एक सामान्य अनुभव की बात है कि आँखों पर जिस रंग का शीशा लगा कर देखा जाए, संसार उसी रंग में रंगा दिखाई देता है। ठीक यही बात हमारे मन एवम बुद्धि के विषय में भी है। अक्सर हमारा मन एवं बुद्धि इतने पूर्वाग्रहों से ग्रसित होते हैं कि सामने सत्य साक्षात् खड़ा हो तो भी उसे नहीं देख सकते, उलटे उस सत्य का अर्थ अपने पूर्वाग्रहों के आधार पर अपने मन को भाने वाला लगा लेतें है।
किसी भी व्यक्ति का स्वयं को Gay जानकार लिया गया कोई भी निर्णय संस्कारों एवं पूर्वाग्रहों से निश्चय ही अभिभूत होता है। पर कौन सा निर्णय ठीक है इस बात का निश्चय कैसे हो?
एक शुभेच्छा रखने वाले मित्र ने आज बहुत बलपूर्वक यह बात कही कि - यह बात जानने के बाद भी कि मैं एक Gay हूँ, मुझे एक लड़की से शादी कर लेनी चाहिए।
मेरा खुद का भी यही अनुभव है कि 99% Gays किसी ना किसी समय ठीक यही निर्णय ले बैठते है। हालाँकि सभी के ऐसा Decision लेने के Reasons अलग अलग होते है। पर कारण चाहें जो भी हों, मुझे क्यों नहीं जंचते, मैं यहाँ संक्षेप में बताना चाहूँगा।
पहले मैं बहुत ही निम्न कोटि (Inferior)
के कारणों से शुरू करना चाहूँगा जिनके लिए अधिक समय बर्बाद करने की जरूरत नहीं है।
Reason 1 :
अगर एक लड़की से शादी करने के बाद भी कोई अपनी Gay Life
जी सकता है तो शादी करके समाज और परिवार के आक्षेपों से बचने में बुराई ही क्या है?
बुराई है। सबसे पहले तो यह कारण देने वाले यह मान कर चलते है कि एक Gay होने के बावजूद वे एक लड़की को Physically
और Emotionally
खुश रख सकते है। दूसरा यह कि शादी के बाद भी ये लोग अगर गुपचुप तरीके से अपनी Gay गतिविधियाँ जारी रख पाते है तो यह कोई Immoral काम नहीं होगा। जबकि इन दोनों में से कोई भी बात सच्ची या ठीक नहीं है।
क्या होगा अगर ये लोग अपनी Wife को Physically
संतुष्ट नहीं कर सके? क्या होगा अगर ये लोग अपनी Wife को Physically
तो संतुष्ट कर देते है पर उसकी Emotional जरूरतें पूरी नहीं कर पाते है? अगर शादी के बाद भी एक लड़के के साथ Extra Marital Affair
रखना कोई Immoral काम नहीं है तो क्या ये लोग अपने इस 'शौक' के बारे में अपनी पत्नी को बताएगें?
Reason 2 :
भारत में Gay Relationships
चल ही नहीं सकते। या फिर एक सच्चा व्यक्ति मिलता ही कहाँ है जिसके साथ Relationship
शुरू की जाए?
फिर वही। ऐसा कहने वाले लोग यह मान कर चलते है कि Gay Relationships
में कुछ ख़ास कमी होती है जिसकी वजह से इनको चलाने के लिए कुछ अधिक प्रयास की जरूरत होती है, जो भारत जैसे देश में रहते हुए संभव नहीं हैं। ऐसे लोग तो Homophobic
लोगो से भी गए गुजरे हैं, क्योंकि खुद एक Gay होते हुए भी इनको यह नहीं पता कि एक Gay Relationship
ना तो किसी मायने में Special है और ना ही इसको बनाये रखने के लिए किसी Special Effort
की जरूरत होती है। यह Relationship
भी किसी साधारण Heterosexual
Relationship की तरह ही केवल और केवल प्यार और विश्वास पर आधारित होता है। हाँ, यह बात जरूर है कि भारत में Gay Relationships
के अधिक उदाहरण नहीं है जिनको प्रेरणा का स्त्रोत मानकर आगे बड़ा जाए, पर
Love-Based-Relationships की क्या कमी है जो वास्तव में हमारी प्रेरणा
स्त्रोत होने चाहिए!
जहाँ
तक एक सच्चा और अच्छा व्यक्ति पाने में होने वाली कठिनाइयों का सवाल है तो क्या
किसी काम को करने में आने वाली कठिनाइयों के कारण हम उस काम को करने का विचार त्याग
देते हैं? पढाई लिखाई, Job, Business कौन सा काम आसान है? पर हम ये सब काम करते
हैं। तो फिर एक सच्चा सम्बन्ध बनाने में आने वाली कठिनाइयों से ही हम क्यों डरते
हैं? क्या इसे हमारा Double Standard नहीं कहा जाना चाहिए?
Reason 3 : समाज Gay
Relationships का विरोध करता है। ऐसे में दो Gays का साथ साथ रह पाना बहुत ही कठिन
है।
हैरानी होती है कि शहरों में
रहने वाले पड़े लिखे Gays जो काफी हद तक आत्मनिर्भर है, ऐसी बात कहते हुए सुने जाते
हैं। इनसे बेहतर तो देहातों और छोटे शहरों में रहने वाले वे Heterosexual Couples
हैं जो साथ साथ रहने का निर्णय यह जानते हुए लेते हैं की उनको Honor Killing जैसी
एक भयावह सच्चाई का सामना करना पड सकता है। क्या समाज के मूर्खतापूर्ण विरोध का
सामना प्यार करने वाले एक Heterosexual Couple को नहीं करना पड़ता? क्या उन्हें
परिवार के द्वारा Emotionally Blackmail नहीं किया जाता? और क्या वे भी समाज और
परिवार की अनुचित मांगों के आगे घुटने टेक देते हैं? यदि नहीं तो Gays ऐसा करने की
क्यों सोचते हैं? क्या Gays अपने प्यार में खुद ही कोई खोट देखते हैं? क्या उनका
प्यार उन्हें एक Heterosexual Couple के प्यार से किसी भी तरह से निम्न कोटि
(Inferior) लगता हैं?
जानता
हूँ कि कोई भी Gay जिसने किसी से सच्चा प्यार किया है, अपने प्यार को एक
Heterosexual Couple के प्यार से कम नहीं आंकता। तब अपने प्यार को पीठ दिखाना सिर्फ
और सिर्फ कायरता नहीं तो और क्या है?
Reason 4 : Gays को परिवार
वालों के सुख के लिए अपना सुख त्याग देना चाहिए। अपने सुख के लिए तो जानवर जिया
करते हैं। परमार्थ नाम की भी कोई चीज़ है। धर्म के भी आधार पर अपने निजी स्वार्थ का
त्याग उत्तम माना गया है।
यह
Reason एक विस्तृत और भली भाँती सोचे गए उत्तर की अपेक्षा रखता है।
मेरा
निजी तौर पर यह मानना है कि मनुष्य स्वाभाविक रूप से स्वार्थी प्राणी है। (अपनी ही
कामना के लिये सब कुछ प्रिय होता है। ~वृहदारण्यक उपनिषद ) तब एक मनुष्य का अपने
स्वार्थ के विषय के बारे में पहले सोचना Natural ही है। एक Gay का अपने स्वार्थ के
बारे में सोचना (अर्थात एक लड़के के साथ जीवन बिताने के बारे में सोचना) कोई विशेष
प्रकार का स्वार्थ नहीं हुआ। वह अपनी प्रकृति वश ऐसा सोचने और करने के लिए बाध्य
है। एक बार ऐसा साफ़ हो जाने पर हम अगली बात (निजी स्वार्थ का त्याग) पर विचार कर
सकते हैं।
इसमें
कोई संदेह नहीं है कि निजी स्वार्थ का त्याग धर्म और मानवता के आधार पर उत्तम है।
पर हमे यह भी सोचना होगा कि कहीं हम जिसे परिवार के लिए अपना त्याग मान रहे हैं वह
परिस्तिथियों के आगे धुटने टेकना या कायरता तो नहीं है? चूंकि यहाँ धर्म के आधार पर
Gays को यह सम्मति दी जा रही है कि वे अपना निजी स्वार्थ छोड़ कर और लोगो का भला
सोचे इसीलिये धर्म के आधार पर ही इसका उत्तर देना होगा ।
एक
बात में कोई संशय नहीं है की Gays स्वयं किसी लड़के से प्यार करने को गलत नहीं मानते
हैं। अगर उनको एक ऐसे संसार में भेज दिया जाए जहाँ किसी लड़के के साथ एक लड़के का
जीवन बिताना गलत नहीं समझा जाता तो वे कभी भी किसी लड़की से शादी करने के बारे में
नहीं सोचेंगे। यह बात मैं पहले भी कई बार कह चुका हूँ कि कम से कम हिन्दू धर्म (या
वैदिक धर्म) में मैं ऐसी कोई निषेधाज्ञ नहीं देखता हूँ जिससे यह सिद्ध किया जा सकता
हो कि Gay होना किसी तरह से धर्मविरुद्ध होना है। ईश्वर की दृष्टि में एक समर्पित
Gay और एक समर्पित Straight में कोई फर्क नहीं है। जहाँ तक सम्बन्धियों के प्रति
प्रेम और त्याग की भावना का प्रश्न है तो किसी Gay का सम्बन्धियों एवं परिवार के
लोगो को कष्ट ना देकर अपने स्वाभाविक धर्म को छोड़ना मुझे त्याग कम, परिस्तिथियों से
भागना ज्यादा लगता हैं। ठीक इसी तरह की कायरता गीता के प्रसंग में अर्जुन ने दिखाई
थी। आपको पता हैं कि आपके सामने आपके सम्बन्धी और समाज के सभी लोग एक धर्मविरुद्ध
बात के पक्ष और एक सच्ची तथा धर्मपूर्ण बात के विपक्ष में खड़े हैं, आपको यह भी पता
है की उनकी बात को मान कर पीछे हट जाना एक धर्म विरुद्ध बात होगी। पर चूँकि उनके
विरोध में खड़े होकर धर्म के मार्ग पर चलना आपको कठिन एवं कष्टकर (शारीरिक या मानसिक
रूप से) प्रतीत होता है और इसलिए आप उनके पक्ष में आकर अपने आप को एक त्यागी पुरुष
दिखाते हैं तो मेरे मत में यह त्याग नहीं पाखण्ड है। इसी कारण श्री कृष्ण ने अर्जुन
के सम्बन्धियों को मारकर राज्य के सुख भोगने के बजाये भिक्षा मांगकर पेट भरने के
विचार की निंदा की थी। इस पाखण्ड के अतिरिक्त इसमें एक बड़ा दोष और भी है। अगर किसी
मायने में इससे त्याग मान लें तो भी यह त्याग निम्न कोटि का त्याग कहा जायेगा।
क्योंकि ऐसा तथाकतिथ त्याग आपके स्वयं के परिवार के स्वार्थ पूर्ति के लिए है और
इसमें किसी एक व्यक्ति विशेष के स्वार्थ की अनदेखी की गई है या कहूँ तो एक व्यक्ति
विशेष को एक वस्तु की तरह इस्तेमाल किया गया है। जी हाँ यहाँ मैं उस लड़की की बात कर
रहा हूँ जिससे ये Gays अपने परिवार को संतुष्ट करने के लिए शादी करेंगे। मुझे नहीं
पता कौन सा धर्मग्रन्थ स्वयं को त्यागी प्रदर्शित करने के लिए किसी भोले भाले इंसान
के निर्मम इस्तेमाल की छूंट देता है। मुझे नहीं पता किस आधार पर ये साधारण व्यक्ति
यह भविष्यवाणी करते है कि ये अपनी पत्नी को सभी प्रकार से सुखी रख पाएंगे, या फिर
ये कभी भी शारीरिक या मानसिक रूप से उसे धोखा नहीं देंगें? जबकि ऐसा कहने वाले
स्वयं रोज़ ऐसे शादी शुदा Gays को देखते हैं जो दो पल की खुशियाँ पाकर अपने परिवार
को खुश रखने के बहाने बना कर अपने से आधी उम्र के लडको के साथ सोना चाहते हैं (और
उनके मत में वे भी बहुत बड़ा त्याग कर रहे होते हैं, अपने परिवार के
लिए।) !
अंत
में मैं इस कारण के उत्तर में केवल यह कहना चाहूँगा कि एक पशु भी अपना और अपने
परिवार का पेट भरने और उन्ही की स्वार्थपूर्ति के क्रियाकलापों को करने में व्यस्त
रहता हैं। उसको यह भान नहीं होता कि क्या धर्म है और क्या अधर्म है। पर मनुष्य
विवेकी प्राणी है। उससे कुछ अधिक की अपेक्षा की जाती है।
एक
समय दिल्ली जैसे बड़े शहरों की भी यह हालत थी कि अगर मोहल्ले में कोई लड़का या लड़की
भी Love-Marriage कर लिया करते थे तो सालों तक उस बात के चर्चे बड़े बूडों के मुंह
पर रहा करते थे। घर परिवार वालों का किसी को मुंह दिखाना भी असंभव सा हो जाता था।
लड़के और लड़की को अपने अपने घरों से कहीं दूर जाकर रहना पड़ता था। पर 15-20 सालों
में, मैं एक बड़ा बदलाव देखता हूँ। अब दिल्ली की हर Residential Colony में
Love-Marriages के किस्से आम हैं। लोगो अब 2-4 दिन से अधिक ऐसी घटनाओं की चर्चा
नहीं करते। परिवार के लोग भी इसे जीते जी मर जाने वाली बात नहीं मानते। और यह सब
कुछ स्वार्थी लोगो की वजह से हुआ है जिन्होंने अपने अपने परिवार के लोगों की
बेज्जती की परवाह किये बगैर अपने प्यार को सर्वोपरि माना। यह उन्ही स्वार्थी और
असंस्कारी लोगो की बेशर्मी का ही फल है कि आज प्यार करने वाले एक लड़के और लड़की को
दिन रात भय के साये में नहीं गुजारनी पड़ती। यह उन्ही पशुवत स्वार्थी लोगो द्वारा
सही तरह तरह की तकलीफों का ही परिणाम है कि आज एक लड़के या लड़की को किसी से प्यार
करने से पहले दिल दहला देने वाली बातें सोचने की आवश्यकता नहीं होती। पर Gays! Gays
तो कुछ और ही सोच कर बैठे हैं।
निश्चय ही आज जो भी Gay किसी
लड़के से प्यार करके उसके साथ रहने का दुस्साहस करने की कोशिश करेगा उसको ना केवल
सामाजिक प्रतारणा का सामना करना पड़ेगा बल्कि उसके परिवार की दृष्टि में उसे
स्वार्थी भी समझा जायेगा। तरह तरह की कठिनाइयाँ उसके रास्ते में आती रहेंगी। पर अगर
आप जानते हैं कि जो आप कर रहे हैं वह सही है तो इस सब से आप अपने रास्ते से नहीं
हटेंगे और चूँकि आप अपने धर्म के मार्ग पर चल रहे होंगे, आपको यह विश्वास भी होगा
कि ईश्वर आपके साथ ही है।
यहाँ
मैंने लोगो के तरह तरह के Reasons का उत्तर उनकी ही भाषा में दिया है। चूँकि Gays
खुद ही अक्सर ऐसे प्रश्न उठाते है इसलिए ये उत्तर भी उन्ही के लिए हैं और इसीलिए
यहाँ मैंने प्यार, लगाव और स्वाभाव पर कुछ विशेष बल देकर कुछ नहीं कहा क्योंकि सभी
सच्चे Gays इन सब बातों से भली भांति परिचित हैं। कितने ही Gays हैं जो अक्सर इन सब
बातों के लिए रोते हैं। वास्तव में तो केवल किसी व्यक्ति से प्यार करना ही सबसे बड़ा
कारण बन सकता हैं किसी भी व्यक्ति के लिए समाज और परिवार की विरुद्ध जाने का। लेकिन
इस बारे में कभी और बात करते हैं।
~Prove
That Gays Can Love Too.
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