Saturday, 29 June 2013
मेरे 'Practical' सवाल
"अगले हफ्ते उसकी शादी है, वह पहले ही मुझे invite कर चुका है। मैंने भी शादी attend करने का वायदा किया है। वैसे भी उसकी ख़ुशी के लिए जाना तो बनता है।"
जब सुकृत ने ये बातें धीमी आवाज़ में मुझसे कहीं तो मैं बिना किसी कठिनाई के उसके दर्द का अनुभव कर सकता था। आखिर 3 साल पुराने रिश्ते की चिता को शादी के हवन कुण्ड में जलते हुए देखना कोई छोटी बात नहीं थी। ऊपर से खुश दिखने का नाटक भी तो करना था। आखिर सुकृत हिंदी फिल्मों का कोई actor तो नहीं था जो बड़ी आसानी से इस मुश्किल को पार कर जाता। छुपाने की भरसक कोशिश के बाद जब असफल रहा, तब मुझसे अपने दिल की कहने आया था।
"मुझे पता है कि इन सब बातों को अब उठाने का कोई लाभ नहीं है पर जब तुम दोनों को भविष्य के बारे में सब पता था तो आखिर इतना involve ही क्यूँ हुए। वैसे involve तुम दोनों कहाँ हुए.... रजत को तो कोई फर्क पड़ता नहीं दीखता। जैसा कि तुम बताते हो शादी की तैयारियाँ खूब धूम-धाम से की हैं उसने!" मेरी कही ये बातें सुकृत को मानों तीर जैसी लगीं।
"कहाँ पता था कि वह दो घड़ी का हँसना बोलना यहाँ तक आ पहुँचेगा! उसके मन की वो जाने, पर मुझे तो पता ही नहीं चला कि मैं कब उससे इतना प्यार करने लगा। पता नहीं कब से मेरा दिन उससे फ़ोन पर बात करने से शुरू होने लगा और पता नहीं कब से मेरा दिन ख़त्म उसके साथ रात की सैर पर होने लगा। और अकेले उसे ही क्यों दोष देते हो, मैं भी तो कुछ दिनों में यही करूँगा।" सुकृत की आवाज़ अब भरराई हुई थी।
पहले भी सुकृत अपनी न बताई जा सकने वाली मजबूरियों की दुहाई कई बार दे चुका था। वैसे उसके न बताने पर भी ऐसा नहीं था कि ये मजबूरियाँ मुझे पता नहीं थी। आखिर एक middle class परिवार के गे लड़के की मजबूरियाँ हो भी क्या सकतीं है। माँ की बहू पाने की ख्वाहिश, परिवार का सम्मान कायम रखना, आस-पड़ोस के लोगों और रिश्तेदारों को मुँह खोलने का कोई अवसर न देना, और अगर कोई बहन है तो कुछ ऐसा काम न करना जिससे उसकी शादी में कोई व्यवधान पहुंचे, इन सब बातों के अलावा सुकृत जैसे लड़के की और क्या मजबूरियाँ हो सकती हैं, यही सोचकर मैंने भी कभी उसपर उसकी मजबूरियाँ बताने के लिए दवाब नहीं डाला।
"दोष उसको इसलिए दे रहा हूँ कि वह एक गलत निर्णय ले चुका है, पर तुम्हारे पास अभी कुछ और समय है, इसलिए सोचो कि तुम क्या करने जा रहे हो?" मैंने बिना हार माने एक बार फिर वही बात उठाने की कोशिश की।
"क्या करने जा रहा हूँ मैं? शादी ही तो करूँगा! सब करते है। तुम्हारी बड़ी चिंता यही है न कि कैसे मैं अपनी पत्नी को खुश रख पाऊंगा? तो वह मुझ पर छोड़ दो। शादी के बाद मैं उसको सब तरह से खुश रखने की कोशिश करूँगा और साथ रहते रहते प्यार भी हो ही जाएगा। और यदि प्यार नहीं भी हुआ तो भी क्या होता है, यह ज़रूरी नहीं कि सभी शादी-शुदा लोगो के बीच प्यार हो।" यह कहते कहते सुकृत यकायक रुक गया।
आखिर अपने मन की आवाज़ को मार कर की जाने वाली बात को वह और कितना लम्बा खींच सकता था। वह भी सुकृत जैसा लड़का! जो न तो किसी को दुःख पहुंचाने में विश्वास रखता था न ही किसी को धोखा देने में! पर समाज के द्वारा की जाने वाले बातों की फिक्र और परिवार के लोगो को संतुष्ट रखने के लोभ ने उसे यह सब कहने पर विवश कर दिया था। वरना यह बात तो सुकृत भी जानता था कि किसी लड़की से शादी करके वह उसके साथ एक प्रकार का अन्याय या धोखा ही करने जा रहा है। वह जानता था कि उसके वे सारे सपने जो रजत के साथ बिताए गए समय में सच हो गए थे, कभी एक लड़की के साथ पुन-जीवन्त नहीं हो सकेंगे।
"ठीक है जैसा मन में आए करो, बस बाद में मत पछताना। तुम्हारी life है, कोई क्या कर सकता है।" मैंने हार मानते हुए कहा। अबके सुकृत चुप ही रहा।
"जब शादी attend करने का मन बना ही लिया है तो यह भी decide कर लिया होगा कि शादी में क्या पहनोगे... खाना तो जरूर खा कर आना। और अरे हाँ... दूल्हा-दुल्हन के लिए कोई gift वगहरा decide किया या नहीं?" यह सब पूँछकर मानो मैंने सुकृत से मेरी बात न मानने का प्रतिशोध ले डाला। वह चुप ही रहा और चुपचाप ही चला गया। शायद इतनी कोशिश करने के बाद भी अभी तक वह इस सब से गुजरने की पूरी तैयारी नहीं कर पाया था। मेरे 'practical' सवाल उसके लिए मानो एक नई ही समस्या ले कर खड़े हो गए थे जिसके बारे में उसको सोचने के लिए समय ही नहीं मिला था। और मैं सोचने लगा ऐसे सवालों की तो मेरे पास भरमार है।
Friday, 28 June 2013
न भुला पाओगे
जिंदा हूँ तो पूंछते नहीं
हो हाल भी हमारा
मर जाऊँगा तो याद करोगे हर
बात - हर किस्सा हमारा
महफ़िल में करोंगे याद या ना
करोगे
मगर तन्हाई में गुनगुनाओगे
गीत हमारा
मेरे होने का एहसास ही
तुमको तब होगा जहाँ में
जब इस जहाँ को छोड़कर चले
जायेगे हम तुम्हारे हवाले
सजा ए मौत से बढकर सजा ए
जिन्दगी है यारां
रोज़ मार जाती है हमको दिन
के जाते जाते
तुम कहते हो मशगूल है काम
में बहुत
वरना याद तो आती है हर वक्त
तुम्हारी
मगर मेरे अंदाज़ मेरी आदायें
यूँ न भुला पाओगे
जलेगा ये जिस्म जहाँ, वहां
यादें न जला पाओगे
और एक मुद्दत हुई के मिले
नहीं प्रल्लव से तुम
मगर रोने ज़रूर आओगे मेरे
जनाज़े के आगे
(Courtesy : Akash Sharma)
#SorryTheGirl
As soon as I begin to think that the audacity of cheat
people who will marry a girl despite of being #gay is diminishing, one or other
such person comes across who justify marry a girl as a matter of right
irrespective of his true sexuality. Feel #Sorry for poor #girls.
#ProveThatGaysCanLoveToo.
Even if a #gay person who chooses to marry a girl due to
‘circumstances’, why should he feel that it is his absolute #right to have extra
marital affairs with a boy?
#ProveThatGaysCanLoveToo.
Why can’t some #gay people have guts either to marry a
#boy or be faithful to the #girl who
they are using to hide themselves.
#ProveThatGaysCanLoveToo.
Being #gay doesn’t give you the privilege of circumventing
the decency of not being a cheat.
#ProveThatGaysCanLoveToo.
Kudos to the #lesbian girl, who was looking for a #gay guy to marry. At least she wasn't going to cheat her spouse.
#ProveThatGaysCanLoveToo.
Kudos to the #lesbian girl, who was looking for a #gay guy to marry. At least she wasn't going to cheat her spouse.
#ProveThatGaysCanLoveToo.
Thursday, 27 June 2013
Potential Criminal
A 28 years old gay man started chatting with me on Facebook for soliciting sex. I decided to oblige by answering him.
First, on being asked “Are you a gay?”, he said yes.
Then on being asked about his future plans, he said that he had not decided yet.
Then changed his stand on further questioning by saying, “I would do whatever I like. At present I feel that I would marry boy.”
My next question was, “Then why are you looking for sex and not for lifelong relationship?”
He replied, “Because the time has not come yet.”
“Is there any guarantee that your stand will not change in future?” I enquired.
He replied, “At least since last 2 years, I have the same thing in my mind. Because you don’t find people looking for lifelong relationship on Facebook. Therefore I want to enjoy here. You too enjoy.”
I feel that such people are potential criminals (yes I call them POTENTIAL criminals) who can never be sure of their actions. Tomorrow, even if this guy enters into a relationship, his partner can never feel secure. Such people want to go with flow, i.e. nothing could be expected from them which requires even smallest amount of courage. They would ultimately cause hurt to their truthful partners and hence the terminology which I used.
The Endless Wait In India
The US Supreme
Court has struck down a law denying federal benefits to gay couples and cleared
the way for same-sex marriage in California.
~BBC
Still waiting
for such things to happen in India.
Wednesday, 26 June 2013
1.) & 2.)
1.) Sex may satisfy one's taste but ultimately it is love that satisfies one's hunger.
(Courtesy : Nikhil Arya)
2.) If a decent straight boy doesn’t behave in the brazen manner typical to many straights, they call him gay. As a gay I feel honored.
~Prove That Gays Can Love Too.
(Courtesy : Nikhil Arya)
2.) If a decent straight boy doesn’t behave in the brazen manner typical to many straights, they call him gay. As a gay I feel honored.
सच्चे प्यार का लक्षण
"सच्चा प्यार साथ की अपेक्षा नहीं रखता है। मैं चाहें जहाँ भी रहूँ, जिसके साथ भी रहूँ, उसे हमेशां प्यार करता रहूँगा।"
अक्सर ऐसी बातें कई ऐसे गे लोगों से सुनने को मिल जातीं हैं जो दावा तो सच्चे प्यार का करते है पर असल में ऊँची ऊँची बातें करके अपनी अकर्मण्यता छुपा रहे होते है। ऐसे 'सच्चे प्रेमियों' से मैं यह विनती करना चाहूँगा कि सच्चे प्यार के सिद्धांतों को अपनी कायरता छुपाने के लिए प्रयोग में न लायें। निश्चय ही सच्चा प्यार पनपने और बड़ने के लिए अपने प्रिय के साथ की अपेक्षा नहीं रखता है क्योंकि सच्चा प्यार तो "प्रिय के सुख में सुखी" होने के सिद्धांत पर आधारित है। अतः ऐसी बात कहना वहाँ तो उचित है जहाँ आपका प्रिय आपको नहीं चाहता या स्वयं आपसे दूर रहना चाहता हो पर यदि परस्पर साथ रहने की चाह होने के बाद भी केवल समाज से डर कर और कठिनाइयों से घबरा कर अगर ऐसी बात कही जाए तो यह मुझे प्यार को अपमानित करने वाली बात ज्यादा लगती है।
दुनिया भर के विरोध और समाज द्वारा अपमानित किये जाने की बात को जानते हुए भी अपने प्रिय का साथ किसी भी स्तिथि में न छोड़ना (केवल इसलिए कि वह हमारा साथ चाहता है!) मेरे अनुसार सच्चे प्यार का अधिक बड़ा लक्षण है।
Tuesday, 25 June 2013
The Cheaters, Cowards & Impatients
There are
many gays who have a mixed feeling of anger and disgust in their minds for some
other gays. To a great extent I find this feeling justified. Obviously a person who doesn’t
believe in ‘sexual rampage’ and who nourishes a dream of a lovely family would
not like to be clubbed with these ‘sex rioters’.
I would like
to include few more people in the list, although the nature and degree of my
complaint from them differs to a great extent.
- Those gays who although feel that being with a boy (lifelong) is not wrong, but due to social pressure would marry a girl anyway. (The Cowards cum Cheaters)
- Those gays who decide to be alone (lifelong) just because they don’t want to face society. (The Cowards)
- Those gays who accept lifelong loneliness as their ultimate destiny because they are tired of their so called ‘fruitless long efforts’ to find their Mr. Right. (The Impatient)
Apart from
above categories of people there is one more category with which I truly
sympathies. These are those gays who have actually decided to face the wrath of
all but stick to their decision to be with a boy and have been trying for really
long but so far have failed to find anyone. In some cases such people have been
trying almost continuously for 8 years! I don’t know what to say to these
people to console them. Words are simply not enough. I can only say that I have
myself suffered like them for almost 4-5 years and therefore I know their pain.
And as long as cowardice exists among gays, people like us are destined to
suffer in similar manner. But it doesn’t mean that we should stop trying losing
all hope that we have. Omniscient God will certainly oblige us one day. At the
same time we must try to persuade others that cheating, cowardice and
impatience are never going to help them because the dryness on the surface does
not kill ‘the seed of true feelings’ lying unperturbed deep into their hearts.
Monday, 24 June 2013
छुपा हुआ स्वप्न
क्या कभी कोई सामान्य मनुष्य बिना प्यार के पूरा जीवन बिताने के बारे में सोच सकता है? क्या एक साधारण आदमी हमेशा हमेशा के लिए अपने दिल से एक परिवार का सपना दूर बनाए रख सकता है? क्या जीवन में स्थायित्व की चाह को आज तक कोई नकार पाया है?
अगर नहीं, तो फिर क्यों कुछ लोग ऐसा दुष्प्रचार करने में लगे रहते हैं कि गे लोगों को इन सब की आवश्यकता नहीं होती? यह माना कि कई गे लोगो को एक पुरुष के साथ अपने रिश्ते को स्वीकार करना 'असंभव' जान पड़ता है, पर इसका मतलब यह तो नहीं कि ये इच्छाएं उनके मन में नहीं हैं! सामान्य धारणा (जो न केवल स्ट्रैट लोगो की गेस के विषय में है अपितु स्वयं गेस की गेस के विषय में भी है) के विपरीत अधिकाँश गे लोगों के दिल में अपने ही जैसे एक पुरुष (जिससे वे प्यार करते है) के साथ एक प्यारा सा परिवार बसाने के सपना छुपा हुआ है और वे इसे साकार भी करना चाहते है बशर्ते उनको इसके लिए पूरे समाज से लड़ना न पड़े। पर असल जिन्दगी में अधिकांश समाज के डर, परिवार की बदनामी, एक सही व्यक्ति न मिल पाने की निराशा से हार मानकर लड़ नहीं पाते।
पर सिद्धांत तो यही है कि जो बात आपके मन को, आपकी अंतरात्मा को ठीक लगे, उसे ही करना चाहिए, चाहें ऐसा करने में कितनी ही मुश्किलें क्यों न हों। अतः एक बार के लिए गे लोगो पर इस बात का तो आरोप लगाया जा सकता है कि वे अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को दबा देते है या फिर कि वे पर्याप्त साहसी नहीं होते, पर यह कभी नहीं कहा जा सकता कि वे प्यार और परिवार की चाह नहीं रखते।
********
दोहरी लड़ाई
बाहर से समाज की अकारण घृणा और भीतर से 'अपने जैसे' लोगों का घृणित व्यवहार मिलकर एक ऐसे सच्चे गे व्यक्ति को जो किसी एक जीवनसाथी के साथ रहने के सपने देखता है, तोड़ डालने में कोई कसर नहीं रख छोड़ते है।
बाकी लोगों के साथ साथ अन्य गे भी जब आपको गलत और मूर्ख इसलिए माने कि आप गे होते हुए भी एक परिवारका सपना देखते है तो वाकई आप असमंजस में पड़ जाते है |
समाज की रीतियों (असल में कुरीतियों) और धारणाओं को सदा एक सा बनाये रखने की वकालत करने वाले लोगों ने आखिर क्यों स्वीकार किया कि धरती ब्रह्माण्ड का केंद्र नहीं है? क्यों ऐसे लोग आधुनिक विज्ञान से उपजी सभी सुख सुविधाओं का उपभोग बिना किसी शर्म के करते नज़र आते है? साधारण सामजिक सोच के अनुसार 'स्त्री-सुलभ साज-सिंगार' करने वालों को गे लोगों के तौर-तरीकों पर व्यंग करने का क्या अधिकार है? अगर तथाकथित प्राकृतिक ढंग से रहना इतना ही अनिवार्य है तो क्यों ये लोग कपड़े पहनकर रहते है और क्यों कंबलों में लिपटकर वातानुकूलित (एयर कंडिशन्ड) कमरों में सोते है? और अगर यह सब मानव की बुद्धि और सामाजिक / वैज्ञानिक विकास का प्रतीक हैं, तो यह कैसा बौधिक विकास है जो केवल स्वयं को भाने वाली चीज़ों को ही प्राकृतिक मानता है और अन्य लोगों को समानता का दर्ज़ा देने की बात तक पहुँचने से पहले ही रुक जाता है?
कितने ही साहसी गे लोग है जो एक गे की तरह ही रहते हुए समाज को यह दिखाना चाहते है कि गे लोग भी प्यार कर सकते है, उनकी नैतिकता की परिभाषा भी समानता, दया, परोपकार आदि पर आधारित है, उनकी भी पारिवारिक मूल्यों में अन्य लोगों जितनी ही श्रद्धा है, पर ऐसा करने के लिए आवश्यक एक जीवन साथी के नितांत आभाव में कुछ नहीं कर पाते। एक बार समाज को कुछ सिद्ध करके दिखाने की लालसा को तो मारा भी जा सकता है पर अपनी व्यक्तिगत मूलभूत जरूरतों को कब तक नज़रअंदाज किया जाए? पर लोग कभी ऐसे गे लोगो के आधार पर गेस के विषय में राय नहीं बनाना चाहते क्योंकि उन्होंने तो गेस को गलत ही साबित करने का एक ऐसा प्रण किया हुआ है जो किसी भी प्रकार नहीं तोडा जा सकता। और इस प्रण को पोषित करने के लिए वे ही गे सही रहते है जिनकी न तो एक 'गे परिवार' में कोई आस्था ही है अपितु जो प्रतिदिन नए व्यक्ति के साथ सेक्स करने में जीवन की सार्थकता देखते है। और एक दिन एक भोली-भाली लड़की से शादी करके अपने व्यभिचार के लिए सामाजिक नेत्रहीनता का प्रमाणपत्र पाकर, 'बेशर्मी' के साथ 'सुख' से जीते है।
ऐसे में गलियाँ खाने और सब ओर से प्रताड़ित होने के लिए केवल वे 'मूर्ख' गे ही बचे रह जाते है जो गे होने के बावजूद किसी को प्यार करने और बदले में प्यार पाने के सपने संजोंते हैं। दोनों ओर से ये 'मूर्ख' लोग मारे जाते है।
Saturday, 22 June 2013
कठिन परिस्तिथियाँ
कभी-कभी सोचता हूँ तो ऐसा लगता है कि जिन कठिन परिस्तिथियों का सामना गे लोग रोज़ करते है, अन्य लोग अधिकाँश समय उनसे संरक्षित रहते है। उदाहरण के लिए कल ही एक गे मित्र ने बताया कि वह किस तरह उसके घर रहने के लिए आये अपने cousin से परेशान है। रात को उसका cousin उसके साथ ही सोता है वो भी 'चिपक कर'. ऐसी स्तिथि में मेरे उस मित्र को क्या समस्या होती होगी इस सब का अंदाजा आप सब लगा सकते है। यूँ तो मैंने भी उसके द्वारा यह बात बताई जाने पर हँस कर टाल दी, पर गंभीरता से विचारा जाए तो straight लोगों की तुलना में gays के जीवन में ऐसे कठिन अवसर कहीं अधिक बार आते है। चाहें वह किसी दोस्त का कसकर गले मिलना हो, या उसका गले में हाथ डालकर चिपककर बैठे हुए बात करना। भीड़-भाड़ भरी बसों या मेट्रो ट्रेन में जहाँ कई कारणों से महिलाएं पुरुषों से हटकर ही सफ़र करतीं है वही जाने-अनजाने पुरुष एक दूसरे के नज़दीक कई बार इस हद तक आ जाते है कि एक गे व्यक्ति को वह स्तिथि बिल्कुल भी सुविधाजनक नहीं लगती। आप और भी इसी प्रकार की परिस्तिथियों की कल्पना कर सकते है।
यह सब रोज़ रोज़ कई बार होने पर भी अगर अधिकाँश समय अधिकाँश गे लोग अपना संयम बनाए रखते हो तो मैं तो उनको straight लोगों से कहीं अधिक संयत मानूंगा क्योंकि संयत वह व्यक्ति नहीं है जो ललचा देने वाली परिस्तिथियों के आभाव में अपना संयम दिखाए, वरन संयत वह व्यक्ति है जो ललचा देने वाली परिस्तिथियों के रहते हुए संयत रहे।
Friday, 21 June 2013
Wednesday, 19 June 2013
Monday, 17 June 2013
Questions Raised On Gays
Tonight when I checked my Facebook profile, I found a long
message in the form of a long series of different questions relating to what I
post and believe about Gays. I decided to give it a shape of a post and answer
these questions publically so as to remove the doubts of others as well.
(17.06.2013) Monday
Q: I m also bi and know about gay society very much. If I am wrong tell me. May be you are loyal for your partner but think about whole society because if any right given to you means given to whole society.
A: I feel injustice with a single human being who is innocent defeats the purpose of law. Even if one were to presume that no other person is like me (i.e. who is looking for a lifelong committed relationship with a person), it doesn’t take away my fundamental right to have freedom of selection and expression thereof and peaceful co-existence with a respectful place in society and in law (like the one straights have!).
Q: Ask any boy or girl above 18 year that whether they want to be child of gay couple? If answer is no then how can we force child of 1-2-3 year to be child of gay couple who is not in position to take decision about its life.
A: In reply of this, I would like to ask you to ask any person who has attained the age of majority whether he / she is fully satisfied with his / her parents and with the family in which he / she is born in. Of course there would be a large number of people who would like to have born in a ‘better’ family. But does it mean that an injustice has been done with any of them? Further, a 1-2-3 year old child who has being brought up in an asylum / orphanage, certainly doesn’t have all those necessities which are essential for living a good life. Then what is the harm if a gay couple adopts such child, educates him, makes him self-sufficient and above all gives him all their love?
Q: You are saying that society and law should change their mind set about gays but can u first change gay society of which every member search new guy for every next night?
A: I have always objected strongly to people painting everyone with the same brush. Agreed that many gays are looking for nothing but sex, but there are many people who are literally dying to have someone in their life forever. But the later are very silent people and the former make a lot of noise and showoff and therefore the impression that the whole community is just sex hungry. Even many those who seem to be looking just for sex are actually those poor thoughtless guys, who have so much fear of society in their minds that they have not even thought for a second that one day it might be possible that they can have a true relationship without the fear of anybody. But in heart of hearts they all know that they want to settle down with someone.
Q: You tell that gay can also do true love but can u give me single name who do sex with only one guy and even don't want to have sex with other person?
A: Is being monogamous an obligation made only for gays? Why don’t you ask your straight friends to begin with that whether they had sex with their wives only? As far as giving a name of such a gay person is concerned, let me assure you, I know many such gay people who are alone (without have sex with anyone!) even after 2-3 years after they have been dumped by a cheater who they think was their life partner. I know many such gay guys who can’t even think to have sex with a person they are not in love with. And I certainly know many such gay men who still cry for their lost love… and they cry really bitterly. You ask yourself, if you have ever tried to take some pain to find such people around you?
Q: What is the mind set of that child whose parents are not respectable in society? It is us who chose to be gay but why children force to be child of those parents who are not respectable in society?
A: I have partly answered it reply to your second question. Let me tell further. What is ‘unrespectable’ in society, a family which could not teach its child to be a good and law abiding citizen or a family which builds an enviable character in the child? Certainly ashamed should be those parents who due to their reckless parenting could not give their child values and the child later becomes… say drug addict. Why should a gay couple be ashamed which has educated their child well and has put him in an enviable position. I am not denying the extraordinary difficulties which the family and the child will have to face. But ultimately such difficulties can never be allowed to forfeit the dream of a ‘Lovely Family’. (Freely talking to child about his family and about having two dads or two moms can be of great help. Likewise many other measures can be taken so that child feels proud of his parents.) Slowly people will begin to understand… but initially someone has to take the lead. Then why wait for someone else to do that?
Q: I read your wall about right to adopt child. It is very touchy but do you think it is right? Forget about gay think one family where parents always seek new partner for sex for every night. What impression will go in mind of their children?
A: Do I need to answer it any further? It is your deep rooted prejudice against gays and against gay families, which is forcing you to think that even after constituting a lovely family parents would have time to look for new sex partners each night! At least I think that I won’t have any time for that. After all looking after a slothful and slow life partner who always demands attention and taking care of a naughty little child which shall have (May God it happens soon!), is no easy task.
And the conversation continued ....
(19.06.2013) Wednessday
Further Exchange of Thoughts....
(20.06.2013) Thursday
And the conversation continued ....
(19.06.2013) Wednessday
Dear Ritesh,
I m not convinced from your replies. You thought that whole gay society is just like you but truth is very far. You are saying that there are lots of people who are loyal to their partner and did not have sex with other guy. Just check your list again and compare to the total numbers it would be very less comparatively.
Further you said that you want your fundamental rights and do not bother about implication when every other gay also have same rights and they can use those rights to disturb the society and also disturb the mind set of new generation by adopting them. It shows your poor mind set which is not intellectual but like a child who wants whatever he think right.
I am writing this despite the fact that i am also belongs to this gay society. You know our society where being gay is worse than be a criminal.
Let us come to the point of parenting. This is very sensitive issue. Be a child of those parents who could not be good parents due to their “Karma”, you can complaint to god and your own parents only not to any other person. But be a child of gay couple, there are lots of people to whom he/she can complaint i.e. law, society, real parents etc.
Now come to the orphans who live in orphanage. Do you think whoever wants child to adopt, should be allow to adopt child just because they can give better life to the children? Other standards should not be check? They are not going to be child of any couple because of birth but because of choice and choice is belongs to only adopting couple not to child so it is moral duty of society and law maker to check whether child is going to the correct couple or not. Whether he will get respectable life within society after adopting by couple or not? Right now gay couple are not respectable in society and they chose this life because of own liking and cannot blame to other if they suffer in future.
Now it is time to change the society first not law. I think you will take my comments positively and think broad minded. I am not good writer and my English also not good but I think you will understand what I want to say. Moreover don’t split whole thoughts in pieces it is the work of politician who destroy soul of thoughts through splitting into small small questions and then answer.
Dear Friend,
I actually took all your questions / comments in a positive manner and found them worth answering, therefore posted them on this blog. And I think that language is merely a mean to communicate whatever is in your mind, and I felt no difficulty in understanding you. As far as splitting your thought into pieces is concerned, that was not intentional, I just thought these were separate questions. Anyways, my profuse apologies for that.
See, I never thought of convincing you by my replies, these were more in the nature of a clarification of my thoughts. Everyone perceives the world through the prism of his own heart and rightly so. You asked me to check my list of true and honest gays again, let me tell you, the list is ever expanding. Only last night I come to know a gay guy who was / is in love with another guy who could not muster enough courage to be with him and yet this guy thinks that he cannot give anybody the place in his heart which this person once occupied / occupies. Most love stories are not perfect but that doesn’t mean that these are no love stories at all.
Your other thought / question was again judgmental / prejudiced when you say that other gays might use their fundamental rights to disturb the order of society because you didn’t mention any reason for the same. I fail to see any such circumstance where a gay person can use his rights to harm anybody and even if somebody does so, the law of the land should take care of such miscreant. There are many parents who force their children into many bad activities but your prejudiced mind is forcing you to treat it as a ‘gay problem’ instead of a problem of bad parenting. You may call it a poor thinking of a child but I often remember the following words of Martin Luther – “Even if I knew that tomorrow the world would go to pieces, I would still plant my apple tree.” As I said earlier that entire purpose of law gets defeated if injustice in done even to a single person, I say again, even if somebody is to use misuse a prospective law, it doesn’t mean the law should not be enacted. (In such case no law should ever have been enacted.)
Since you brought in the philosophy of ‘Karma’, let me tell you, my ‘Karma’ is to bring and brought up a child to the best of my ability and resources. Teaching my child the fundamentals of justice and social equity also comes in the purview of good parenting and ‘Good Karma’. And I cannot expect anything in return from my child for this because I have right only on what I do and not in what I get in return. In case despite of all my efforts, if my child is to blame me in future for anything, it would be his Karma. You and I often read in newspapers that acrimony went so high between a child and his parents (over property or any other issue) that the child deserts or even murders his parents. What would you say to such parents? Probably they too should not have decided to bring this child into this world accordingly to you. Having more people to make complaints is no logic in my view. A complainant always thinks that he has all good reasons to complain. But the validity of a complaint can only be decided only on the facts of the case and not on the basis of number of accused people. Still I feel it is a challenge for each and every gay parent to raise their children in such a way that they feel proud on their fathers / mothers.
Of course it is the duty of society to check the credentials of a couple / individual adopting a child. Well being of child should be the guiding principle for the custodians of an orphan child. And everyone knows that if a child is there in an orphanage one cannot expect his long term well being. Therefore adoptions are always a better option. Now take the example of a heterosexual couple approaching an orphanage. How can the custodians of the child know about their ‘respectability’. At most they can judge / check their social status and bonafide credentials. As far as ‘unrespectable’ position of a gay couple in society is concerned it is not due to their fault. It is the unjust and mindless opposition of society which puts gays in the so called ‘unrespectable’ position and the same society shall disallow them adoption rights on this very pretext. This is double exploitation of gays. The same argument you can put forth in case of adoption by a single man or woman. Even in such cases the child may (or may not) feel that he hasn’t been ‘handed over’ to a right person but the same society and same law allows it. (Why??)
I agree with you that society needs to be changed first instead of law, but if society could have been changed so easily then there would be no need of any law whatsoever! Take the example of law against ‘sati’ or against ‘child marriages’ or against ‘untouchability’. In all these cases it was not the society which was changed first. Society behaves in a manner akin to a ruthless criminal addicted to the crime. It cannot be changed by pleadings alone. Law has to be there to take care of things. One has to adopt ‘saam, daam, daand, bhed’ to achieve this goal of equality. And I would go to the extent of saying that I don’t mind even if for a brief period the ‘peace’ in society also gets disturbed by it. Because
और जिन्हेँ इस शान्ति-व्यवस्था
में सुख-भोग सुलभ है,
उनके लिए शान्ति ही जीवन-
सार, सिद्धि दुर्लभ है।
पर, जिनकी अस्थियाँ चबाकर,
शोणित पीकर तन का,
जीती है यह शान्ति, दाह
समझो कुछ उनके मन का. (--रामधारी सिंह दिनकर )
(This so called peace may be dear to those who posses all rights and are enjoying all amenities / privileges but what about those who are being oppressed without any just cause?)
Further Exchange of Thoughts....
(20.06.2013) Thursday
Dear Ritesh,
I think that you are taking this debate other way. I don’t want to discuss about gay rights, their thinking, because at what limit you want freedom, I want more than that. But my desire only upto me and where ever it clubs with other person then I think with his/her point of view.
I wrote my previous statement only when you demanded right to adopt child by the gay couples. Let me clear my view.
What is the position of gays in society today? I don’t think it is respectable. Do you think that change in law will change the society? You force people to not harm other by imposing law but cannot force anyone to respect others. If parents of anyone do any work for which society thinks that it is not respectable then children of those parents also feels cheated and angry towards their parents. And you want that community which already have not enough respect in society right now, should adopt children? What will be thinking of that child when he will grow up and see that society does not want to understand his/her parents and their feeling and even not respect them? We are saying about our right but not about rights of those children to whom we want to adopt. As per my opinion, children should grow in normal condition so that they make their way their salve. They should not face any question when they become mature. Do you think that money and love are the only one which children want? No they also wants that their parents should have good status in society. I am saying this not only for gay community but for all those parents who cannot give better and healthy upbringing to their children. If any parents cannot fulfill basic requirements or cannot give safe and healthy environment till 18 year, they don’t have right to born child. It includes divorcee (since mother and father both include in compulsory requirement), beggars, criminals, involve in openly extra affairs (I wrote openly because if society don’t know about your relation then it will not affect children).
We need first to create respect in society for gays. Law has been changed but society still not changed. Law fulfilled “our” first demand by changing section 377 now it is our duty to change society and then we should think for next.
Now I want to give answer of your some comment.
1. words of Martin Luther – “Even if I knew that tomorrow the world would go to pieces, I would still plant my apple tree.” – world would not go to pieces because of my apple tree but due to other reason. In our case what I said is directly related to adoption of child.
2. the list is ever expanding. – please make your list because who are honest gay couple never want to live in dark or hidden. May be your list go till 100 or 1000 or 10000 but you know how many gays in India. May be more than 10 lac. In my life I have never seen any boy who is openly gay or did not marry to girl because he is gay. If you think that I am not social or my social network is very limited may be right because in my network, foreigner not include. I love to intract with lots of people. In my 33 yr age I have made journey to many states i.e. New Delhi, UP, Haryana, Jammu Kasmir, Utrakhand, Rajasthan, Maharastha, Tamilnadu, MP, goa, pandichery and Karnataka. Also I have met and intract with many NGO working in many areas, many political and religious groups.
3. You may call it a poor thinking of a child: It is not you or me who decide that what child should think. We can assume that he will think what majority people think.
One thing I want to clear that I don’t want de-motivate you or any other person who belongs to our society. You know there is one yahoo group “Hindigay4” in which members post gay stories. One writer was very popular named Amber Khan. But his stories included incest sex also so some members started demanding to ban him. As per their view incest is unnatural/ immoral. I love to read incest stories but personally think that it is very harmful for the society but even after I don’t want to ban him. At that time I wrote one mail to group that when whole society thinks that we are wrong but we proud on us and say that it is natural then incest lover has also same view. So don’t restrict anyone and don’t judge anyone on the ground of morality. It is our personal choice and we are not going to hurt anyone. But group owner banned him.
At last I want to tell you that if you think that our society and its member are honest then I want to clear that it is very far from truth. Ya if you restrict this society to only those people who are honest then you are right but even me also don’t come in this very very small society. I am 33 year old and my first sexual encounter was done at the age of 10 when I even did not know S E X. Luckily I was not victim of any sexual crime since my partner was also 10 year old and we started it as a game. If I will start to write about gays (I don’t know whether they are part of your society) and their mentality, their attraction towards Kinky desires, it will take days or even months. I am not against gays since it is our choice and we are not harming anyone.
First we should decide that what we want to include in our society since generally we call it LGBT and B for Bi who have more than one affair. Then regularize this community so that others can also trust on us even let their children sit with us openly and then create respect within whole society.
I also request you to change colour of your blog. It is very dark. Use some light colour.
Dear Friend,
I think you are taking to an impracticable extreme when you say that no one should have the right to bring a child into this world if he / she cannot fulfill the basic requirements of a healthy upbringing of a child or cannot guarantee a healthy environment till the child attains 18 years of age. You included divorcees, beggars, and criminals in the list of people who should be prohibited to get a child. I guess by same logics, someone would like to include poor people in such list. Would it be allowed then? Or even a person who is wealthy and respectable at present may not remain so in future, what would happen to the children of such people? At most what you are saying is can be recommendatory. Ultimate it is the discretion and self judgment of the people which takes the centre stage in such decisions. Then why exclude only gays? (And don’t think even for a moment that I am trying to make a right from two wrongs!) My belief is – the desire to have an off-spring is deeply engrained into the DNA of all living beings. You cannot put unreasonable restrictions (which are the ‘gift’ of the society) to such natural desire. You are academically dreaming of an extremely egalitarian and romantically just society. But I don’t want to discuss it academically. Rights of an unborn baby must be respected, but it cannot be taken to such an extreme where a considerable population is debarred from having children of their own (whether biological or adopted). Further, if first you allow society to declare and treat gays as ‘unrespectables’ and then allow the same society to decide the ‘unrespectability’ as a ground of debarring gays to have children, it becomes laughable. The analogy of 10 wolves and one lamb deciding what to have in dinner, applies to such situation.
I quoted Martin Luther just to stress my point that no matter how others may feel about certain things, a person must do what he feels is right. Others deciding my respectability- is no hindrance in I getting a child, if I can be proud of myself and can teach my child to do the same thing.
You say that you have been to so many places and have been in contact with NGOs as well but have not yet seen a guy who is openly gay or who has not married a girl knowing he was a gay, I can only say it is very unfortunate and partly this may be the reason why you believe what you believe. But I have interacted / met enough number of people who say that they will not marry a girl in any circumstance or are out to their family and / or friends. Having said that -having fewer numbers on your side doesn’t make your point wrong ipso facto. I would be saying the same thing even if I had only myself in that list of honest gay people. And I don’t believe that a public declaration of your sexuality makes you an honest gay. To me if a person doesn’t cheat anyone to hide his cowardice and / or sexuality is an honest man. Everyone should choose the people and time to come out. It doesn’t have to be in front of society at large.
I have never considered your thoughts / questions de-motivating. Personally I too feel that thoughts should not be censored.
No society if free from dishonest people and as a corollary gays too are not an exception. I have no rights to forbid those people calling themselves gay who change their sex partners on daily basis, or those who marry a naïve girl to hide their truth from society so that they can look ‘respectable’. But I have all rights to stress the point that whole society is not similar. I usually avoid using the term LGBT because transgender people are on different footings because of their inherent discomfort with their body. It doesn’t mean that I don’t believe that they too should have a respectable place in society and the rights which they deserve as a human being. Further you gave me an impression that if someone is ‘Bi’ it necessarily mean that he should have sex with more than one partner. I don’t think the impression is right (no matter howsoever common it may be!). Even a straight person doesn’t get attracted to a single woman, or a gay guy to a single man but it doesn’t mean that they shall necessarily have sex with more than one person. Similarly a bisexual by default is not a dishonest guy. He may well be attracted towards many women or men, but can choose one of them (a woman or a man) to spend life with.
It is not that I am living in some wonderland; I know all harsh realities of this ‘gay world’. I know the kind of effort, time and luck (!) it takes to find someone whose love for you outweighs his fear of society. But I strongly believe that it is possible. I know many people just want to quench their thirst for sex somehow without caring about how does gays look as a society. But it is the reason why I feel that we have a little more burden on our shoulders. I know gays need not prove anything, yet titled this blog as ‘Prove That Gays Can Love Too.’.
Sunday, 16 June 2013
Saturday, 15 June 2013
खुद से सवाल
एक रिश्ता बनाने में
गे लोग भी कुछ गलतियाँ करते है। और ये गलतियाँ बाकी लोगो की तरह ही की गई होतीं
हैं-
समझना चाहते हैं लोग
जानने से पहले
ख़ुदा कहा ही क्यों उसे मानने से पहले
अजीब बात है,
दिल में सभी बिठाते है
एक शख्स को अच्छी
तरह पहचानने से पहले।
और फिर खुद ठोकर
खाकर, सारी दुनिया को ही दुश्मन समझने लगते है। और जो लोग हमें असल में प्यार करते है उनको दुःख देने लग जाते
है-
उस शख्स से बिछड़ना
तुझको न क्यों सुहाता?
रो खुद तो है रहा पर
औरों को क्यों रुलाता?
जिनका न दोष इसमें,
दिल उनका क्यों दुखता?
किस बात के लिए तू
है जान को जलाता?
ऐसे सभी लोग खुद से
ये सवाल कर के देखें। तभी "जो नहीं है" उसके लिए "जो हैं",
उनका दिल दुखाने की गलती का अहसास होगा।
~Prove That Gays Can Love Too.
सोचने की "बीमारी"
कल ही एक Facebook Friend ने मुझ से शिकायत भरे अंदाज़ में कहा कि तुम सोचते बहुत हो। मैं भी ऐसा ही मानता हूँ कि मैं छोटी छोटी बातों अपने मन से कुछ ज्यादा ही लगा लेता हूँ। पर क्या करूँ सोचना मेरे लिए बहुत ही 'natural' हैं। चाह कर भी इसे इतनी आसानी से छोड़ नहीं सकता।
शनिवार सुबह ऑफिस जाते हुए metro train में भीड़ अक्सर कम ही मिलती है। वैसा ही आज भी हुआ। ट्रेन में घुसते ही मैं एक तरफ जा कर खड़ा हो गया। सामने ही एक सीट पर 30-34 साल आयु वाला एक व्यक्ति अपने तीन-साड़े तीन साल के बच्चे के साथ बैठा हुआ था। मैंने कोई ध्यान नहीं दिया। दिमाग में यही सब चल रहा था कि ऑफिस पहुँचकर क्या क्या काम करने है। लग रहा था कि आज की यात्रा सुखद रहेगी। पर ईश्वर को यह कहाँ स्वीकार था! एक मिनट भी नहीं हुआ था कि उस बच्चे ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया। "मम्मी के पास जाना है, मम्मी के पास जाना है।" अपनी प्यारी सी तीखी आवाज में यही रट लगानी शुरू कर दी। लगभग तीन साल के बच्चे के लिए ऐसी ज़िद करना कोई अजीब बात नहीं थी। बच्चे का पिता उसे शांत रखने के लिए तरह तरह से उसका ध्यान बंटाने के कोशिश कर रहा था पर अभी बच्चों को सँभालने का अधिक अनुभव न होने के कारण लगभग असफल था। उसकी बातों से ऐसा लग रहा था कि बच्चे की माँ भीड़ के डर से Ladies' Coach में सफ़र कर रही थी और बच्चे को उसके पिता को सँभालने के लिए दे दिया था। पर पिता के लाख प्रयासों के बावजूद बच्चा कहाँ मानने वाला था। अब वह अपनी मम्मी के पास जाने की रट लगाने के साथ साथ हाथ पैर भी फैकने लगा। ऐसा करते हुए वह गोरा-चिट्टे रंग और भूरे बालों वाला बच्चा जिसकी शक्ल से ही उसके शैतान होने का पता चलता था, मेरे मन को कितना भा रहा था मैं बता नहीं सकता। इसी सब के बीच interchange station आ गया जहाँ से मुझे दूसरी मेट्रो पकडनी थी।
इस बार मुझे ट्रेन में घुसते ही बैठने के लिए सीट मिल गई। कानो में earphone लगाए अपनी आदत के अनुसार ग़ज़ल सुनते हुए भी मैं उसी बच्चे के बारे में ही सोच रहा था। साथ ही साथ मैं उसके पिता के भाग्य से ईर्ष्या भी कर रहा था। असल में वह बच्चा मानो मेरे मन में कल्पित अपने खुद के बच्चे की ही carbon copy था। "पता नहीं और कब तक इसी तरह लोगो को उनके बच्चों के साथ देख देख कर मुझे रोना पड़ेगा?" अपने जीवन की वास्तविक सच्चाई जिसमे एक बच्चे का सुख पाने की निकट भविष्य में कोई संभावना नहीं है याद करके मैंने खुद से और ईश्वर से यह प्रश्न किया। कोई जवाब न मिलने पर सोच और अधिक गहराई में उतर गई। "क्या Gays के भाग्य में केवल और केवल हर उस बात के लिए रोना और संघर्ष करना लिखा है जिसे बाकी लोग बिना प्रयास किये पा जाते है?" मैं मन ही मन रोते हुए सोच रहा था। पर ईश्वर को शायद मुझे एक गे होने का और भी दण्ड देना था इसीलिए मेरे सामने की सीट पर एक ही परिवार की तीन स्त्रियाँ और एक पुरुष जिनके साथ 3-4 साल के दो बच्चे थे, आकर बैठ गए। देखने में कम पड़े लिखे और कम अमीर होने होने के बावजूद उनके दोनों बच्चो की शरारतों से उनके चेहरे के भावों को देखकर मुझे वे खुद से कहीं अधिक सुखी और अमीर लग रहे थे। मेरे दाई ओर एक औरत अपने 5 साल के बच्चे के साथ बैठी थी जिसने अपना सर माँ की गोद में छुपाया हुआ था। मेरे बाई ओर एक अन्य पिता अपने 3 साल के बच्चे जो अपने एक हाथ की बीच वाली दो उँगलियों को मुँह में लिए चूसता हुआ बहुत ही प्यारा लग रहा था, के साथ खड़ा था। कुल मिला कर ईश्वर ने मुझे घेरने की पूरी व्यवस्था कर रक्खी थी। किसी प्रकार आँसू आँखों से बाहर न निकलें मैं बस इसी प्रयास में लगा यह सब झेल रहा था।
"कितने ही ऐसे लोग है जिन्होंने कभी भी actively बच्चों के बारे में सोचा तक नहीं, पर आज खुद के बच्चों के साथ खेल रहे है और दूसरी ओर कितने ही ऐसे सच्चे गे लोग है जो रात दिन एक बच्चा पाने के लिए तड़पते है पर क़ानून और सामाजिक दोगलेपन की वजह से इस सपने को साकार नहीं कर पाते। ऐसी भ्रष्ट सरकार जो केवल वोट बैंक के लिए ही कुछ करने का कष्ट करती हो, से किसी प्रकार की उम्मीद बेकार है क्योंकि Gays भारत में अभी तक एक वोट बैंक के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं कर पाए हैं। रही बात समाज की, तो ऐसे समाज से भी क्या आशा की जा सकती है जो अभी कल तक औरतों तक को एक भोगी जाने वाली वस्तु के रूप में देखता आया है। ऐसे समाज को gays हमेशा हंसी और घृणा के ही पात्र लगेगें, उसे कहाँ गे लोगो के दुःख दर्द से सरोकार है? पर ईश्वर ... ? ईश्वर को भी तरस नहीं आता क्या? क्या उसने एक सच्चे गे के भाग्य में केवल लड़ना भर ही लिखा है? पहले तो यह समझने के लिए कि उसका किसी पुरुष को चाहना गलत नहीं है वह खुद से लड़े। एक बार जब यह समझ आ जाये कि वह एक लड़की का जीवन ख़राब नहीं कर सकता तो एक जीवनसाथी ढूँढने के लिए लड़े। एक सच्चा जीवन साथी मिल जाये तो परिवार और समाज को अपनी पसंद समझाने के लिए लड़े। और इस सब के बाद अपने परिवार को पूरा करने के हेतु एक बच्चा पाने के लिए संघर्ष करे....!!"
यही सब सोचता हुआ जा रहा था कि अचानक एक ग़ज़ल के कुछ बोलों पर मेरा ध्यान गया- "अगर आसानियाँ हों जिंदगी बेकार हो जाए।" ऐसा लगा जैसे ईश्वर ने ही मेरे प्रश्न का जवाब दिया हो। और वो भी ऐसा कि मैं निरुत्तर हो गया। मेरे मन ही मन चलने वाली बहस में अक्सर ईश्वर ही विजयी रहता है, इस बार भी वही रहा। देखा तो -मैं एक मेट्रो स्टेशन आगे आ चुका था। हड़बड़ा कर अपनी सीट से उठा और मेट्रो से बहर आया। वापिस जाने के लिए मेट्रो ले ही रहा था कि अगली ग़ज़ल के बोल बज पड़े -
"कोई समझेगा क्या राज़-ए-गुलशन,
जब तक उलझे न काँटों से दामन...." और प्रकृति के बनाए इस नियम पर मैं आँखे गीली होते हुए भी हँस पड़ा।
~Prove That Gays Can Love Too.
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