"जुलाई के उस बरसाती महीने में शनिवार के दिन ऑफिस से जल्दी छुट्टी लेकर निकलना और उसको अपनी बाइक पर बैठे इंतज़ार करते देखना। फिर उसकी एक दो मिनट भर की शिकायतें। आसमान में उठती काली घटाएं और बाइक पर सफ़र करते हुए मेरा उसे कसकर पकड़ना। रास्ते में होने वाली हलकी बौछार से बचने के लिए उस चौड़ी और हरी-भरी सड़क के किनारे एक घने पेड़ के नीचे रुकना और समय बिताने के लिए एक भुट्टा लेकर उसे आधा-आधा बाँट कर खाना। शाम के चार बजे ही बादलों का अंधियारा करना और अंत में हारकर उसी मौसम में घर के लिए भीगते हुए निकल पड़ना। बरसात और तेज होनी थी यह दोनों को ही पता था, तो भी दोनों क्यों रुके इस प्रश्न का भान भी नहीं होना!"
बरसात का यह मौसम दिल्ली से अभी एक-डेढ महीने दूर है, पर सच बताइए ऐसा सपना देखने के लिए आज कोई मनाही है? और फिर इस सपने को सच्चाई में बदलने से आपको स्वयं आपके अलावा किसी ने रोका है?
एक गे के इस सपने पर कईयों को हँसी आ जाती होगी। पर हँसी तो एक दिन चाँद को भी 'मनुष्य मात्र' के सपनों पर भी बहुत आई थी। पर रामधारी सिंह "दिनकर" के शब्दों में :-
"मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते"
(I am not one who just put tick-marks on his dream-list.)
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"रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को"
(You dare to stop somehow these dreamers!)
इसीलिए इस तपती गर्मी में मौसम में ऐसे सपने भी देखिये और इन्हें केवल स्वप्न भर ही बनकर न रह जाने दीजिये। किसी भी सपने को सच्चाई में बदलने के लिए थोड़ी मेहनत तो करनी ही पड़ती है, कुछ लोगों की दृष्टि में बुरा तो बनना ही पड़ता है थोडा अपमान तो झेलना ही पड़ता है, पर अंत में सच बना वह सपना ही आपके सभी अपमानों का समुचित प्रत्युत्तर भी सिद्ध होता है।
इसीलिए -- "Dream, Dream more!"
(For those who couldn't understand Hindi, the gist is - Dream high, because you act only to pursue what you dream. Don't be afraid of those who laugh at you, because one day your materialized dream shall prove to be a befitting reply to them.)
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