अक्सर मेरी बात कुछ ऐसे गे विरोधी लोगो से होती रहती है जो समाज के उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं
जिसको आप अपना मत चाहें जितना समझा लें लेकिन वे टस से मस नहीं होंगें। पर जिस प्रकार अच्छे से अच्छे व्यक्ति में कोई दुर्गुण होता है उसी प्रकार बुरे व्यक्तियों से भी कुछ न कुछ अच्छा सीखने को मिल ही जाता है। ऐसी ही एक शिक्षाप्रद बात एक धुर-गे विरोधी महाशय से सुनने को मिली।
"अगर गे लोग वाकई परिवार आदि की संकल्पना को मानते हैं, तो सिर्फ सेक्स का हक पाने के लिए ही क्यों लड़ रहे हैं? क्यों वे विवाह और कानून द्वारा मान्य परिवार के हक को मांगने के लिए नहीं लड़ते?"
प्रश्न सुनकर मैं आंशिक रूप से निरुतर हो गया, पर फिर भी उनको उस समय चुप करवाने के लिए बोला- "आप लोग को भी इससे कोई अधिक परेशानी नहीं है कि गे लोग गुपचुप रूप से शारीरिक सम्बन्ध बनाते रहें। आपको परेशानी केवल उनको एक अपराधी न मानने के कोर्ट के निर्णय से हैं। अगर वे विवाह और परिवार आदि का अधिकार भी अभी से मांगने लगे तब तो आप जैसे लोगों में हडकंप ही मच जाएगी।"
पर मन ही मन मैं सोच रहा था कि जब दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार गे सेक्स पर प्रतिबन्ध संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 से असंगत है तब कौन गे लोगों और उनके हकों की वकालत करने वाली संस्थाओं को गे विवाह और गे परिवारों को कानूनी बनाने के लिए 'right to equality' की व्याख्या करने वाले संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 की दुहाई देकर कोर्ट जाने से रोक रहा है?
इस प्रश्न का उत्तर अगर आपको पता हो तो जरूर बताएँ।
Often I have to indulge in conversation with those anti-gay people who represent that class of our society
which despite of your ample efforts won't change their opinion about gays. But there is always an element of benevolence in not so good personalities just as there is something evil in an excellent personality and from both, you learn something. Such a lesson I got from a rabidly anti gay person when he said:
"If gay people indeed have faith in marriage and in the concept of family, then why are they fighting just for right to have sex legally? Why don't they fight for the rights to have legally accepted marriages and families?"
On hearing such question, I was partially speechless, still just to shut him up, I said- "You people don't have much problems if gays keep having sex secretly. You only have the problem when the court declines to treat them as criminals. If they start asking for marriage and family rights today, all hell will break loose for people like you."
But in my mind, I was thinking- what prevents gays and gay rights organisations from approaching the court armed with the Delhi High Court's judgement where it held that restriction on gay sex is inconsistent with Article 14 and 21 of the Constitution. What prevents them quoting Articles 14 and 15 in the court which describe the 'right to equality'?
If any of you have answer to this question, then please do tell me.
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