Saturday, 22 June 2013

कठिन परिस्तिथियाँ

कभी-कभी सोचता हूँ तो ऐसा लगता है कि जिन कठिन परिस्तिथियों का सामना गे लोग रोज़ करते है, अन्य लोग अधिकाँश समय उनसे संरक्षित रहते है। उदाहरण के लिए कल ही एक गे मित्र ने बताया कि वह किस तरह उसके घर रहने के लिए आये अपने cousin से परेशान है। रात को उसका cousin उसके साथ ही सोता है वो भी 'चिपक कर'. ऐसी स्तिथि में मेरे उस मित्र को क्या समस्या होती होगी इस सब का अंदाजा आप सब लगा सकते है। यूँ तो मैंने भी उसके द्वारा यह बात बताई जाने पर हँस कर टाल दी, पर गंभीरता से विचारा जाए तो straight लोगों की तुलना में gays के जीवन में ऐसे कठिन अवसर कहीं अधिक बार आते है। चाहें वह किसी दोस्त का कसकर गले मिलना हो, या उसका गले में हाथ डालकर चिपककर बैठे हुए बात करना। भीड़-भाड़ भरी बसों या मेट्रो ट्रेन में जहाँ कई कारणों से महिलाएं पुरुषों से हटकर ही सफ़र करतीं है वही जाने-अनजाने पुरुष एक दूसरे के नज़दीक कई बार इस हद तक आ जाते है कि एक गे व्यक्ति को वह स्तिथि बिल्कुल भी सुविधाजनक नहीं लगती। आप और भी इसी प्रकार की परिस्तिथियों की कल्पना कर सकते है।


यह सब रोज़ रोज़ कई बार होने पर भी अगर अधिकाँश समय अधिकाँश गे लोग अपना संयम बनाए रखते हो तो मैं तो उनको straight लोगों से कहीं अधिक संयत मानूंगा क्योंकि संयत वह व्यक्ति नहीं है जो ललचा देने वाली परिस्तिथियों के आभाव में अपना संयम दिखाए, वरन संयत वह व्यक्ति है जो ललचा देने वाली परिस्तिथियों के रहते हुए संयत रहे।

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