बाहर से समाज की अकारण घृणा और भीतर से 'अपने जैसे' लोगों का घृणित व्यवहार मिलकर एक ऐसे सच्चे गे व्यक्ति को जो किसी एक जीवनसाथी के साथ रहने के सपने देखता है, तोड़ डालने में कोई कसर नहीं रख छोड़ते है।
बाकी लोगों के साथ साथ अन्य गे भी जब आपको गलत और मूर्ख इसलिए माने कि आप गे होते हुए भी एक परिवारका सपना देखते है तो वाकई आप असमंजस में पड़ जाते है |
समाज की रीतियों (असल में कुरीतियों) और धारणाओं को सदा एक सा बनाये रखने की वकालत करने वाले लोगों ने आखिर क्यों स्वीकार किया कि धरती ब्रह्माण्ड का केंद्र नहीं है? क्यों ऐसे लोग आधुनिक विज्ञान से उपजी सभी सुख सुविधाओं का उपभोग बिना किसी शर्म के करते नज़र आते है? साधारण सामजिक सोच के अनुसार 'स्त्री-सुलभ साज-सिंगार' करने वालों को गे लोगों के तौर-तरीकों पर व्यंग करने का क्या अधिकार है? अगर तथाकथित प्राकृतिक ढंग से रहना इतना ही अनिवार्य है तो क्यों ये लोग कपड़े पहनकर रहते है और क्यों कंबलों में लिपटकर वातानुकूलित (एयर कंडिशन्ड) कमरों में सोते है? और अगर यह सब मानव की बुद्धि और सामाजिक / वैज्ञानिक विकास का प्रतीक हैं, तो यह कैसा बौधिक विकास है जो केवल स्वयं को भाने वाली चीज़ों को ही प्राकृतिक मानता है और अन्य लोगों को समानता का दर्ज़ा देने की बात तक पहुँचने से पहले ही रुक जाता है?
कितने ही साहसी गे लोग है जो एक गे की तरह ही रहते हुए समाज को यह दिखाना चाहते है कि गे लोग भी प्यार कर सकते है, उनकी नैतिकता की परिभाषा भी समानता, दया, परोपकार आदि पर आधारित है, उनकी भी पारिवारिक मूल्यों में अन्य लोगों जितनी ही श्रद्धा है, पर ऐसा करने के लिए आवश्यक एक जीवन साथी के नितांत आभाव में कुछ नहीं कर पाते। एक बार समाज को कुछ सिद्ध करके दिखाने की लालसा को तो मारा भी जा सकता है पर अपनी व्यक्तिगत मूलभूत जरूरतों को कब तक नज़रअंदाज किया जाए? पर लोग कभी ऐसे गे लोगो के आधार पर गेस के विषय में राय नहीं बनाना चाहते क्योंकि उन्होंने तो गेस को गलत ही साबित करने का एक ऐसा प्रण किया हुआ है जो किसी भी प्रकार नहीं तोडा जा सकता। और इस प्रण को पोषित करने के लिए वे ही गे सही रहते है जिनकी न तो एक 'गे परिवार' में कोई आस्था ही है अपितु जो प्रतिदिन नए व्यक्ति के साथ सेक्स करने में जीवन की सार्थकता देखते है। और एक दिन एक भोली-भाली लड़की से शादी करके अपने व्यभिचार के लिए सामाजिक नेत्रहीनता का प्रमाणपत्र पाकर, 'बेशर्मी' के साथ 'सुख' से जीते है।
ऐसे में गलियाँ खाने और सब ओर से प्रताड़ित होने के लिए केवल वे 'मूर्ख' गे ही बचे रह जाते है जो गे होने के बावजूद किसी को प्यार करने और बदले में प्यार पाने के सपने संजोंते हैं। दोनों ओर से ये 'मूर्ख' लोग मारे जाते है।
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