Wednesday, 26 June 2013

सच्चे प्यार का लक्षण

"सच्चा प्यार साथ की अपेक्षा नहीं रखता है। मैं चाहें जहाँ भी रहूँ, जिसके साथ भी रहूँ, उसे हमेशां प्यार करता रहूँगा।"

अक्सर ऐसी बातें कई ऐसे गे लोगों से सुनने को मिल जातीं हैं जो दावा तो सच्चे प्यार का करते है पर असल में ऊँची ऊँची बातें करके अपनी अकर्मण्यता छुपा रहे होते है। ऐसे 'सच्चे प्रेमियों' से मैं यह विनती करना चाहूँगा कि सच्चे प्यार के सिद्धांतों को अपनी कायरता छुपाने के लिए प्रयोग में न लायें। निश्चय ही सच्चा प्यार पनपने और बड़ने के लिए अपने प्रिय के साथ की अपेक्षा नहीं रखता है क्योंकि सच्चा प्यार तो "प्रिय के सुख में सुखी" होने के सिद्धांत पर आधारित है। अतः ऐसी बात कहना वहाँ तो उचित है जहाँ आपका प्रिय आपको नहीं चाहता या स्वयं आपसे दूर रहना चाहता हो पर यदि परस्पर साथ रहने की चाह होने के बाद भी केवल समाज से डर कर और कठिनाइयों से घबरा कर अगर ऐसी बात कही जाए तो यह मुझे प्यार को अपमानित करने वाली बात ज्यादा लगती है।

दुनिया भर के विरोध और समाज द्वारा अपमानित किये जाने की बात को जानते हुए भी अपने प्रिय का साथ किसी भी स्तिथि में न छोड़ना (केवल इसलिए कि वह हमारा साथ चाहता है!) मेरे अनुसार सच्चे प्यार का अधिक बड़ा लक्षण है।

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