यार, दोस्ती, धार्मिकता, संस्कार आदि अस्तित्व में होते ही नहीं हैं। एक बार गे व्यक्ति को अपने से भिन्न मान लेने पर हमे उसमे अधिक- और अधिक अवगुण देखने में कोई तकलीफ नहीं होती। तब न केवल हम उसके अन्य लोगो जैसे अवगुणों को और बड़ा चड़ा कर दिखाते है बल्कि उसमे नये नये अवगुणों का अविष्कार कर के देखने लगते है। अंत में एक ऐसी छवि का निर्माण होता है जो अगर गे न भी होती तो भी घृणास्पद ही होती।

कितना सही कहा है Christian Nestell Bovee ने - "We fear things in proportion to our ignorance of them." अर्थात - "हम किसी चीज़ से उसके प्रति अपने अज्ञान के अनुपात के डरते हैं।" ठीक यही कारण है कि गे लोगो के प्रति घृणा, डर और अविश्वास का वातावरण बनाने वाले अधिकांश लोग किसी भी गे के संपर्क में आये ही नहीं होते।

एक बार गे लोगो को भी अपने ही जैसा इंसान मान लिया जाए तो आधी समस्या तो वहीँ समाप्त हो जाती है। क्योंकि तब लोग उनकी इच्छाओं या भावनाओं तथा अपनी इच्छाओं और भावनाओं में चौंकाने वाली समानताएं देखने लगते हैं। उन्हें पता चलने लगता है कि न केवल वे भी प्यार और परिवार पाने के इच्छुक होते हैं बल्कि उन्होंने भी बड़े दूरगामी सपने संजोये होते हैं। और उन सपनों के टूटने का उनको भी वैसा ही दर्द होता हैं जैसा कि स्ट्रैट लोगो को होता है। तब यह बात समझने में अधिक परिश्रम नहीं होता कि कैसे एक लड़का दूसरे लड़के से या एक लड़की दूसरी लड़की से बिछड़ने के ख्याल से कैसे सिहर उठ सकते हैं!

निश्चय ही, अपनी ख़ुशी और गे लोगो की ख़ुशी तथा अपने दुःख और गे लोगो के दुःख में समानता का एक बार अहसास हो जाने पर कोई भी संतुलित एवं सभ्य मस्तिष्क का इंसान न तो किसी गे व्यक्ति से घृणा कर सकता है और न ही उन्हें निर्ल्लज और ऐश पसंद कह कर उनकी खिल्ली उड़ा सकता है, समाज से उन्हें बहिष्कृत करने या उनके लिए मृत्युदण्ड के प्रावधान करने जैसी बातें सोचना तो बहुत दूर की बात है। और फिर क्या कोई भी धार्मिक प्रवृति का इंसान या सहृद व्यक्ति कभी किसी को आत्महत्या करते देखना चाहेगा या फिर जीवन भर उसकी ख़ुशी के मार्ग का पत्थर बना रहना चाहेगा? इन दया-धर्म से अभिभूत बातों को छोड़ भी दे तो भी एक गे व्यक्ति की जबर्दस्ती शादी एक निर्दोष लड़की से करवाकर किसी को क्या लाभ? और अगर दो लड़के (या दो लडकियाँ) एक दूसरे के साथ ख़ुशी ख़ुशी जीवन बिताना चाहें तो इससे किसी को क्या हानि?

अंत में कहूँ तो-- एक संतुष्ट गे दंपत्ति जो समाज के लिए विविध प्रकार से उपयोगी सिद्ध हो सकतें है या फिर असंतुष्ट और समाज के प्रति आक्रोश से भरे दो गे -- के बीच में चुनाव आपके हाथ में है।

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