आज "बीबीसी हिन्दी" वेबसाइट पर एक खबर पड़ी
जो बीबीसी वर्ल्ड सर्विस, कराची के पत्रकार मुबीन अजहर के हवाले पब्लिश की गई
है. (लिंक के लिए नीचे देखें)
वेबसाइट के द्वारा खबर के शीर्षक के चुनाव पर काफी गुस्सा आया. शीर्षक था -
"समलैंगिकों का स्वर्ग
है पाकिस्तान का कराची!" कराची को समलैंगिक पुरुषों का स्वर्ग बताने के पीछे जो कारण विभिन्न लोगों के हवाले
से बताये गए है उनमे 'भूमिगत पार्टियाँ', 'दरगाहों पर सामूहिक सेक्स' और 'सुविधा के लिए किसी
लड़की से शादी' करना प्रमुख है.
संभवतया पाकिस्तानी पत्रकार महोदय बीबीसी के लिए काम करने के बावजूद अपने 'इस्लामिक देश और समाज' से पाए स्वाभाविक पूर्वाग्रहों को नहीं त्याग पाएं
हैं. वरना वे चोरी छिपे मात्र सेक्स कर पाने को मजबूर पाकिस्तान के गेस को स्वर्ग
का लुत्फ़ उठाते नहीं पाते। पर खबर में कुछ ऐसी सच्ची बातें भी लिखी गई है जिनसे
पाकिस्तानी गे समाज के कष्टों की तरफ ध्यान जाता है.
अगर स्वर्ग ऐसा है तो ऐसे स्वर्ग से निकल जाना भला! |
जिन प्रासंगिक बातों पर इस आर्टिकल में ध्यान दिलाया
गया है वे हैं :
* इस्लामिक समाज में भी
गे लोगों के पाया जाना और उनका सक्रीय होना।
* समाज की वह मानसिकता
जहाँ दो पुरुषों के बीच सेक्स को कोई बड़ी बुराई नहीं माना जाता बशर्ते वे अंत में
एक लड़की से शादी कर लें.
* पुलिस, सैन्य अधिकारियों और मंत्रियों तक की 'गे सेक्स'
में
रूचि।
* अगर परिवार में कोई गे
है तो उसके 'एक्टिव' पार्टनर होने में कम शर्म का अनुभव होना।
* एक इस्लामिक राष्ट्र
होने की वजह से निकट भविष्य में गे लोगों की स्तिथि में सुधार की न के बराबर
सम्भावना।
इसलिए इस खबर की आलोचना को मैं केवल गलत शीर्षक के
चुनाव तक ही सीमित रखूँगा और आशा करूंगा कि भविष्य में वेबसाइट किसी अन्य भाषा में
गेस से सम्बंधित खबरे या आर्टिकल्स छापते हुए भी उतनी ही सावधानी बरते जितनी की
अंग्रेजी में छपते हुए बरतती है।
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