Thursday, 4 July 2013

ज़रुरत के समय

दुःख की बात है कि कई गे लोग केवल इसलिए समाज की जिद्द के आगे घुटने टेक देना चाहते है क्योंकि उनको लगता है कि दो गे व्यक्ति अधिक से अधिक दोस्त हो सकते है और जीवन में सिर्फ एक दोस्त का होना काफी नहीं है. गे परिवार तो जैसे उनकी कल्पना से बाहर की चीज़ होती है.


शायद ऐसी सोच रखने वाले थोड़ा गहराई से सोचे तो पायेंगे कि जिन सम्बन्धियों और समाज के लोगों को खुश रखने के लिए ये अपनी भावनाओं और किसी के प्यार का बलिदान करने को तैयार हो जाते हैं वे ज़रुरत के समय दूर खड़े होकर तमाशा भर ही देखेंगे. समय पड़ने पर कोई अपना ही काम आता है जिसे ऐसे लोग समाज को खुश रखने के लिए अपने से हमेशां हमेशां के लिए दूर कर चुके होते है.

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