"अगले हफ्ते उसकी शादी है, वह पहले ही मुझे invite कर चुका है। मैंने भी शादी attend करने का वायदा किया है। वैसे भी उसकी ख़ुशी के लिए जाना तो बनता है।"

"मुझे पता है कि इन सब बातों को अब उठाने का कोई लाभ नहीं है पर जब तुम दोनों को भविष्य के बारे में सब पता था तो आखिर इतना involve ही क्यूँ हुए। वैसे involve तुम दोनों कहाँ हुए.... रजत को तो कोई फर्क पड़ता नहीं दीखता। जैसा कि तुम बताते हो शादी की तैयारियाँ खूब धूम-धाम से की हैं उसने!" मेरी कही ये बातें सुकृत को मानों तीर जैसी लगीं।
"कहाँ पता था कि वह दो घड़ी का हँसना बोलना यहाँ तक आ पहुँचेगा! उसके मन की वो जाने, पर मुझे तो पता ही नहीं चला कि मैं कब उससे इतना प्यार करने लगा। पता नहीं कब से मेरा दिन उससे फ़ोन पर बात करने से शुरू होने लगा और पता नहीं कब से मेरा दिन ख़त्म उसके साथ रात की सैर पर होने लगा। और अकेले उसे ही क्यों दोष देते हो, मैं भी तो कुछ दिनों में यही करूँगा।" सुकृत की आवाज़ अब भरराई हुई थी।
पहले भी सुकृत अपनी न बताई जा सकने वाली मजबूरियों की दुहाई कई बार दे चुका था। वैसे उसके न बताने पर भी ऐसा नहीं था कि ये मजबूरियाँ मुझे पता नहीं थी। आखिर एक middle class परिवार के गे लड़के की मजबूरियाँ हो भी क्या सकतीं है। माँ की बहू पाने की ख्वाहिश, परिवार का सम्मान कायम रखना, आस-पड़ोस के लोगों और रिश्तेदारों को मुँह खोलने का कोई अवसर न देना, और अगर कोई बहन है तो कुछ ऐसा काम न करना जिससे उसकी शादी में कोई व्यवधान पहुंचे, इन सब बातों के अलावा सुकृत जैसे लड़के की और क्या मजबूरियाँ हो सकती हैं, यही सोचकर मैंने भी कभी उसपर उसकी मजबूरियाँ बताने के लिए दवाब नहीं डाला।
"दोष उसको इसलिए दे रहा हूँ कि वह एक गलत निर्णय ले चुका है, पर तुम्हारे पास अभी कुछ और समय है, इसलिए सोचो कि तुम क्या करने जा रहे हो?" मैंने बिना हार माने एक बार फिर वही बात उठाने की कोशिश की।
"क्या करने जा रहा हूँ मैं? शादी ही तो करूँगा! सब करते है। तुम्हारी बड़ी चिंता यही है न कि कैसे मैं अपनी पत्नी को खुश रख पाऊंगा? तो वह मुझ पर छोड़ दो। शादी के बाद मैं उसको सब तरह से खुश रखने की कोशिश करूँगा और साथ रहते रहते प्यार भी हो ही जाएगा। और यदि प्यार नहीं भी हुआ तो भी क्या होता है, यह ज़रूरी नहीं कि सभी शादी-शुदा लोगो के बीच प्यार हो।" यह कहते कहते सुकृत यकायक रुक गया।
आखिर अपने मन की आवाज़ को मार कर की जाने वाली बात को वह और कितना लम्बा खींच सकता था। वह भी सुकृत जैसा लड़का! जो न तो किसी को दुःख पहुंचाने में विश्वास रखता था न ही किसी को धोखा देने में! पर समाज के द्वारा की जाने वाले बातों की फिक्र और परिवार के लोगो को संतुष्ट रखने के लोभ ने उसे यह सब कहने पर विवश कर दिया था। वरना यह बात तो सुकृत भी जानता था कि किसी लड़की से शादी करके वह उसके साथ एक प्रकार का अन्याय या धोखा ही करने जा रहा है। वह जानता था कि उसके वे सारे सपने जो रजत के साथ बिताए गए समय में सच हो गए थे, कभी एक लड़की के साथ पुन-जीवन्त नहीं हो सकेंगे।
"ठीक है जैसा मन में आए करो, बस बाद में मत पछताना। तुम्हारी life है, कोई क्या कर सकता है।" मैंने हार मानते हुए कहा। अबके सुकृत चुप ही रहा।
"जब शादी attend करने का मन बना ही लिया है तो यह भी decide कर लिया होगा कि शादी में क्या पहनोगे... खाना तो जरूर खा कर आना। और अरे हाँ... दूल्हा-दुल्हन के लिए कोई gift वगहरा decide किया या नहीं?" यह सब पूँछकर मानो मैंने सुकृत से मेरी बात न मानने का प्रतिशोध ले डाला। वह चुप ही रहा और चुपचाप ही चला गया। शायद इतनी कोशिश करने के बाद भी अभी तक वह इस सब से गुजरने की पूरी तैयारी नहीं कर पाया था। मेरे 'practical' सवाल उसके लिए मानो एक नई ही समस्या ले कर खड़े हो गए थे जिसके बारे में उसको सोचने के लिए समय ही नहीं मिला था। और मैं सोचने लगा ऐसे सवालों की तो मेरे पास भरमार है।
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