भगवान के लिए खुद को भेड़-बकरी सिद्ध करना बंद
कीजिए। आज के समय में तो कोई किसी लड़की की शादी भी उसकी मर्ज़ी के खिलाफ़ नहीं कर
सकता। कितने ही उदाहरण हैं जहाँ छोटे-छोटे शहरों में रहने वाली लड़कियों ने भी, परिवार के अत्याधिक पुरानी विचारधारा के होते हुए, अपनी मर्ज़ी के बगैर शादी नहीं की. तब कैसे इस बात पर
विश्वास किया जा सकता है कि एक शहरी, पड़े लिखे तथा कमाऊ लड़के को जबरदस्ती शादी के मंडप में बिठाया जा सकता है?
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बेशक बुरी लगे, पर सच्ची बात तो यह है कि कई
गे लोगों को खुद ही एक लड़की से शादी करना परम-सत्य लगता है. वे एक
लड़के के साथ सेक्स के विषय में तो ख़ुशी-ख़ुशी सोच सकते है पर परिवार और समाज के
विरुद्ध जाकर उसके साथ पूरा जीवन साथ बिताने के
बारे में सोचना उन्हें एक अनावश्यक जोखिम लगता है.
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लेकिन सच्चाई सामने आते अधिक देर कहाँ लगती है! और फिर शुरू
हो जाता है परिवार और लड़की पर मिथ्या दोष मडना!
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(कृपया अपनी लाचारी और मजबूरियों के किस्से
कमेंट्स में बताकर समय बर्बाद न करें।)
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