Saturday, 6 July 2013

शादीशुदा गे : समय चूक पुनि का पछताने


बिना सोचे विचारे जीवन के अहम् निर्णय दूसरों के कहे अनुसार लेने का क्या परिणाम होता है यह मुझे फिर एक बार तब पता चला जब एक Facebook Friend ने अपनी परेशानी मेरे सामने रखी। 29 साल के शादीशुदा इस मित्र को लगता है कि वह गे है। शादी के कुछ समय बाद से उसकी 'रूचि' अपनी पत्नी में पूरी तरह से ख़त्म हो चुकी है। जाहिर है कि पति-पत्नी के बीच काफी तनाव रहता है। मानसिक रूप से वह इतना परेशान है कि आत्महत्या तक के बारे में सोचता है। पत्नी को तलाक देना ही उसे एकमात्र चारा नज़र आता है। "शादी की ही क्यों?" पूंछने पर बताया कि "कुछ 'दोस्तों' ने कहा था कि शादी के बाद अपने आप interest बदल जाएगा। परेशानी होगी यह मुझे भी पता था पर इतनी ज्यादा होगी यह नहीं जानता था।" संक्षेप में अब वह कुछ भी करके पत्नी से पीछा छुड़ाना चाहता है, बस चिंतित वह अपने बेटे को लेकर है।

दुःख की बात है कि यह एक इंसान की कहानी नहीं है, फिर भी जब कोई आपबीती बताता है तो रोम-रोम सिहर उठता है। कितने ही गे ऐसे है जिन्होंने बिना सोचे समझे एक लड़की से शादी करने के लिए हाँ कह दी और अब पछतावे एवं आत्मग्लानी के साथ पत्नी को धोखा देते हुए जीवन बिता रहे है। जो ऊपर-ऊपर से संतुष्ट नज़र आते है वे भी कहीं न कहीं एक दर्द अपने मन में छुपाये हुए है जो जब-तब कुछ बातों से उभर आता है। कारण चाहें जो भी रहा हो, कितना भी 'निस्वार्थ' कारण क्यों न हो, अंत में सिर्फ पछतावा ही रह जाता है।

एक स्त्री को अपने परिवार और समाज को संतुष्ट करने का साधन समझना न केवल एक गलती है अपितु मेरी दृष्टि में एक अपराध भी है और अपराध का उचित दण्ड तो अपराधी को मिलना ही चाहिए। आखिर उस भोली-भली लड़की का क्या दोष था जिसे एक वस्तु की भांति प्रयोग में लाया गया? पर अपने शादीशुदा जीवन और परिवार को सुखी बनाए रखने के लिए अपनी इच्छाओं के परित्याग का दण्ड ऐसे व्यक्तियों के लिए तब उचित नहीं रहता जब वे एक अनकहा सा अहसान अपने परिवार पर जताने लगते है या परिवार को सही से चलाने के बजाये मात्र घसीटने लगते है या फिर अपनी आत्मा की आवाज़ को मारकर चोरी-छुपे किसी पर-पुरुष (या पर-पुरुषों) का संग करने लगते है। ऐसी स्तिथि में यह दण्ड अपराधी के लिए न होकर उसकी पत्नी और परिवार के लिए हो जाता है। अतः ऐसी स्तिथि में ऐसे व्यक्तियों की पत्नियों और परिवारों को अकारण पहुँचने वाली वेदना से बचाने के लिए तलाक के विकल्प पर विचार किया जा सकता है (चाहें ऐसा करना इन अपराधियों के लिए फायदेमंद ही क्यों न लगे!)

एक श्रेणी पर और विचार करना होगा। यह श्रेणी उन व्यक्तियों की है जिनका विवाह 22-23 साल तक की उम्र में ही कर दिया गया जब वे अपनी sexuality को सही से समझ ही नहीं पाए थे। 'एक पुरुष की एक स्त्री से शादी होनासमाज के द्वारा एक सहज-सिद्धांत की तरह प्रस्तुत किया जाता है। इस 'सिद्धांतके बह्कावे में आकर तथा किसी भी प्रकार की सलाह और उदाहरण के आभाव में अगर इस उम्र के एक युवा से एक गे होते हुए एक लड़की से शादी करने की भूल हो गई हो तो इसके लिए उसको और उसकी पत्नी को जीवन भर के लिए साथ-साथ रहने का अभिशाप नहीं दिया जा सकता। ऐसी परिस्तिथि में भी तलाक के विकल्प पर विचार किया जाना गलत नहीं कहा जा सकता।    

हैरानी तो तब होती है जब सब कुछ जानते हुए भी विचार न कर पाने के ढोंग का सहारा लेकर लोग शादी करते है और बात के तलाक तक पहुँचने के बाद भी भविष्य में अपने जीवन की सही दिशा निर्धारित नहीं कर पाते है। तलाक के बाद अकेले रहकर अलग-अलग लोगों का केवल सेक्स के लिए संग करते रहने से जीवन नहीं गुजारा जा सकता है, इसका विवेक इन लोगों को कब आएगा? या फिर ये लोग एक के बाद एक गलती करने के लिए ही जन्मे होते है? या फिर इनके लिए तलाक केवल अपनी उछ्रंख्लता और मौज मस्ती को वापस पाने का जरिया भर होता है

बेहतर तब होता कि जब तलाक की नौबत आ जाने पर और पत्नी के लिए बाकी भावनाओ का स्थान मात्र सहानुभूति के द्वारा ले लिए जाने परस्वेच्छा से ही उसके भविष्य को अधिक से अधिक सुरक्षित करके अपने भविष्य को भी ऐसा बनाए जाने का प्रयत्न किया जाए जिससे भूल सुधार का आभास मिले। जाने अनजाने में किसी निर्दोष इंसान को दी जाने वाली तकलीफ का भान यदि आपको होगा तो वैसे भी आप भविष्य में फिर एक गलती करने से बच जायेगे।

और अधिक गहन विचार का समय अभी जिन गे लोगों के हाथ से नहीं निकला है, जो अभी असमंजस में पड़े बहाव की दिशा में बह जाना चाहते है या फिर वे लोग जो कुछ भी सोचने से जल्द ही थक जाने के कारण बिना सोचे समझे ऐसी गलती (या अपराध) करने की कगार पर है उन्हें मेरे इस Facebook Friend के जीवन से सीख लेनी चाहिए। आखिर- "का बरखा जब कृषि सुखाने, समय चूक पुनि का पछताने" की सीख को मानने में कोई हानि तो नहीं है!   

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