Friday, 23 August 2013

अगर ऐसा होता



कुछ भी कहिए यह प्रश्न तो मन में उठता ही है कि कैसा होता यदि इस दुनिया में गे लोग बहुसंख्यक और मुख्यधारा के होते। सोचिए, जितना कष्ट एक गे को अपना जीवनसाथी खोजने के लिए आज उठाना पड़ता है, तब नहीं उठाना पड़ता। मन में एक सिहरन सी उठ जाती है जब उस दृश्य के बारे में सोचता हूँ जिसमे दो लड़कों (अथवा दो लड़कियों) के बीच में अनायास ही प्यार हो जाता (यानी उन्हें प्यार खोजने के लिए मारा मारा नहीं फिरना पड़ता). या फिर कैसा होता जब अभिवावक एवं परिवार के लोग ही अपने गे बेटे या बेटी के लिए रिश्ते की फिक्र करते नज़र आते (जैसे कि आज अपने 'स्ट्रैट' बच्चों की चिंता करते नज़र आते है). अगर गे लोग ही बहुसंख्यक होते तो किसी से प्यार होने पर उसे बताने से पहले हमे इस बात का डर नहीं होता कि उसकी स्वाभाविक रूचि हम में नहीं होगी। और सबसे अधिक तो तब अच्छा लगता जब आप बेख़ौफ़ अपने साथी के साथ संसार के सामने आ सकते बिना लोगों की तरह तरह की बातों की फिक्र करे. 

   

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